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पाकिस्तान के रेलमंत्री हनीफ अब्बासी सबसे विनाशकारी हथियार की धमकी ऐसे दे रहे, मानो दिवाली के पटाखे हों। अमेरिका भी इसके खतरे समझता है। इसलिए कहा जाता है कि उसने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को कब्जे में लेने का एक ‘कंटिन्जेंसी प्लान’ बना रखा है।
क्या सच में अमेरिका का ऐसा कोई प्लान है, ये किन हालातों में एक्टिवेट होगा और क्या अलग-अलग लोकेशन पर छिपाकर रखे गए 100 से ज्यादा परमाणु हथियारों को कब्जे में लेना संभव है; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…
सवाल-1: पाकिस्तान फौरन न्यूक्लियर अटैक की धमकी क्यों देने लगता है?
जवाब: भारत और पाकिस्तान दोनों ने 1998 में परमाणु परीक्षण किए। 2003 में भारत ने न्यूक्लियर अटैक के लिए ‘No First Use’ की पॉलिसी अपनाई। यानी भारत पहला वार नहीं करेगा। इसलिए भारत की लीडरशिप कभी परमाणु हमले की धमकी नहीं देती।
दूसरी तरफ पाकिस्तान का कोई न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन नहीं है। वो मौका आने पर पहले भी न्यूक्लियर अटैक कर सकता है। इसलिए अपने परमाणु हथियारों को हाई-अलर्ट पर रखता है।
अमेरिकी थिंकटैंक सेंटर फॉर स्ट्रैटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज की रिसर्च एसोसिएट दीया अष्टकला के मुताबिक पाकिस्तान का न्यूक्लियर प्रोग्राम पूरी तरह से अपनी सैन्य कमजोरियों को छिपाने और भारत से मुकाबला करने के लिए है।
पाकिस्तान को लगता है कि अगर पारंपरिक युद्ध हुआ, तो वह हार सकता है। इसलिए परमाणु धमकी से डराने की कोशिश करता है।
28 मई 1998 को बलूचिस्तान के चगाई जिले में पहला सफल परमाणु परीक्षण करने के बाद पाकिस्तान की टीम और नेता। इस परीक्षण को चगाई-1 कोडनेम दिया गया था।
सवाल-2: क्या अमेरिका ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर कब्जे का कोई कंटिन्जेंसी प्लान बनाया है?
जवाब: न्यूक्लियर हथियारों के बारे में एक शब्द प्रचलित है – लूज न्यूक्स। यानी ऐसे परमाणु हथियार जिनके गलत हाथों में पड़ने का खतरा है। अमेरिका को डर है कि पाकिस्तान में अगर कट्टरपंथी ताकतें सत्ता या फौज पर काबिज हो जाती हैं, या अगर आतंकी संगठनों को इन हथियारों तक पहुंच मिल जाए, तो दुनिया के लिए बड़ा खतरा पैदा हो सकता है।
11 अप्रैल 2010 को तब के अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने साउथ अफ्रीका के प्रेसिडेंट जैकब जुमा को लिखा,

अल-कायदा जैसे संगठन परमाणु हथियार हासिल करने की कोशिश में हैं और उन्हें इनको इस्तेमाल करते हुए कोई अफसोस नहीं होगा। अमेरिका की यही सबसे बड़ी चिंता है।
अमेरिका के गवर्नमेंट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (GTI) की वेबसाइट पर छपे आर्टिकल के मुताबिक, ‘2 मई 2011 को लादेन के मारे जाने के बाद पाकिस्तान के तब के आर्मी चीफ जनरल अशफाक कयानी ने परमाणु हथियारों की सिक्योरिटी के इंचार्ज लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) खालिद किदवई को फोन किया। कयानी को चिंता थी कि अमेरिका पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को हथियाने की कोशिश कर सकता है।’
2011 में ही अमेरिकी चैनल NBC न्यूज ने कई अमेरिकी ऑफिसर्स से बातचीत के आधार पर दावा किया कि अमेरिका ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को छीनने का इमरजेंसी प्लान बनाया है। 9/11 हमले के पहले से ही पाकिस्तान के न्यूक्लियर वेपंस की सुरक्षा सुनिश्चित करना अमेरिका की टॉप प्रायोरिटी है।
अमेरिका के काउंटर टेररिज्म डिपार्टमेंट के डिप्टी डायरेक्टर रहे रोजर क्रेसी ने NBC न्यूज से कहा था कि पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को लेकर अमेरिकी का प्लान तैयार है। 2005 में भी अमेरिका के तब के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर कोंडोलीजा राइस ने कहा था कि इस्लामी तख्तापलट की स्थिति में पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की समस्या से निपटने के लिए हम तैयार हैं।
WikiLeaks और कुछ अमेरिकी डिफेंस जर्नल्स ने रिपोर्ट किया है कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच पर्दे के पीछे डिस्कशन होता रहा है कि अमेरिका क्या करेगा अगर हथियार खतरे में दिखें। अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA और स्पेशल फोर्सेस ने कथित तौर पर एक कोवर्ट प्लान तैयार किया है, जिसमें…
- पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों की लोकेशन मैप की गई।
- इन पर तेजी से कब्जा करने के लिए ऑपरेशनल स्केच बनाए गए।
- अगर जरूरी हो तो परमाणु हथियारों को डिसेबल या उड़ाने के विकल्प भी शामिल किए गए हैं।
सवाल-3: अमेरिका इस प्लान को किन हालातों में एक्टिवेट करेगा?
