‘जब मैं चार साल की थी, मैंने अपनी मां से पूछा था कि क्या वह मुझे फिर से गर्भ में रख सकती हैं और काले से गोरा और खूबसूरत बना सकती हैं?’
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ये बात केरल की मुख्य सचिव सारदा मुरलीधरन ने एक फेसबुक पोस्ट में कही। दरअसल, किसी ने सारदा के कार्यकाल पर सवाल उठाते हुए उनके रंग पर कमेंट किया था। सारदा ने कहा- यह स्वीकार करना जरूरी है कि कालापन ऐसी चीज है जो मूल्यवान और सुंदर है।
सारदा 31 अगस्त 2024 को अपने पति वी वेणु के रिटायरमेंट के बाद चीफ सेक्रेटरी बनीं थीं। वे 1990 बैच की IAS ऑफिसर हैं और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी की डायरेक्टर जनरल भी रही हैं।
सुंदरता आखिर है क्या, इसमें शरीर के रंग और बनावट की क्या भूमिका और समय के साथ कैसे बदलते हैं खूबसूरती के पैमाने; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…
सवाल-1: भारत में खूबसूरती को काले और गोरे से जोड़कर क्यों देखा जाता है? जवाब: हिंदू परंपरा में पुरुषों की सुंदरता का प्रतीक भगवान ‘कृष्ण’ को माना जाता है। वो श्याम वर्ण के थे। वाल्मीकि रामायण के मुताबिक भगवान राम का रंग भी सांवला था और वो बेहद सुंदर माने जाते हैं।
मध्यकाल में भारत आए कई यात्रियों ने भी इस बात को लिखा है। 1292 में भारत आए इतालवी व्यापारी मार्को पोलो ने अपनी किताब ‘द ट्रैवल्स’ में लिखा है कि यहां सबसे काले इंसान को सबसे ज्यादा सम्मान मिलता है। ये लोग अपने देवताओं और मूर्तियों को काला और शैतानों को बर्फ की तरह सफेद दिखाते हैं।
16वीं शताब्दी के बाद मुगल शासन के दौरान, भारत के लोगों में गोरे रंग की ओर आकर्षण बढ़ा। मुगल शासक और उनके दरबार में सेंट्रल एशिया और फारसी मूल के लोग थे, जिनकी त्वचा अपेक्षाकृत गोरी थी। उनकी कला, साहित्य और जीवनशैली ने गोरेपन को शाही और अमीर वर्ग से जोड़ा। यह प्रभाव धीरे-धीरे समाज में फैलने लगा।

मुगल दरबार का एक दृश्य
भारत में ब्रिटिश हुकूमत आई तो उसने काले-गोरे में भयंकर विभाजन शुरू कर दिया। क्योंकि सभी अंग्रेज गोरे थे, इसलिए उन्होंने गोरे रंग को बेहतर बताया और काले रंग को गुलामी, अज्ञानता और हीनता से जोड़ दिया।
उनकी देखा-देखी भारत के उच्च वर्ग ने भी इस विचार को अपना लिया, क्योंकि वो अंग्रेजी शासकों के करीब रहना चाहते थे। इस दौरान गोरे रंग को लेकर एक मानसिकता बनी, जो आज भी कायम है।
आजादी के बाद, यह धारणा और मजबूत हुई। खासकर फिल्म उद्योग और विज्ञापनों के जरिए। 1978 में ‘फेयर एंड लवली’ जैसी क्रीम की शुरुआत ने गोरेपन को बड़ा बिजनेस बना दिया। बॉलीवुड ने भी गोरे कलाकारों को खूबसूरत बताया गया, जिससे आम लोगों में यह चाहत बढ़ी।
‘द इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इंडियन साइकोलॉजी’ ने दिल्ली-एनसीआर में 18 से 30 साल के 100 युवाओं पर स्टडी की। इस रिसर्च में पता चला कि लोग अपने रंग के हिसाब से ही सुंदरता की पसंद तय करते हैं। हालांकि इसमें गोरे रंग की ओर झुकाव ज्यादा दिखा।
सवाल-2: सुंदरता आखिर होती क्या है? जवाबः कहा जाता है कि ‘Beauty lies in the eyes of the beholder’ यानी सुंदरता देखने वाले की आंखों में होती है। सुंदरता की कोई एक परिभाषा नहीं है। दुनिया में सुंदरता से जुड़ी अलग-अलग थ्योरीज हैं।
इसमें एक थ्योरी रिप्रोडक्शन यानी प्रजनन की बायोलॉजी से जुड़ी है। विकासवादी जीवविज्ञानी मानते हैं कि कोई महिला या पुरुष प्रजनन और बच्चे पैदा करने के लिए प्राकृतिक रूप से जितना सक्षम और उपयोगी है, वो उतनी ही आकर्षक और सुंदर लग सकती है।

