Saturday, December 28, 2024
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आज का एक्सप्लेनर: जब लड़की के ख्यालों में पढ़ाई भूले मनमोहन, शादी की कोई तस्वीर नहीं; फिश के लिए शाकाहार छोड़ने को तैयार थे


किस्सा उन दिनों का है, जब मनमोहन सिंह कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे। उनकी बेटी दमन सिंह अपनी किताब ‘स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन-गुरशरण’ में लिखती हैं- एक समय ऐसा था जब वे एक खास लड़की के ख्यालों में डूबे रहते थे। इसका असर उनकी पढ़ाई पर हो रहा था।

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इस दौरान उन्होंने कई रिसर्च पेपर लिखे, लेकिन उनके गाइड प्रोफेसर को पसंद नहीं आए। मनमोहन को डांट सुनने पड़ी। वे बेहद निराश हुए। उन्होंने कसम खाई कि वह अब अपने लक्ष्य से कभी नहीं डिगेंगे। इसके बाद मनमोहन ने पढ़ाई पर फोकस किया और उस खास लड़की को हमेशा के लिए भूल गए।

देश के 14वें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का गुरुवार को 92 साल की उम्र में निधन हो गया। आज के एक्सप्लेनर में उनकी निजी जिंदगी के कुछ किस्से, जिन्हें किताबों, इंटरव्यूज और उनके करीबी लोगों के हवाले से लिया गया है…

गुरु ग्रंथ साहिब से मनमोहन का ‘म’ अक्षर मिला

26 सितम्बर 1932 को पाकिस्तान के पंजाब के गाह में गुरमुख सिंह के घर बेटे का जन्म हुआ। गुरमुख सिंह पत्नी और बच्चे के साथ पेशावर में रहते थे। वे एक ड्रायफ्रूट बेचने वाले व्यापारी के पास क्लर्क थे। सिख प्रथा के अनुसार गुरमुख सिंह बच्चे को लेकर सिखों के पवित्र तीर्थ पंजा साहिब गुरुद्वारा पहुंचे।

ग्रंथी से बच्चे के लिए नाम बताने को कहा। ग्रंथी ने गुरु ग्रंथ साहिब खोली और जो पेज खुला उसका पहला अक्षर ‘म’ था। बच्चे को ग्रंथी ने ‘मनमोहन’ नाम दिया। लेकिन उनका पूरा नाम कोई नहीं कहता था, सब उन्हें प्यार से ‘मोहन’ ही कहते थे।

घड़ा टूटा तो अपशकुन माना, मां का निधन हुआ

‘स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन-गुरशरण’ किताब के मुताबिक, 1930 के दशक में नौकरी की वजह से गुरमुख सिंह का पेशावर आना-जाना लगा रहता था। एक बार रास्ते में मिट्टी का घड़ा टूट गया। मोहन की मां अमृत कौर ने इसे अपशकुन माना और बेटे को लेकर वापस गांव आ गईं। कुछ ही दिनों के बाद अमृत कौर का टाइफाइड से निधन हो गया। इसके बाद मनमोहन गांव में अपने चाचा-चाची और दादा-दादी के साथ रहने लगे।

स्कूली पढ़ाई के दौरान मोहन की जेब हमेशा ड्रायफ्रूट्स से भरी रहती थी। उनके दोस्त जेब से ड्रायफ्रूट्स निकालकर खा लेते थे। जब यह बात एक टीचर को पता चली, तो वह भी मोहन की जेब से बादाम निकालकर खाने लगे। जब दादी ने मोहन से बादाम को लेकर सवाल किया, तो वे खामोश रहे। बादाम खिलाने की वजह से टीचर मोहन को मारते नहीं थे।

स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन-गुरशरण बुक लॉन्च करते मनमोहन सिंह, पत्नी गुरशरण कौर और किताब की लेखिका व उनकी बेटी दमन सिंह। किताब 14 सितंबर 2014 को लॉन्च हुई थी।