जवाब: NBC न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक इन चार सिनेरियो में अमेरिका पाकिस्तानी परमाणु हथियार कब्जा करने का प्लान एक्टिवेट कर सकता है…
सिनेरियो-1: आतंकी पाकिस्तान के न्यूक्लियर हथियारों पर कंट्रोल कर लें
- पाकिस्तान का स्ट्रैटजिक प्लान डिपार्टमेंट न्यूक्लियर हथियारों की सुरक्षा और निगरानी का काम देखता है। करीब 9 हजार वैज्ञानिक पाकिस्तान की न्यूक्लियर साइट्स पर काम करते हैं। दो रिटायर्ड पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिकों के ओसामा बिन लादेन से मुलाकात की खबरें आई थी।
- नवंबर 2007 में एक आत्मघाती हमलावर ने पाकिस्तानी एयर बेस पर एक बस पर हमला किया, माना जाता है कि उसमें परमाणु हथियार थे।
- दिसंबर 2007 में पाकिस्तान के कामरा एयरबेस पर आत्मघाती हमला हुआ, जिसमें न्यूक्लियर वेपंस के हिस्से आपस में जोड़कर हथियार तैयार किया जाता है।
- GTI के मुताबिक, 2011 तक आतंकी पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम से जुड़ी कम से कम 6 साइट्स को निशाना बना चुके हैं। अगर आतंकी परमाणु हथियार हासिल करने के बेहद करीब पहुंचते हैं तो अमेरिकी प्लान एक्टिवेट हो सकता है।
सिनेरियो-2: इस्लामी कट्टरपंथियों का सरकार या सेना पर कंट्रोल हो जाए
- 28 सितंबर 2021 को अमेरिकी थिंक टैंक ब्रूकिंग्स की वेबसाइट पर मार्विन काल्ब लिखते हैं, ‘पाकिस्तानी नेता आतंकियों के साथ मिलकर काम करते रहे हैं।’ 2012 में ब्रिगेडियर अली खान समेत 4 पाक मिलिट्री ऑफिसर्स को आतंकी संगठनों से संपर्क रखने के आरोप में सजा सुनाई गई।
- लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) रामेश्वर रॉय कहते हैं कि 50 इस्लामिक देशों में से अकेले पाकिस्तान के पास न्यूक्लियर वेपन हैं, इनकी कमान सेना के हाथ में रहती है। ये वेपन इस्मालिक कट्टरपंथी आतंकियों के निशाने पर रहते हैं। अल-कायदा जैसे संगठनों ने कई बार इन वेपंस को हथियाने की कोशिश की है। ऐसा आगे भी हो सकता है। अगर ऐसा होता है तो अमेरिका प्लान एक्टिवेट कर देगा।
सिनेरियो-3: पाकिस्तान में अंदरूनी अराजकता फैल जाए
- जब सरकार अस्थिर हो जाए, आर्थिक तौर पर पाकिस्तान बर्बादी की कगार पर हो और तख्तापलट जैसी स्थितियां हों। ऐसे में परमाणु हथियारों की सिक्योरिटी के लिए अमेरिका आगे आ सकता है।
सिनेरियो-4: भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने की तैयारी हो
- पाकिस्तानी न्यूक्लियर हथियार कब्जाने का प्लान भारत-पाकिस्तान जंग की स्थिति में भी अंजाम दिया जा सकता है। अगर पाकिस्तान परमाणु हमला करने वाला हो, क्योंकि भारत और पाकिस्तान दोनों साउथ एशिया के देश हैं, जहां दुनिया में सबसे घनी आबादी रहती है।
सवाल-4: अमेरिका इस प्लान को कैसे अंजाम देगा?