इसी वजह से महिलाओं में सुंदरता के लिए सुडौल स्तन, लंबे बाल, सुराही जैसी गर्दन, चेहरे की सिमेट्री, बड़ा पेल्विक जैसे पैरामीटर इवॉल्व हुए हैं। इसी तरह पुरुषों में लंबा कद, गठीला शरीर, भारी आवाज, घने काले बाल और चेहरे की सिमेट्री जैसे पैमाने इवॉल्व हुए। इस थ्योरी के मुताबिक…
- सुडौल स्तनों का मतलब महिला शारीरिक तौर पर मजबूत है और वो अपने बच्चों को पर्याप्त पोषण दे सकती है।
- बाल लंबे हैं या आवाज सुरीली होने का मतलब है कि उसमें हॉर्मोनल डेवलपमेंट बेहतर तरीके से हुआ है।
- बड़े पेल्विस एरिया का मतलब है कि महिला अपने गर्भ में स्वस्थ बच्चे को आराम से रख सकती है।
- इसी तरह लंबा कद, गठीला शरीर, भारी आवाज, घने काले बाल वाले पुरुषों की प्रजनन क्षमता अच्छी होने की संभावना ज्यादा होती है और वो स्वस्थ नस्ल पैदा कर सकते हैं।
- चेहरे की लंबाई, चौड़ाई, आंखों की दूरी, नाक का आकार और होठों की स्थिति अगर एक सिमेट्री में है यानी शख्स में कोई विकार नहीं है। ये भी सुंदरता का पैमाना है।

सुंदरता मापने के लिए इस तरह गोल्डन सिमेट्री फेस थ्योरी का इस्तेमाल होता है। यानी आपके चेहरे को बीच से एक-दूसरे पर पलटा जाए तो आकार बराबर रहे।
सवाल-3: दुनिया में समय के साथ खूबसूरती के कुछ पैमाने कैसे बदलते रहते हैं? जवाब: खूबसूरती के कुछ पैमाने और मानक लगातार बदलते रहते हैं। यह बदलाव समाज के सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी बदलावों के साथ होता रहा है…
- पुराने समय में मिस्र में काले रंग को सकारात्मक रूप में देखा जाता था और पतली आकृति को बेहतर माना जाता था।
- ग्रीस और रोम में कसा हुआ शरीर और चमकदार त्वचा को खूबसूरती की निशानी माना जाता था। महिलाओं में हल्के यानी सांवले रंग की त्वचा को अपर क्लास और गहरे रंग को लोअर क्लास से जोड़ा जाता था।
- मध्यकाल की शुरुआत से खूबसूरती का पैमाना धार्मिक मान्यताओं से जुड़ गया। ईसाई धर्म में साधारण और मासूम दिखने वाली महिलाओं को अच्छा माना जाता था।
- महिलाओं में निखरी हुई त्वचा को खूबसूरत और पतली दिखने वाली महिलाओं को बदसूरत कहा जाता था।
- विक्टोरियन काल यानी 18वीं सदी के शुरू होने पर खूबसूरती का पैमाना बदलकर ठहराव, सादगी और सभ्यता हो गया। उस समय महिलाओं को फुल स्कर्ट्स, कसे हुए कोरसेट्स और लंबी चादरों में देखा जाता था।
- 20वीं सदी में हॉलीवुड फिल्मों का खूबसूरती पर बड़ा असर पड़ा। अभिनेत्री मार्लिन मुनरो, ऑड्री हेपबर्न और ब्रिजिट बार्डोट जैसी हस्तियों ने स्टाइल और सुंदरता के पैमाने गढ़े। इस दौरान पतला शरीर, हल्का रंग और आकर्षक चेहरे को खूबसूरत माना गया।
- अब 21वीं सदी में सिर्फ चेहरा या शरीर नहीं, आत्मविश्वास और खुशी भी सुंदरता का हिस्सा है। मानसिक शांति को भी अहमियत दी जाती है। टीवी, फिल्मों और सोशल मीडिया में हर तरह के लोग दिखते हैं। हर उम्र, रंग और आकार को पसंद किया जाता है।

