Sunday, January 19, 2025
Sunday, January 19, 2025
Homeराजस्थानअंग्रेजों ने कल्पवासियों को संगम स्नान से रोका: प्रयाग से लौटते...

अंग्रेजों ने कल्पवासियों को संगम स्नान से रोका: प्रयाग से लौटते वक्त कढ़ी खाते हैं कल्पवासी; महिलाएं श्रृंगार नहीं कर सकतीं


5 मिनट पहलेलेखक: धर्मेंद्र चौहान/इंद्रभूषण मिश्र

  • कॉपी लिंक

1924 प्रयाग कुंभ की बात है। अंग्रेज सरकार ने संगम में स्नान पर रोक लगा दी थी। सरकार का कहना था कि संगम के पास फिसलन बढ़ गई है, भीड़ की वजह से हादसा हो सकता है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर रहे हेरंब चतुर्वेदी बताते हैं- ‘कल्पवासी दिन में तीन बार स्नान करते हैं। दोपहर का स्नान वे संगम तट पर ही करते हैं। इसलिए वे संगम में स्नान के लिए अड़े थे।’

कल्पवासियों को पंडित मदन मोहन मालवीय का साथ मिला। उन्होंने सरकार के फरमान के खिलाफ जल सत्याग्रह शुरू कर दिया। 200 से ज्यादा कल्पवासी, मालवीय के साथ ब्रिटिश पुलिस के साथ आर-पार के मूड में थे।

जवाहरलाल नेहरू भी तब प्रयाग में ही थे। जब उन्हें पता चला कि संगम में स्नान को लेकर मालवीय जल सत्याग्रह कर रहे हैं, तो वे भी संगम पहुंच गए।

अपनी आत्मकथा ‘मेरी कहानी’ में नेहरू लिखते हैं- ‘मेला पहुंचने पर मैंने देखा कि मालवीय जी जिला मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ जल सत्याग्रह कर रहे हैं। जोश में आकर मैं भी सत्याग्रह दल में शामिल हो गया। मैदान के उस पार लकड़ियों का बड़ा सा बैरिकेड बनाया गया था।

हम आगे बढ़ने लगे, तो पुलिस ने रोका। हमारे हाथ में सीढ़ी थी, जिसे पुलिस ने छीन लिया। हम रेत पर बैठकर धरना देने लगे। दोनों तरफ पैदल और घुड़सवार पुलिस खड़ी थी। धूप बढ़ती जा रही थी। मेरा धैर्य अब टूटने लगा था।

इसी बीच घुड़सवार पुलिस को कुछ ऑर्डर मिला। मुझे लगा कि ये लोग हमें कुचल देंगे, हमारे साथ मार-पीट करेंगे। मैंने सोचा क्यों न हम घेरे के ऊपर से ही फांद जाएं। मेरे साथ बीसों आदमी बैरिकेड्स के ऊपर चढ़ गए। कुछ लोगों ने बांस की बल्लियां भी निकाल लीं। इससे रास्ता जैसा बन गया। मुझे बहुत गर्मी लग रही थी, सो मैंने गंगा में गोता लगा दिया।

मालवीय जी बहुत भिन्नाए हुए थे और ऐसा लग रहा था कि वे खुद को रोकने की कोशिश कर रहे हैं। अचानक बिना किसी से कुछ कहे मालवीय जी उठे और पुलिस के बीच से निकलकर गंगा में कूद पड़े। इसके बाद तो पूरी भीड़ गंगा में डुबकी लगाने के लिए टूट पड़ी।’

इस तरह ब्रिटिश सरकार के फरमान के बावजूद कल्पवासियों ने संगम में स्नान किया। ‘महाकुंभ के किस्से’ सीरीज के 8वें एपिसोड में आज कल्पवास की कहानी…

अंग्रेज सरकार के फरमान के खिलाफ संगम में स्नान करते हुए पंडित नेहरू और मदन मोहन मालवीय।

अंग्रेज सरकार के फरमान के खिलाफ संगम में स्नान करते हुए पंडित नेहरू और मदन मोहन मालवीय।

