सोचिए आपको सिरदर्द है और इलाज के लिए सिर पर हथौड़ा मार दिया जाए! अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कुछ ऐसा ही अपने देश के साथ किया है। ट्रम्प ने अमेरिका के घरेलू प्रोडक्ट को बढ़ावा देने और व्यापार घाटा कम करने के लिए भारत से लेकर चीन, जापान, यूरोप
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एक्सपर्ट्स क्यों मानते हैं कि डोनाल्ड ट्रम्प ने सबसे बड़ी आर्थिक गलती कर दी है और क्या अब फैसला पलटना पड़ सकता है; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…
सवाल-1: ट्रम्प का रेसिप्रोकल टैरिफ क्या है, जिसने पूरी दुनिया में उथल-पुथल मचा दी?
जवाब: टैरिफ एक तरह की बॉर्डर फीस या टैक्स होता है, जो कोई भी देश विदेशों से अपने यहां आने वाले सामान पर लगाता है। इसे आयात करने वाली कंपनियों से सरकार वसूलती है। इसे घटा-बढ़ाकर ही देश आपस में व्यापार को कंट्रोल करते हैं।
अमेरिका जितना सामान दूसरे देशों को बेचता है, उससे कहीं ज्यादा खरीदता है। इससे उनका व्यापार घाटा बढ़ा हुआ है। ट्रम्प कहते आए हैं कि अगर कोई देश अमेरिकी सामानों पर ज्यादा टैरिफ लगाता है, तो अमेरिका भी उस देश से आने वाली चीजों पर ज्यादा टैरिफ बढ़ाएगा। उन्होंने इसे रेसिप्रोकल टैरिफ यानी जैसे को तैसा टैरिफ कहा। इससे वो व्यापार घाटा कंट्रोल करना चाहते हैं।
ट्रम्प ने 2 अप्रैल को भारत समेत करीब 100 देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा करते हुए कहा, ‘आज लिबरेशन डे है, जिसका अमेरिका लंबे समय से इंतजार कर रहा था।’
ट्रम्प ने कहा,
भारत अमेरिका पर 52% तक टैरिफ लगाता है, इसलिए अमेरिका भारत पर 26% टैरिफ लगाएगा। अन्य देश हमसे जितना टैरिफ वसूल रहे, हम उनसे लगभग आधे टैरिफ लेंगे। इसलिए ये डिस्काउंटेड रेसिप्रोकल टैरिफ होंगे।

टैरिफ के एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर दस्तखत करते ट्रम्प। भारत के अलावा चीन पर 34%, श्रीलंका पर 44%, बांग्लादेश पर 37%, ताइवान पर 32%, पाकिस्तान पर 29% और जापान पर 24% टैरिफ लगाने का ऐलान किया गया।
सवाल-2: ट्रम्प ने कैसे तय किया है कि किस देश पर कितना टैरिफ लगाएंगे?
जवाब: जाने-माने अर्थशास्त्री और JNU के रिटायर्ट प्रोफेसर अरुण कुमार के मुताबिक ट्रम्प के रेसिप्रोकल टैरिफ में फॉल्ट है। ये टैरिफ के बदले टैरिफ नहीं है, बल्कि इसके पीछे व्यापार घाटे का गणित लगा दिया गया है।
ट्रम्प की टीम ने रेसिप्रोकल टैरिफ तय करने के लिए 4 स्टेप में काम किया…
1. ट्रेड डेफिटिस निकालना: पहले अमेरिका और किसी देश (उदाहरण के लिए भारत) के बीच ट्रेड डेफिसिट का कैलकुलेशन किया। ट्रेड डेफिसिट यानी अमेरिका भारत से जितना सामान आयात करता है, उससे कितना कम निर्यात करता है। उदाहरण- मान लीजिए अमेरिका ने भारत से 87 अरब डॉलर का सामान आयात किया और भारत को 41 अरब डॉलर का सामान निर्यात किया, तो ट्रेड डेफिसिट 46 अरब डॉलर होगा।
2. ट्रेड डेफिसिट का प्रतिशत निकालना: अमेरिका का ट्रेड डेफिसिट 46 अरब डॉलर है तो इसे अमेरिका में आयातित 87 अरब डॉलर से डिवाइड किया जाएगा। इससे अमेरिका और भारत के बीच 52% का ट्रेड डेफिसिट निकला।
3. टैरिफ को आधा करना: अब इस प्रतिशत को आधा कर देते हैं। यानी 52% का आधा 26%। अमेरिका ने भारत पर 26% रेसिप्रोकल टैरिफ ही लगाया है। ट्रम्प इसे काइंड या डिस्काउंटेड रेसिप्रोकल कहते हैं।
4. न्यूनतम 10% का नियम: अगर किसी देश के साथ यह प्रतिशत 10% से कम आता है या अमेरिका का उस देश के साथ बिजनेस सरप्लस है, तो भी कम से कम 10% टैरिफ लगाया है। जैसे- ब्राजील।