सौतेली मां के दुलारे, एग्जाम में टाॅप कर रातों-रात हीरो बने

दमन सिंह लिखती हैं कि 1940 के दशक में मनमोहन के पिता ने दूसरी शादी कर ली। उनकी सौतेली मां सीतावंती कौर उन्हें बहुत प्यार करती थीं। उस वक्त मोहन पेशावर के खालसा स्कूल में पढ़ते थे और वहां के बेहतरीन स्टूडेंट थे। उन्होंने स्कूली पढ़ाई के दौरान गुरुमुखी, उर्दू और अंग्रेजी भाषा सीखी। वे स्कूल की लाइब्रेरी में घंटों बैठकर इतिहास और साहित्य की किताबें पढ़ते थे। वे डिबेट कमेटी के अध्यक्ष बन गए।

साल 1945 आते-आते मोहन ने 8वीं क्लास की परीक्षा दी। यह उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत के सभी स्कूलों के लिए आयोजित की गई थी। उन्होंने प्रदेश में तीसरी रैंक और स्कूल में टॉप किया। रातों-रात मोहन की जिंदगी बदल गई। पूरे प्रदेश में उनका नाम हो गया। इसके बाद टीचर्स ने मोहन पर ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया।

13 साल की उम्र में ब्रिटेन की जीत का विरोध किया

14 अगस्त 1945। जब दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हुआ तो मोहन की उम्र 13 साल थी। ‘स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन-गुरशरण’ के मुताबिक, युद्ध खत्म होने के बाद दुनियाभर में जश्न शुरू हो गया था। यह जश्न ब्रिटेन से होता हुआ पेशावर आ पहुंचा।

खालसा स्कूल में टीचर्स और स्टूडेंट्स ने भी मिठाई बांटना शुरू किया। इसका मोहन ने विरोध किया। उन्होंने कहा,

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ब्रिटेन ने फासीवाद को हरा दिया, लेकिन हमें तो गुलाम बना रखा है। ब्रिटेन की जीत से हमारे लिए कुछ नहीं बदलेगा। हमें ये मिठाई क्यों खाना चाहिए, इसलिए कि हम हमेशा गुलाम ही रहेंगे। अंग्रेज हम पर हमेशा शासन करते रहेंगे।

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ये सुनने के बाद किसी टीचर्स और स्टूडेंट ने मिठाई नहीं खाई।

1954 में पंजाब यूनिवर्सिटी के इकोनॉमिक्स डिपार्टमेंट की तस्वीर। इसमें डॉ. मनमोहन सिंह सबसे पीछे की लाइन में दाएं से दूसरे नंबर पर हैं। (सोर्स- द ग्लोबल सिख ट्रेल)

1954 में पंजाब यूनिवर्सिटी के इकोनॉमिक्स डिपार्टमेंट की तस्वीर। इसमें डॉ. मनमोहन सिंह सबसे पीछे की लाइन में दाएं से दूसरे नंबर पर हैं। (सोर्स- द ग्लोबल सिख ट्रेल)

1947 में मैट्रिक का एग्जाम दिया, उसी साल दादा की हत्या

मार्च 1947। हिंदू-मुस्लिम दंगों के दौरान पेशावर में भयानक मंजर था। हर तरफ लाशें बिखरी पड़ी थीं। सड़कों पर बहा खून सूखकर काला हो गया था, दीवारों पर खून के दाग थे। इस दौरान लाहौर की पंजाब यूनिवर्सिटी में मैट्रिक की परीक्षा हुई। इस माहौल में मोहन पढ़ाई करते और लाशों के बीच एग्जाम देने नानकपुरा के इस्लामिया हाई स्कूल जाते।

‘स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन-गुरशरण’ के मुताबिक, अप्रैल 1947 आते-आते हिंसा बढ़ चुकी थी। गांव में मोहन के दादा की हत्या कर दी गई। इसके बाद गुरमुख सिंह अपने परिवार को लेकर भारत आ गए। उन्होंने हिंसा से भरे अमृतसर के बजाय हल्द्वानी में किराए का मकान लिया और परिवार को ठहरा दिया। पेशावर में दुकान और घर होने के कारण वे अकेले वापस चले गए। कुछ महीने आर्मी कैंप में रहने के बाद उन्हें भारत भेजा गया।

पिता डॉक्टर बनाना चाहते थे और मोहन को इकोनॉमिक्स से प्यार हो गया

मार्च 1948। आजादी के बाद स्कूल और कॉलेज खुलने लगे थे। इमरजेंसी एग्जाम शुरू हो चुके थे। देश के साथ पंजाब यूनिवर्सिटी भी बंट गई थी। मनमोहन दोबारा परीक्षा देना चाहते थे। उन्होंने कहा,