कल्पवास, यानी पौष महीने की पूर्णिमा से लेकर माघ महीने की पूर्णिमा तक संगम किनारे रहकर वेदों का अध्ययन करना, ध्यान करना और साधना करना। सदियों से यह परंपरा चली आ रही है। महाभारत, रामचरित मानस और पुराणों में कल्पवास का जिक्र मिलता है।

आमतौर पर कल्पवास महीनेभर का होता है। कुछ लोग 3 दिन, 7 दिन और 15 दिन का भी कल्पवास करते हैं।

रामचरित मानस के बालकांड में तुलसीदास लिखते हैं- ‘माघ मकर गत रवि जब होई। तीरथ पतिहि आव सब कोई। देव दनुज किन्नर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिवेनी।’

यानी माघ के महीने में जब सूर्य मकर राशि में आते हैं, तब सब कोई तीर्थराज प्रयाग आते हैं। देव, दैत्य, किन्नर और इंसान भक्ति भाव से त्रिवेणी-संगम में स्नान करते हैं।

कल्पवास के दौरान याज्ञवल्क्य मुनि ने भारद्वाज मुनि को सुनाई थी रामकथा

रामचरित मानस के मुताबिक हर साल माघ महीने में साधु-संत प्रयाग आते थे और भारद्वाज मुनि के आश्रम में रहकर कल्पवास करते थे। एक बार कल्पवास पूरा करने के बाद सभी संत लौट गए, लेकिन याज्ञवल्क्य मुनि को भारद्वाज मुनि ने जाने नहीं दिया। उन्होंने उनका पैर पकड़ लिया और रामकथा सुनाने का आग्रह किया। इसके बाद याज्ञवल्क्य मुनि ने उन्हें रामकथा सुनाई।

कहा जाता है कि राम वनवास की शुरुआत में प्रयाग गए थे और लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद उन्होंने प्रयाग में स्नान-दान किया था।

बिहार के रहने वाले प्रेम कुमार झा और उनकी पत्नी गौरी देवी का यह 12वां कल्पवास है। 2013 के कुंभ में दोनों ने कल्पवास की शुरुआत की थी।

बिहार के रहने वाले प्रेम कुमार झा और उनकी पत्नी गौरी देवी का यह 12वां कल्पवास है। 2013 के कुंभ में दोनों ने कल्पवास की शुरुआत की थी।

कल्पवास, कल्प से बना है। वैदिक साहित्य के मुताबिक वेदों के अध्ययन के लिए 6 वेदांगों की रचना की गई। यह 6 वेदांग हैं- शिक्षा, छंद, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष और कल्प। कल्प में यज्ञ, ध्यान, दान आदि की विधि बताई गई है।

कुंभ चार जगहों- प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में लगता है, लेकिन कल्पवास सिर्फ प्रयाग में ही होता है। हर साल माघ मेला के दौरान कल्पवासी प्रयाग आते हैं। मान्यता है कि कुंभ के दौरान कल्पवास की महिमा बढ़ जाती है।

मान्यता- कल्पवास करने वालों को 432 करोड़ साल का फल मिलता है

शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के मुताबिक ब्रह्माजी के एक दिन को कल्प कहा जाता है। कलयुग, द्वापर, त्रेता और सतयुग चारों युग मिलकर जब एक हजार बार आते हैं, तो वह अवधि ब्रह्मा जी के एक दिन या एक रात के बराबर होती है।

सतयुग 17,28,000 साल, त्रेता युग 12,96,000 साल, द्वापर युग 8,64,000 साल और कलियुग 4,32,000 साल का होता है। ऐसे एक हजार साल बीतेंगे तब एक कल्प होगा। यानी कोई कुंभ में कल्पवास करेगा तो पृथ्वी की गणना के अनुसार उसे 432 करोड़ साल का फल मिलेगा।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो कल्पवासी 12 साल तक लगातार कल्पवास करते हैं, उन्हें मोक्ष मिलता है। कर्मकाण्ड या पूजा में हर कार्य संकल्प के साथ शुरू होता है और संकल्प में ‘श्रीश्वेतवाराहकल्पे’ का सम्बोधन किया जाता है। इसका मतलब है कि सृष्टि की शुरुआत से लेकर अब तक 11 कल्प बीत चुके हैं। अभी 12वां कल्प चल रहा है।

