छह जनवरी से आंध्रप्रदेश के विजयवाड़ा में नेशनल वालीबॉल स्कूल खेल प्रतियोगिता का शुभारंभ होने जा रहा है। इसमें शामिल होने के लिए मध्य प्रदेश की अंडर-19 बालिका टीम आज राजगढ़ से रवाना हुई।
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बीते पांच दिनों से इस टीम का प्रशिक्षण राजगढ़ में चल रहा था। कोच फिरोज खान, किरण वर्मा और दल प्रमुख देवेन्द्र सक्सेना, अभिषेक सेठिया, पिंकी बड़ोनिया ने खिलाड़ियों को तैयार किया है।
इस टीम में वे खिलाड़ी भी शामिल हैं, जिन्होंने आर्थिक परेशानियों और पारिवारिक दुख के बावजूद अपने खेल में ऐसा प्रदर्शन किया कि अब वे प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने जा रही हैं। टीम में विदिशा, राजगढ़, मंदसौर, सागर, छिंदवाड़ा, नर्मदापुरम, इंदौर, और जबलपुर की बेटियां शामिल हैं। ये खिलाड़ी बेहद साधारण परिवारों से हैं, लेकिन इनके हौसले बुलंद हैं।
संघर्ष से आगे बढ़ने की कहानियां
1. रौनक सनोडिया (छिंदवाड़ा)
रौनक, घोगरी की 12वीं कक्षा की छात्रा, ने बताया कि उसकी मां ने 12 साल पहले पारिवारिक तनाव और पिता की शराब की लत से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। पिता मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं। परिवार की जमीन पर अन्य लोग खेती करते हैं।
आर्थिक तंगी के बावजूद रौनक ने हार नहीं मानी। चाचा और कोच के सहयोग से वह अपने खेल पर फोकस कर रही है। उसका सपना है कि वह अपने खेल से अपने परिवार की स्थिति सुधार सके।
2. रंजना कैथवाष (मंदसौर)
पांच बार नेशनल खेल चुकी रंजना ने बताया कि उसके पिता ऑटो चलाते हैं और मां दूसरों के घर खाना बनाकर परिवार का पालन करती हैं। परिवार की कठिनाइयों के बावजूद उसे माता-पिता का पूरा सहयोग मिला। रंजना का सपना है कि वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करे।
3. जिया मिश्रा (सागर)
जिया के पिता का किडनी की बीमारी से निधन हो चुका है। उसकी मां दूसरों के घर खाना बनाकर परिवार का पालन करती हैं। जिया ने बताया कि वह एक नेशनल खेल चुकी है और वॉलीबॉल में बेहतर प्रदर्शन करते हुए पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर बनना चाहती है। उसने कहा कि इस खेल ने उसे आत्मनिर्भर बनने का रास्ता दिखाया है।