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मुझे मैट्रिक की परीक्षा दोबारा देनी चाहिए, क्योंकि पिछले साल पेशावर में दी परीक्षा का नतीजा कभी नहीं आएगा।

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उनका एग्जाम सेंटर दिल्ली के करोल बाग में आया। उन्हें 850 में से 694 मार्क्स मिले। पंजाब यूनिवर्सिटी से उन्हें स्कॉलरशिप भी मिली।

‘स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन-गुरशरण’ के मुताबिक, मोहन के पिता उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे। इस वजह से अप्रैल 1948 में अमृतसर के खालसा कॉलेज में फेलोशिप इन मेडिकल कॉस्मेटोलॉजी में मोहन का दाखिला करवा दिया। लेकिन पढ़ाई में उनका मन नहीं लगा। उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया। वे पिता के साथ दुकान पर बैठने लगे। उनसे चाय-पानी मंगाया जाता, जो उन्हें पसंद नहीं आया।

दमन सिंह ‘स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन-गुरशरण’ में पिता के हवाले से लिखती हैं,

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मैंने सितंबर 1948 में हिंदू कॉलेज में एडमिशन ले लिया था। लेकिन मेरे पिता गुरमुख सिंह को यह पसंद नहीं था, क्योंकि वह अकाली नेता थे। 1950 में मैंने यूनिवर्सिटी में इंटर में टॉप किया और फिर स्कॉलरशिप हासिल की। इस दौरान मुझे इकोनॉमिक्स से प्यार हुआ। फिर मैंने इकोनॉमिक्स और पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएशन किया।

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1958 की इस तस्वीर में डॉ. मनमोहन सिंह पत्नी गुरशरण कौर के साथ। मनमोहन जब गुरशरण से मिले तो उन्होंने पूछा- बीए में आपका कौन सा डिविजन था। गुरशरण बोली- सेकंड डिवीजन।

1958 की इस तस्वीर में डॉ. मनमोहन सिंह पत्नी गुरशरण कौर के साथ। मनमोहन जब गुरशरण से मिले तो उन्होंने पूछा- बीए में आपका कौन सा डिविजन था। गुरशरण बोली- सेकंड डिवीजन।

फोटोग्राफर को बुलाना भूले, शादी की एक भी तस्वीर नहीं

‘स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन-गुरशरण’ के मुताबिक, 1950 के दशक में सरदार छत्तर सिंह कोहली और भागवंती कौर अपनी 19 साल की बेटी गुरशरण की शादी के लिए लड़का ढूंढ रहीं थीं। वे ग्रेजुएट हो चुकीं थीं, इसलिए अच्छे रिश्तों की कमी नहीं थी। दूसरी ओर मनमोहन के घरवाले भी शादी के लिए लड़कियां देख रहे थे। तभी किसी पहचान वाले ने कहा कि अगर मनमोहन गुरशरण से शादी कर लेंगे तो उन्हें दहेज में फिएट कार दी जाएगी। लेकिन मनमोहन को पता चला कि गुरशरण स्कूल तक ही पढ़ी हैं, तो वे रिश्ते से मना करने लगे।

मोहन की बीजी और गुरशरण के घरवालों के बीच जान-पहचान थी। रिश्ते की बात चलने पर मोहन को लड़की देखने बुलाया गया। सफेद सलवार कमीज और प्लेटफॉर्म हील्स पहनी गुरशरण कमरे में दाखिल हुईं।

मोहन ने गुरशरण से पूछा, ‘आपको बीए में कौन सी डिवीजन मिली है?’ गुरशरण बोलीं, ‘सेकेंड।’ दूसरा सवाल पूछा कि अगर आपको विदेश में रहना पड़े तो कैसा लगेगा? गुरशरण ने जवाब दिया, ‘मुझे नहीं पता।’

अगले दिन मोहन होशियारपुर के खालसा कॉलेज गए और गुरशरण के बारे में पता लगाया। प्रिंसिपल ने बताया कि जिस लड़की से शादी की बात चल रही है, वह पढ़ाई में एवरेज है। यह सुनकर वे थोड़ा निराश हुए, लेकिन शादी के लिए फिर भी मान गए। शादी पक्की हो गई।