सवाल-3: आखिर ट्रम्प के रेसिप्रोकल टैरिफ को एक बड़ी गलती क्यों कहा जा रहा है?
जवाबः असली रेसिप्रोकल टैरिफ में दोनों देशों के टैरिफ की बराबरी होती है, लेकिन यहां सिर्फ अमेरिका की तरफ से व्यापार घाटे को खत्म करने की कोशिश है। इस फॉर्मूले में कई खामियां हैं। जैसे…
- ब्राजील का एग्जांपल लीजिए। ब्राजील अमेरिकी सामानों पर यूरोपियन यूनियन के मुकाबले कहीं ज्यादा टैरिफ लगाता है, लेकिन इस फॉर्मूले से उसे सिर्फ 10% मिनिमम टैरिफ ही देना पड़ेगा, जबकि यूरोपियन यूनियन पर 20% टैरिफ लगाया गया है।
- एक और एग्जांपल बोत्सवाना का लेते हैं। इस छोटे से देश पर ट्रम्प ने 37% टैरिफ लगाया है क्योंकि बोत्सवाना से जितना इम्पोर्ट होता है, उसके मुकाबले अमेरिका 25% भी एक्सपोर्ट नहीं करता, लेकिन बोत्सवाना से अमेरिका सिर्फ डायमंड खरीदता है। ये कुछ-कुछ वैसा ही हुआ कि हम ज्वेलर्स के पास जाएं और बोलें कि अंगूठी तो मैं खरीद लूंगा, लेकिन तुम उतने ही कीमत का सामान मुझसे खरीदो।
द इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक अपनी इस प्रैक्टिस से अमेरिका में इम्पोर्ट होने वाली कमोबेश हर चीज के दाम बढ़ जाएंगे। इससे महंगाई बढ़ेगी। लॉन्ग टर्म में ये उनकी इकोनॉमी को नुकसान पहुंचाएगा।
JNU के प्रोफेसर और विदेश मामलों के जानकार राजन कुमार कहते हैं, ‘ट्रम्प का रेसिप्रोकल टैरिफ ऐसा है जैसे सिरदर्द का इलाज करने के लिए सिर पर हथौड़ा मार दिया जाए। इसका सीधा असर भारत समेत कई देशों पर तो पड़ेगा ही, लेकिन इससे अमेरिका को भी घाटा होगा।’
सवाल-4: ट्रम्प के टैरिफ के कौन से नेगेटिव इम्पैक्ट दिखने लगे हैं?
जवाब: ट्रम्प के रेसिप्रोकल टैरिफ का इम्पैक्ट…
1. अमेरिकी शेयर मार्केट में भारी गिरावट: अमेरिकी शेयर मार्केट 4 अप्रैल को करीब 2,231 पॉइंट यानी 5.50% गिरकर 38,314 के स्तर पर बंद हुआ। 3 अप्रैल को यह 3।98% गिरा था। दो दिन में डाउ जोन्स 9% से ज्यादा गिरा है। इस गिरावट से अमेरिकी शेयर बाजार का मार्केट कैप 2 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा कम हो गया।
2. चीन का जवाबी टैरिफः ट्रम्प के टैरिफ के बदले चीन ने 34% का जवाबी टैरिफ लगाने का ऐलान किया। चीन की स्टेट काउंसिल टैरिफ कमीशन ने कहा, ‘अमेरिका का यह तरीका अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों के खिलाफ है। यह चीन के हितों को गंभीर नुकसान पहुंचाता है और एकतरफा धमकाने की नीति का उदाहरण है।’
3. जापान के शेयर बाजार में बड़ी गिरावटः जापान के शेयर मार्केट में पिछले कई सालों में एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई। निक्केई इंडेक्स 1.7% गिरा और टॉपिक्स इंडेक्स लगभग 2% गिर गया।
4. फ्रांस बोला- अमेरिका से व्यापार नहीं करेंगेः फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा, ‘यूरोप और बाकी दुनिया के खिलाफ लगाए गए टैरिफ के बारे में स्थिति साफ होने तक अमेरिका से व्यापार नहीं किया जाए। ट्रम्प के टैरिफ ऐलान के बाद अमेरिकी लोग कमजोर और गरीब हो जाएंगे।
5. भारत की डायमंड इंडस्ट्री निराशः भारत दुनिया का सबसे बड़ा हीरा काटने और पॉलिश करने वाला देश है। भारत अपने पूरे डायमंड इंडस्ट्री का 30% अमेरिका को निर्यात करता है। कामा ज्वेलरी के डायरेक्टर कोलिन शाह के मुताबिक, ‘टैरिफ उम्मीद से ज्यादा है। यह काफी सख्त है और निर्यात को प्रभावित करेगा।’
इसके अलावा कनाडा ने अमेरिकी कारों पर 25% टैरिफ का ऐलान किया है। वहीं, ब्राजील संसद ने सर्वसम्मति से एक रेसिप्रोकल विधेयक पारित किया, जिससे सरकार को जवाबी टैरिफ लगाने का अधिकार मिल गया है। ब्राजील सरकार ने टैरिफ के मुद्दे को WTO में लेकर जाने की बात कही है।
सवाल-5: क्या ट्रम्प को वापस लेना पड़ेगा रेसिप्रोकल टैरिफ का फैसला?
जवाब: विदेशी मामलों के जानकार प्रो. राजन कुमार का कहना है,

ट्रम्प ने जिस तरह रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा की और करीब 100 देशों पर अपने मनमुताबिक टैरिफ सेट कर दिया, इससे कहना मुश्किल है कि ट्रम्प टैरिफ वापस लेंगे। वे दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति हैं और उनके कुछ पुराने फैसलों को देखकर कहना मुश्किल है कि टैरिफ वापस होगा।
हालांकि प्रो. अरुण कुमार कहते हैं, ‘अगर ट्रम्प के इस फैसले से अमेरिका में महंगाई बढ़ी और मंदी आ गई, तो देश के अंदर से दबाव बढ़ेगा। दूसरी तरफ अगर सारे देश मिलकर अमेरिका से आयात बंद कर दें और जमकर विरोध करें, तो ट्रम्प को अपना फैसला वापस लेना पड़ेगा।’
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