प्रयाग आने पर खिचड़ी और जाते वक्त कढ़ी खाते हैं कल्पवासी

शास्त्रों में कुंभ के दौरान कल्पवास को सबसे फलदाई माना गया है। पुराणों में कल्पवास के लिए अलग-अलग समय बताया गया है। पद्म और ब्रह्म पुराण के अनुसार पौष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी से माघ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तक कल्पवास करना चाहिए।

विष्णु पुराण के अनुसार कल्पवास अमावस्या या पूर्णिमा के दिन शुरू किया जा सकता है। शर्त केवल इतनी है कि सूर्य मकर राशि में होना चाहिए। फिलहाल पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक कल्पवास करने की परंपरा है।

कल्पवासियों के लिए प्रयागराज की पवित्र रेत पर पैर रखते ही कल्पवास शुरू माना जाता है। संगम में डुबकी लगाने। फिर किनारे पर ध्यान करने और दान देने के बाद कल्पवासी उन शिविरों या कुटिया में पहुंचते हैं, जहां वे एक महीना रहेंगे।

इतिहासकार हेरंब चतुर्वेदी बताते हैं- ‘कल्पवासी जब प्रयाग आते हैं, तो सबसे पहले वे खिचड़ी खाते हैं। अपने टेंट में जौ और तुलसी का पौधा लगाते हैं। खिचड़ी खाना संसारिकता से मुक्ति का प्रतीक माना जाता है। कल्पवास पूरा करने के बाद कल्पवासी जौ और तुलसी को गंगा जल में प्रवाहित कर देते हैं। घर लौटते वक्त वह कढ़ी खाते हैं। कढ़ी खाने का मतलब है वह फिर से संसारिकता में प्रवेश करता है।’

आजादी के बाद पहले कुंभ में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने किया कल्पवास

आजादी के बाद 1954 में पहला कुंभ प्रयाग में लगा। राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद तब कुंभ पहुंचे थे और उन्होंने एक महीने कल्पवास किया था। वे संगम तट पर किले के एक हिस्से में रहते थे। आज भी उनकी याद में वह स्थान सुरक्षित है। उस जगह को प्रेसीडेंट व्यू कहा जाता है। जब राजेंद्र प्रसाद वहां कल्पवास करते थे, तो उनसे मिलने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री समेत कई नेता आते थे।

साल 1954 कुंभ मेले का निरीक्षण करते हुए राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद।

साल 1954 कुंभ मेले का निरीक्षण करते हुए राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद।

राजा हर्षवर्धन कल्पवास के दौरान पूरा राज-पाट लुटा देते थे

शुुरुआत में यहां केवल ऋषि-मुनि ही तपस्या करते थे। छठी शताब्दी की शुरुआत में कल्पवास के लिए गृहस्थों ने आना शुरू किया। उस दौरान राजा हर्षवर्धन माघ महीने में यहां आते थे और अपना सब कुछ त्याग कर लौट जाते थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी प्रयाग में राजा हर्षवर्धन के दान और अनुष्ठानों का जिक्र किया है।

ह्वेनसांग अपने संस्मरण में लिखते हैं- ‘दो नदियों गंगा और यमुना के बीच प्रयाग है। यहां बहुत सारे फलदार वृक्ष हैं। हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर हैं। हर जगह रेत ही रेत दिखती है। जिस जगह ये दोनों नदियां मिलती हैं, यहां के लोग उसे महादानभूमि कहते हैं।