गुरशरण पांच बहनों में सबसे छोटी थीं और परिवार गरीब था। चार बेटियों की शादी में खूब पैसा लग चुका था। उनके पिता ने कहा कि वे शादी में मामूली दहेज ही दे पाएंगे। मनमोहन ने कहा कि मैं दहेज में विश्वास नहीं रखता। बस मेरे पिता चाहते हैं कि बारात का ठीक से ख्याल रखा जाए।

इसके बाद एक साल सगाई चली, फिर शादी हुई। 150 लोगों की बारात संकरी गली में पहुंची। अचानक बारिश शुरू हो गई और सब बिखर गया। जब बारिश थमी तो शादी शुरू हुई। दूल्हे वाले फोटोग्राफर को बुलाना भूल गए, इसलिए शादी की कोई तस्वीर नहीं खिंच पाई।

तस्वीर प्रधानमंत्री आवास की है। इसमें डॉ. मनमोहन सिंह पत्नी, तीनों बेटियों, दामाद और नातियों के साथ हैं।

तस्वीर प्रधानमंत्री आवास की है। इसमें डॉ. मनमोहन सिंह पत्नी, तीनों बेटियों, दामाद और नातियों के साथ हैं।

जनता पार्टी के पीएम ने हाथ पकड़कर कहा- आप भ्रष्टाचार नहीं कर सकते

दमन सिंह अपनी किताब में लिखती हैं कि 1978 में इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी। इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान एक फ्रेंच कंपनी से ऑयल रिसर्च को लेकर एक कॉन्ट्रैक्ट साइन किया गया। बलवीर बोहरा पेट्रोलियम सचिव थे। बोहरा के अलावा इस कॉन्ट्रैक्ट में रामचंद्रन और मनमोहन सिंह भी शामिल थे। जनता पार्टी की सरकार ने इस कॉन्ट्रैक्ट पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। CBI ने मनमोहन सिंह से पूछताछ की। मनमोहन ने कहा कि हमने कोई साजिश नहीं की। लेकिन CBI किसी भी तरह सरकार को खुश करना चाहती थी।

इस दौरान बलवीर बोहरा घबराते हुए मनमोहन के पास आए और कहा, अब मेरा परमानेंट जेल जाना तय है। तब मनमोहन सिंह उन्हें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पास ले गए। चरण सिंह ने पूछा ये कौन हैं? मनमोहन ने कहा,

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ये वही बलवीर बोहरा हैं। ये मेरे और रामचंद्रन के साथ कॉन्ट्रैक्ट कमेटी में शामिल थे, जिस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं।

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चरण सिंह ने फौरन मनमोहन सिंह का हाथ पकड़ा और कहा,

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आप और भ्रष्टाचार… मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता। आप पर विश्वास न करने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। मैं आपको अच्छे से जानता हूं।

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रिटायरमेंट लेकर चंडीगढ़ में बसना चाहते थे, सरकार छोड़ने को तैयार नहीं हुई

‘स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन-गुरशरण’ में दमन सिंह ने लिखा, 1986 में मनमोहन सिंह ने रिटायरमेंट के बाद चंडीगढ़ के सेक्टर 11 के एक छोटे से मकान में रहने की प्लानिंग शुरू कर दी थी। वे अपने सपनों के शहर चंडीगढ़ में रहना चाहते थे। नए घर में रहने की चाह में उन्होंने गुरशरण को पर्दे तक नहीं बदलने दिए। मनमोहन चाहते थे कि नए पर्दे, नए घर में ही आएं। तब तक उनके घर में पुराने पर्दे ही लटकते रहे। फर्नीचर का भी यही हाल था। वहीं, सरकार मनमोहन सिंह को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी। इसी कशमकश में मनमोहन कई सालों तक अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहे।

दमन सिंह लिखती हैं, 1990 की शुरुआत में दिल्ली में प्रॉपर्टी इतनी महंगी नहीं थी। मनमोहन से कहा गया कि दिल्ली में ही कोई फ्लैट खरीद लीजिए। लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया। मनमोहन ने कहा, ‘मैं तो चंडीगढ़ ही जाउंगा। दिल्ली में रहने का मेरा कोई इरादा नहीं है क्योंकि वह शहर मुझे बहुत पसंद है।’