जवाब: GTI के मुताबिक, पाकिस्तान के न्यूक्लियर वेपंस को कब्जाने के दो मुख्य प्लान हैं, जो अलग-अलग स्थितियों में काम करेंगे…
1. अगर कोई एक परमाणु हथियार गायब हो जाए
- ऐसे में ओसामा बिन लादेन पर हमले जैसा लिमिटेड ऑपरेशन होगा। इसके लिए अमेरिका ने स्पेशल ट्रेंड यूनिट्स बनाई हैं, जिनमें उसकी नेवी के सील कमांडो और एक्सप्लोसिव डिस्पोज करने वाले एक्सपर्ट्स होंगे।
- अमेरिका की जॉइंट स्पेशल ऑपरेशन कमांड (JSOC) के पास जेट्स, पैराशूट और बाकी सारी उपकरण होते हैं। JSOC पहले भी न्यूक्लियर वेपन्स को डीएक्टिवेट करने वाले ‘रेंडर सेफ मिशन’ को अंजाम दे चुकी है।
- ह्यूग शेल्टन 1997 से 2001 अमेरिका के ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के प्रमुख थे। उन्होंने बताया, ‘90 के दशक में नॉर्थ कोरिया से आ रहे एक शिप में इस तरह के हथियार थे। हमने बिना कोई निशान छोड़े उसे पकड़ लिया था।’
2. पाकिस्तान में मौजूद सभी परमाणु हथियारों पर खतरा
- अमेरिका के एक पूर्व ऑफिसर कहते हैं कि तख्तापलट या गृहयुद्ध की स्थिति में JSOC को पूरे पाकिस्तान के सभी न्यूक्लियर वेपंस को कब्जे में लेना होगा। इसमें सेंट्रल कमांड, मरीन कमांडो, दूसरी सैन्य टुकड़ियों और एक्सपर्ट्स को भी शामिल करना होगा।
- JSOC कई सालों से इस तरह के ऑपरेशन की तैयारी कर रहा है। वह न्यूक्लियर साइट्स पर जाकर हथियार खोजने और साइट को खाली करने जैसे कामों की ट्रेनिंग ले चुकी है।

सवाल-5: क्या 170 परमाणु हथियारों पर अमेरिका का कब्जा करना इतना आसान है?
जवाब: ओसामा की हत्या के बाद पाकिस्तान ने अपने न्यूक्लियर वेपंस की सिक्योरिटी बढ़ा दी थी। GTI के मुताबिक, जनरल कयानी चिंतित थे कि अमेरिका के पास पाकिस्तान के एक से ज्यादा साइट्स पर रखे न्यूक्लियर वेपंस पर रेड करने की क्षमता है। इस पर किदवई ने कयानी से वादा किया कि वह न्यूक्लियर साइट्स पर अमेरिकी और भारतीय जासूसी को घुसने से रोकेंगे।
कयानी से किदवई ने ये भी कहा कि हमारा न्यूक्लियर प्रोग्राम पूरे देश में फैला हुआ है। इसलिए अमेरिका को पूरे देश पर बड़े पैमाने पर हमला करना होगा। इसके बाद किदवई ने परमाणु हथियारों को तितर-बितर करने का आदेश दिया था।
SPD, तब से परमाणु हथियारों को 15 या उससे ज्यादा न्यूक्लियर फैसिलिटीज के बीच शिफ्ट करता रहता है। परमाणु हथियारों को मेंटेनेंस के लिए ले जाते समय जासूसों और सैटेलाइट्स की नजर से बचाने के लिए कभी हेलीकॉप्टर से तो कभी बुलेटप्रूफ गाड़ियों के बजाय बिना सिक्योरिटी की पब्लिक वैन से ले जाया जाता है।
एक सीनियर अमेरिकी खुफिया ऑफिसर ने नेशनल जर्नल को बताया कि डीमेटेड यानी परमाणु हथियारों को अलग-अलग हिस्सों में करने के बजाय लॉन्च के लिए तैयार यानी मेटेड वेपंस को भी बिना सुरक्षा के गाड़ियों से ले जाया जा रहा है।
