अमृतसर। जालंधर के फिल्लौर के गांव तेहिंग निवासी हरविंदर सिंह का शव मौत के दो महीने बाद भारत पहुंच पाया। श्री गुरु राम दास जी इंटरनेशनल एयरपोर्ट अमृतसर पर शव को रिसीव करते हुए रिश्तेदार भावुक हो गए।
.
जानकारी के मुताबिक, जालंधर जिले की तहसील फिल्लौर के नजदीक गांव तेहिंग निवासी हरविंदर सिंह पुत्र बिकर सिंह का 16 अगस्त को दुबई में हार्ट अटैक से निधन हो गया था। शव आज दो महीने बाद दुबई से श्री गुरु रामदास इंटरनेशनल एयरपोर्ट अमृतसर पहुंचा। मृतक सरबत दा भला का शव जिला महासचिव मनप्रीत सिंह संधू, वित्त सचिव नवजीत सिंह घई और परमिंदर संधू ने प्राप्त किया और परिवार के सदस्यों को सौंप दिया।
17 साल पहले गया था दुबई
इस संबंध में जानकारी साझा करते हुए सरबत दा भला ट्रस्ट के ट्रस्टी डॉ. एसपी सिंह ओबरॉय ने कहा कि हरविंदर सिंह अन्य युवाओं की तरह, बेहतर भविष्य के सपने लेकर लगभग 17 साल पहले दुबई गया था। 16 अगस्त को अचानक दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई।
डॉ. ओबरॉय ने बताया कि इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के संबंध में मृतक हरविंदर सिंह की बहन बलजीत कौर, जो कनाडा में रहती हैं और जसबीर कौर, जो इटली में रहती हैं, ने उनसे संपर्क किया और उन्हें इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बारे में बताया और शव उनके पैतृक गांव भेजने के लिए कहा। जिसके बाद उन्होंने भारतीय दूतावास की मदद से सभी जरूरी दस्तावेज पूरे किए और आज हरविंदर सिंह का शव भारत में उनके वारिसों के पास पहुंचाया। डॉ. ओबरॉय ने यहां यह भी स्पष्ट किया कि हरविंदर के शव को भारत भेजने का खर्च कनाडा में रहने वाली उनकी बहन ने उठाया है।
एयरपोर्ट पर हरविंदर सिंह का शव उसके परिवार को सौंपते मनप्रीत संधू, नवजीत घई और अन्य।
इकलौती बेटी के पिता था मृतक
शव लेने एयरपोर्ट पहुंचे हरविंदर के जीजा कुलदीप सिंह, चाचा सुरजीत सिंह और भाई प्रशोतम सिंह भावुक हो गए और कहा कि हरविंदर अपने पीछे बुजुर्ग माता-पिता, पत्नी और विदेश में ब्याही अपनी इकलौती बेटी को छोड़ गए उन्होंने इस कठिन समय में उनकी बहुत मदद करने के लिए डॉ. एसपी सिंह ओबरॉय को विशेष रूप से धन्यवाद दिया।
ट्रस्ट के अमृतसर टीम के सदस्य मनप्रीत सिंह ने बताया कि डा. ओबरॉय के प्रयासों से अब तक करीब 377 बदनसीब लोगों के शव उनके वारिसों तक पहुंचाए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि विदेशों में इस समय सबसे बड़ी समस्या यह आ रही है कि बच्चे बिना किसी स्किल के बाहर चले जाते हैं और फिर जब काम नहीं मिलता तो परेशान होकर आत्महत्या कर लेते हैं। इसीलिए उनकी अपील है कि बिना कुछ हुनर या स्किल सिखाए अपने बच्चों को विदेश ना भेजें।