2001 में संसद पर हुए आतंकी हमले के बाद 2002 में एसपीजी ने पीएम मनमोहन की एंबेसडर कार को अपग्रेड कर BMW किया था। यह एक बुलेट प्रूफ और कई फीचर वाली कार है।

2001 में संसद पर हुए आतंकी हमले के बाद 2002 में एसपीजी ने पीएम मनमोहन की एंबेसडर कार को अपग्रेड कर BMW किया था। यह एक बुलेट प्रूफ और कई फीचर वाली कार है।

मनमोहन ने कहा- करोड़ों की गाड़ी तो PM के लिए है, मारुति 800 मेरी कार है

मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बारु अपनी किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ में लिखते हैं, जब डॉ. सिंह राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे, तो खुद मारुति 800 ड्राइव कर संसद आते थे। लोग उनसे कहते थे कि बड़ी कार ले लीजिए। लेकिन मनमोहन कहते,

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मारुति 800 चंडीगढ़ के लिए बिल्कुल परफेक्ट है। मैं इसे नहीं बदलूंगा।

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मनमोहन सिंह के बॉडीगार्ड रहे पूर्व IPS ऑफिसर और मौजूदा यूपी सरकार में समाज कल्याण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अरुण असीम सोशल मीडिया ‘X’ पर लिखते हैं कि मैं 2004 से लगभग 3 साल तक मनमोहन सिंह का बेहद नजदीकी बॉडीगार्ड रहा। डॉ. साहब की अपनी एक ही मारुति 800 कार थी। यह पीएम हाउस में चमचमाती काली BMW के पीछे खड़ी रहती थी। मनमोहन सिंह बार-बार मुझे कहते,

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असीम… मुझे BMW कार में चलना पसंद नहीं। मेरी गड्डी तो यह मारुति है।

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असीम ने लिखा कि जब भी हमारा काफिला उस मारुति के सामने से गुजरता, तो डॉ. साहब एक बार उस कार को जी-भर कर जरूर देखते थे। ये कार उन्हें याद दिलाती कि वे एक मिडिल क्लास व्यक्ति हैं। मनमोहन कहते थे कि करोड़ों की गाड़ी तो PM के लिए है, मारुति मेरी कार है।

बंगाली फिश के लिए शाकाहारी व्रत तोड़ने को तैयार थे

सितंबर 2011। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह बांग्लादेश के दो दिवसीय दौरे पर जाने वाले थे। बांग्लादेश की न्यूज एजेंसी बांग्लादेश संगबाद संस्था (BSS) ने दौरे से पहले उनका इंटरव्यू लिया। BSS ने मनमोहन सिंह से पूछा कि आप शाकाहारी हैं और बांग्लादेश में मशहूर हिल्सा फिश परोसी जाती है, तो आप क्या करेंगे? इस पर मनमोहन सिंह ने कहा, ‘मैं उस स्वादिष्ट बंगाली हिल्सा मछली के लिए अपना शाकाहारी व्रत तोड़ने के लिए तैयार हूं।’

‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ के मुताबिक, मनमोहन सिंह ने शाकाहारी व्रत नहीं तोड़ा था। मनमोहन सिंह अपने खाने को लेकर बहुत सिलेक्टिव थे। वे सिंपल फूड खाना पसंद करते थे और ज्यादातर वेज खाना पसंद करते थे।

अटल बिहारी वाजपेयी के दौरान पीएम हाउस के मेन्यू में ब्रेकफास्ट के समय समोसा-कचौरी होता था। मनमोहन सिंह ने भी इसी ब्रेकफास्ट को जारी रखा। मनमोहन को चाय के साथ मैरीगोल्ड बिस्किट बहुत पसंद थे। मनमोहन कहते थे कि मुझे इससे एनर्जी मिल जाती है। मनमोहन ने कई सालों से हैवी खाना बंद कर दिया था। वे जानते थे कि हैवी खाकर ज्यादा काम नहीं किया जा सकता।

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डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री आवास में रहने के बावजूद खुद को आम आदमी कहते थे। उन्हें सरकारी BMW से ज्यादा अपनी मारुति 800 पसंद थी। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी किताब में लिखा था- जब मनमोहन बोलते हैं तो पूरी दुनिया सुनती है। पूरी खबर पढें

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