अमेरिका सुरक्षा बढ़ाने के लिए SPD को सैकड़ों करोड़ रुपए दे चुका है, लेकिन पाकिस्तान ने कभी भी अमेरिका को इस पैसे का ऑडिट नहीं करने दिया।
न्यूक्लियर एक्सपर्ट्स का मानना है कि CIA जैसी अमेरिका की खुफिया एजेंसियों को पाकिस्तान के सभी परमाणु ठिकानों की जानकारी होना मुश्किल है। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे जनरल जेम्स जोन्स ने 2011 में कहा था, ‘कोई भी व्यक्ति जो आपको यह कहे कि उसे पता है पाकिस्तान के सभी न्यूक्लियर वेपन कहां हैं तो वह झूठ बोल रहा है।’
असलियत यह है कि भारत की तरह पाकिस्तान का न्यूक्लियर प्रोग्राम पारदर्शी नहीं है। पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की संख्या और लोकेशन के बारे में भी सिर्फ अंदाजे लगाए जाते हैं। ऐसे में अमेरिका के लिए उसके सभी न्यूक्लियर वेपंस को डीएक्टिवेट करना या कब्जे में लेना मुश्किल है।
सवाल-6: क्या पाकिस्तान को अमेरिका के इस प्लान के बारे में पता है?
जवाब: पाकिस्तानी नेता नहीं मानते कि उनके परमाणु हथियार को कोई खतरा है। सेना में कट्टरपंथी ऑफिसर्स या आतंकियों से ऑफिसर्स की नजदीकी से भी पाकिस्तान इनकार करता रहा है।
पाकिस्तान की SPD की नींव रखने वाले परवेज मुशर्रफ ने नेशनल जर्नल से कहा था, ‘ये कहना गलत होगा कि हथियार गलत हाथों में जा सकते हैं।’
GTI के मुताबिक, पाकिस्तान के नेताओं को लंबे अरसे से पता है कि अमेरिकी सेना ने उसके परमाणु हथियार कब्जाने की योजना बनाई है। अमेरिका कहता है कि ऐसा कोई भी सेफ-रेंडर मिशन तभी एक्टिव किया जाएगा जब बाकी सारे तरीके फेल हो जाएंगे।
अमेरिका ने खुलकर ऐसा कोई बयान नहीं दिया है कि वह पाकिस्तान के न्यूक्लियर वेपंस को लेकर कोई कार्रवाई करने जा रहा है।
अमेरिका पाकिस्तान से यह कहता है कि उसका इरादा न्यूक्लियर वेपंस पर पाकिस्तान को लंबे समय तक सुरक्षित तरीके से पकड़ बनाए रखने में अमेरिका की मदद करना है। नेशनल जर्नल के मुताबिक, पाकिस्तान के कुछ ऑफिसर्स अमेरिका के इस प्लान का समर्थन भी करते हैं।
सवाल-7: अगर अमेरिका ने पाकिस्तान के हथियार कब्जा लिए तो इससे भारत का क्या फायदा होगा?
जवाब: लेफ्टिनेंट जनरल (रि) रामेश्वर रॉय कहते हैं,

अभी पूरी दुनिया में तनाव के हालात हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराइल-ईरान संघर्ष के बीच अमेरिका पाकिस्तान में उसकी संप्रभुता के खिलाफ जाकर ऐसी कोई कार्रवाई करे, इसकी संभावना न के बराबर है। हालांकि अगर ऐसा होता है तो यह एक जहरीले सांप के जहर के दांत तोड़ने जैसा होगा।
हालांकि रामेश्वर कहते हैं कि अगर पाकिस्तान के न्यूक्लियर हथियार नष्ट हो जाते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि भारत उस पर हमला करने लगेगा, लेकिन वह कम से कम भारत को परमाणु हमले की धमकी नहीं दे सकेगा।
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