गायिका डायना रॉस 16 जुलाई 1975 को एक पोर्ट्रेट सत्र के लिए पोज देती हुई। ये उस दौर की खूबसूरत महिलाओं में शामिल थीं।
सवाल-4: अगर गोरा दिखना असल खूबसूरती नहीं, तो इस पर बात क्यों नहीं होती? जवाब: IIFT की एसोसिएट फैकल्टी सपना परमार का कहना है, ‘भारत में खूबसूरती का पैमाना कभी भी किसी का कलर नहीं रहा है। यह वेस्टर्न कल्चर का दिया हुआ है। आज के समय में इसमें सबसे बड़ा योगदान ब्यूटी प्रोडक्ट्स का है। वे खूबसूरती के झूठे स्टैंडर्ड सेट करते हैं, ताकि उनका प्रोडक्ट आसानी से बिक सके। इसके अलावा इसे बढ़ाने में सोशल मीडिया का योगदान भी है।’
सपना परमार का मानना है कि गोरी त्वचा को खूबसूरत समझने की सोच इतनी मजबूत और विकसित हो गई है कि इस पर बात या बहस होती ही नहीं। अगर कोई जन्म से गोरा है तो वो पैदाइशी खूबसूरत है, लेकिन अगर कोई जन्म से काला होता है तो उसे खूबसूरत बोलने की बजाय गोरा करने के नुस्खों पर काम शुरू कर दिया जाता है।
दरअसल, दुनियाभर में खूबसूरती कोई कॉन्स्टैंट चीज नहीं है। इसके अलग-अलग मानक हैं…

इथियोपिया में मुर्सी और सूरी जनजातियों में महिलाओं के होठ में जितना बड़ी प्लेट लगती है, वो उतना ही खूबसूरत और समृद्ध मानी जाती है।

म्यांमार की कायन जनजाति की महिलाएं अपने गले को लंबा करने के लिए पीतल के बने छल्ले पहनती है। लंबी गर्दन ज्यादा खूबसूरती का संकेत है।
सवाल-5: कैसे महिलाएं ज्यादा खूबसूरत दिखने की चाहत में अपनी जान से खेल रहीं हैं? जवाब: समाज में महिलाओं को सुंदर दिखने के लिए बहुत दबाव होता है। महिलाएं हमेशा खूबसूरत दिखें और इसके लिए कई बार वे अपने सेहत, सुरक्षा और खुशी को भी दांव पर लगा देती हैं…
1. सर्जरी और कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट: कुछ महिलाएं अपने चेहरे या शरीर को ज्यादा खूबसूरत बनाने के लिए सर्जरी करवाती हैं। जैसे बोटॉक्स, फिलर्स या होंठों की सर्जरी। ये ट्रीटमेंट तुरंत निखार तो ला सकता है, लेकिन इनमें खतरा भी बहुत है। सर्जरी के बाद इन्फेक्शन, दर्द या स्वास्थ संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
2. बालों के लिए हानिकारक ट्रीटमेंट: घने और लंबे बालों के लिए महिलाएं केमिकल प्रोडक्ट्स और कई उपकरणों का इस्तेमाल करती हैं। बालों को रंगने, स्ट्रेट करने या स्टाइल करने में जो केमिकल्स यूज होते हैं, वे बालों को कमजोर और बेजान कर देते हैं। ज्यादा गर्मी से बाल झड़ने लगते हैं और इनकी प्राकृतिक चमक खो जाती है।
3. त्वचा को नुकसान पहुंचाने वाले प्रोडक्ट्स: गोरी और चमकदार त्वचा पाने के लिए महिलाएं ब्लीचिंग क्रीम या सस्ते स्किन प्रोडक्ट्स यूज करती हैं। इनमें मौजूद केमिकल्स त्वचा को जला सकते हैं, एलर्जी पैदा कर सकते हैं, जिससे प्राकृतिक सुंदरता खत्म हो जाती है।
4. सख्त डाइटिंग और वजन घटाने के तरीके: पतला दिखने के लिए महिलाएं खाना कम खाती हैं या बहुत सख्त डाइट फॉलो करती हैं। कुछ तो जरूरत से ज्यादा एक्सरसाइज करती हैं। इससे शरीर में ताकत कम हो जाती है, थकान रहती है, मूड खराब रहता है और हार्मोन भी बिगड़ सकते हैं। कम खाने से दिमाग पर भी असर पड़ता है, जिससे तनाव और उदासी बढ़ती है। ये सब सिर्फ परफेक्ट बॉडी के लिए किया जाता है।
5. मेंटल प्रेशर और कॉन्फिडेंस की कमी: सोशल मीडिया पर हर तरफ पतली कमर, गोरा चेहरा, परफेक्ट स्किन की पोस्ट दिखती हैं। इन्हें देखकर महिलाएं अपनी असली शक्ल-सूरत से निराश हो जाती हैं। उन्हें लगता है कि वे सुंदर नहीं हैं, जिससे उनका कॉन्फिडेंस कम होता है। ये दबाव उन्हें उदास कर देता है और कई बार वे अपनी जिंदगी से ही नफरत करने लगती हैं।
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रिसर्च सहयोग- अंकुल कुमार
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हमारे गांव में एक कहावत बड़ी प्रचलित थी, जिसे घर की बड़ी-बूढ़ी औरतें हर उस बहू को सुनातीं, जो पेट से होती। कहावत थी- “कथरी हो तो सुथरी, बिटिया हो तो उजरी।” मतलब कि कथरी यानी बिछौना साफ होना चाहिए और लड़की गोरी होनी चाहिए। पूरी खबर पढ़ें…