गंगा के उत्तरी तट पर हर्षवर्धन का शिविर लगा था। सुबह हर्षवर्धन सैनिकों के साथ जलपोत से महादानभूमि पहुंचे। मैं भी उनके साथ था। कई देशों के राजा इंतजार कर रहे थे। साधु-संत, गरीब, रोगी और विधवा, हर तरह के लोगों का हुजूम उमड़ा था।’

राजा हर्षवर्धन कल्पवास के दौरान साधु-संतों को दान देते हुए।

राजा हर्षवर्धन कल्पवास के दौरान साधु-संतों को दान देते हुए।

ह्वेनसांग लिखते हैं- ‘हर्षवर्धन ने सबसे पहले महादानभूमि के भीतर बनी एक झोपड़ी में बुद्ध की मूर्ति स्थापित की। उसका श्रृंगार किया और बहुमूल्य रत्न चढ़ाए। राजा ने कपड़े, रत्न और भोजन लोगों के बीच बांटे।

दूसरे दिन उन्होंने सूर्य की मूर्ति और तीसरे दिन महादेव की मूर्ति स्थापित की। चौथे दिन बौद्ध भिक्षुओं को सोने के सिक्के बांटे। इसके बाद साधु-संतों को बहुमूल्य रत्न दिए। फिर विधवा, अनाथ और रोगियों को दान दिया। इस तरह लगातार 74 दिनों तक हर्षवर्धन दान करते रहे। उन्होंने पूरा खजाना खाली कर दिया। अंत में अपना मुकुट भी दान कर दिया।’

———————————————–

महाकुंभ से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें…

संतों ने चिमटे बजाकर कहा-मोदी को PM बनाओ: प्रधानमंत्री बनते ही कुंभ पहुंचीं इंदिरा; सोनिया का प्रोटोकॉल कोड था-पापा वन, पापा टू, पापा थ्री

प्रयाग के कांग्रेस नेता अभय अवस्थी बताते हैं- ‘मेरे पुराने साथी सोनिया गांधी की सुरक्षा में लगे थे। उनके वायरलेस पर बार-बार एक मैसेज आ रहा था- पापा वन, पापा टू, पापा थ्री। मैंने उनसे पूछा कि ये क्या है? तब उन्होंने बताया कि ये सोनिया गांधी का प्रोटोकॉल कोड है। वो स्नान करने के बाद तीन जगहों पर जाएंगी। ये कोडवर्ड उन्हीं तीन जगहों के लिए हैं।’ पढ़िए पूरी खबर…

नेहरू के लिए भगदड़ मची, 1000 लोग मारे गए:सैकड़ों शव जला दिए गए; फटे कपड़े में पहुंचे फोटोग्राफर ने चुपके से खींची तस्वीर

साल 1954, आजाद भारत का पहला कुंभ इलाहाबाद यानी अब के प्रयागराज में लगा। 3 फरवरी को मौनी अमावस्या थी। मेले में खबर फैली कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आ रहे हैं। उन्हें देखने के लिए भीड़ टूट पड़ी। जो एक बार गिरा, वो फिर उठ नहीं सका। एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए। सरकार ने कहा कि कोई हादसा नहीं हुआ, लेकिन एक फोटोग्राफर ने चुपके से तस्वीर खींच ली थी। अगले दिन अखबार में वो तस्वीर छप गई। पढ़िए पूरी खबर…

नागा बनने के लिए 108 बार डुबकी, खुद का पिंडदान:पुरुषों की नस खींची जाती है; महिलाओं को देनी पड़ती है ब्रह्मचर्य की परीक्षा

नागा साधु कोडवर्ड में बातें करते हैं। इसके पीछे दो वजह हैं। पहली- कोई फर्जी नागा इनके अखाड़े में शामिल नहीं हो पाए। दूसरी- मुगलों और अंग्रेजों के वक्त अपनी सूचनाएं गुप्त रखने के लिए यह कोड वर्ड में बात करते थे। धीरे-धीरे ये कोर्ड वर्ड इनकी भाषा बन गई। पढ़िए पूरी खबर…

खबरें और भी हैं…



Source link

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular