‘अगर मैं ग्वालियर में घर पर हूं और मुझे सब्जी मंडी जाना पड़े तो मैं साइकिल से जाऊंगा। मीटिंग में समय है, तो हमें साइकिल से जाना चाहिए। कुछ देर हम गर्मी में बिना एसी के बैठ जाएंगे तो क्या नुकसान होगा।’
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ये कहना है मध्यप्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का। उन्होंने एक साल तक बिना प्रेस किए कपड़े पहनने का फैसला लिया है। इससे पहले भी वे कभी नाले में उतरकर सफाई करने और जूते-चप्पल नहीं पहनने के संकल्प को लेकर चर्चा में रह चुके हैं। इस बार उनके बिना प्रेस किए कपड़े पहनने की पहल को कांग्रेस ने नौटंकी बताया है। चर्चा में बने रहने के लिए पब्लिसिटी स्टंट करार दिया है।
इसके जवाब में तोमर ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा- चर्चा में बने रहने से उन्हें किसने रोका है? बिना प्रेस किए कपड़े पहनने और अब सब्जी मंडी तक साइकिल चलाने का फैसला मंत्री ने अचानक क्यों लिया? क्या वो पर्यावरण को लेकर वाकई गंभीर होने लगे हैं या सचमुच ये पब्लिसिटी स्टंट है? ये समझने के लिए हमने ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर से बातचीत की…
पढ़िए एमपी के ऊर्जा मंत्री के साथ दैनिक भास्कर की बातचीत…
ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने एक साल तक बिना प्रेस किए कपड़े पहनने का संकल्प लिया है।
सवाल: आपने बिना प्रेस किए कपड़े पहनने का फैसला क्यों लिया?
जवाब: एक साल तक मैं बिना प्रेस किए कपड़े पहनूंगा। ये एक छोटा सा निर्णय है, लेकिन हम सब यदि छोटे-छोटे निर्णय लेंगे तो समाज में बड़े बदलाव आ जाएंगे। एक प्रेस करने में लगभग आधा यूनिट बिजली खर्च होती है। इससे कार्बन डाइऑक्साइड भी पैदा होता है, जो वातावरण में प्रदूषण पैदा करने में सहायक होता है।
ऐसे अनेक कारण हैं। मेरे मन ने कहा कि हमारे किसी परिजन के लंग्स में प्रॉब्लम होती है, तो कहते हैं कि दिल्ली ले चलो। फिर कहते हैं – दिल्ली में बहुत प्रदूषण है। अभी दिल्ली मत लेकर चलना। जहां हम रह रहे हैं वहां कितना प्रदूषण है। ये प्रदूषण क्यों ज्यादा बढ़ रहा है? पहले क्यों नहीं था? निश्चित रूप से हमें समय के हिसाब से परिवर्तित होना है।
मैं बिना प्रेस के कपड़े पहन सकता हूं। इसमें मेरा कोई काम प्रभावित नहीं हो रहा है। अगर व्यक्ति छोटे-छोटे बदलाव करता गया तो ये बदलाव एक क्रांतिकारी बदलाव हो जाएगा।
सवाल: इससे बिजली की कितनी बचत होगी?
जवाब: प्रेस करने में आधा यूनिट बिजली खर्च होती है। इस तरह हफ्तेभर में सात जोड़ी कपड़े प्रेस करने में अगर साढ़े तीन-चार यूनिट बिजली खर्च होती है तो एक महीने में करीब 15 से 20 यूनिट बिजली खर्च होगी। इसका 12 महीने का हिसाब लगाया जाए तो 240 यूनिट बिजली खर्च होगी। 240 यूनिट बिजली से 410 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड पैदा होगी।
इस तरह सालभर यदि बिना प्रेस किए हुए कपड़े पहनूंगा तो कुछ अंश में ही लेकिन प्रदूषण को कम करने में योगदान दूंगा। ऐसे अगर 100 लोगों ने फैसला किया तो अंतर आने लगेगा। अगर हमने कंट्रोल नहीं किया तो वो दिन न आ जाए कि हमारे नौनिहाल अपनी पीठ पर ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर घूमेंगे।

सवाल: क्या आप पैंट-शर्ट भी पहनते हैं?
जवाब:मैं आम तौर पर कुर्ता-पजामा ही पहनता हूं। लंबे समय से यही पहन रहा हूं। अब जो भी पहनूं, एक साल के लिए संकल्प लिया है कि बिना प्रेस के ही पहनूंगा। मुझे तो किसी ने नहीं कहा था आप बिना प्रेस किए कपड़े पहनो। ये निर्णय खुद का है तो इसका पालन भी हमें ही करना है।
सवाल: फ्रिज, एसी से भी कार्बन का उत्सर्जन होता है?
जवाब: ये भौतिकवाद युग हो गया है। उतना उपयोग करें, जितना मानव जीवन के लिए जरूरी है। जैसे कुछ देर अगर हम गर्मी में बिना एसी के बैठ जाएंगे तो क्या नुकसान हो जाएगा। बैठ सकते हैं तो वो काम हमें करना चाहिए। मीटिंग में जाना है और जल्दी जाना है तो गाड़ी का उपयोग करें, लेकिन मेरे पास पर्याप्त समय है तो मैं साइकिल का उपयोग क्यों नहीं कर सकता। कई लोग देश में कर रहे हैं।

सवाल: नेताओं के घर तो बहुत बिजली की खपत है? जवाब: मेरे निजी निवास ग्वालियर में भी सौर ऊर्जा की प्लेट लगी है। मंत्री आवास में भी सोलर की प्लेट लगी है। ये इसलिए कि हम ग्रीन एनर्जी पैदा करने का संदेश दें। हमारी सरकार भी यही कर रही है।
सवाल: ज्योतिरादित्य सिंधिया आपकी प्रेरणा है, क्या उन्हें भी ऐसा करना चाहिए? जवाब: मैंने सिंधिया जी को बहुत नजदीक से देखा है। कई बार आपने उनके हाथों में झाड़ू देखी होगी। वो कई प्रेरणादायी काम खुद ही करते हैं। वो तो हम लोगों को मार्गदर्शन देते हैं।
