Wednesday, June 18, 2025
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आज का एक्सप्लेनर: पहले सूखा फिर बाढ़, क्या दिखने लगा सिंधु जल समझौता रोकने का असर; भारत 3 स्टेप में कैसे खेल रहा लंबा गेम


पहलगाम हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि स्थगित की, तो सवाल उठे कि इसका इम्पैक्ट दिखने में सालों लग जाएंगे। हालांकि इसका असर अभी से दिखने लगा है। भारत भले ही पाकिस्तान जाने वाला पूरा पानी रोक नहीं सकता, लेकिन इसके फ्लो को कंट्र

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भारत ने पहले चिनाब का फ्लो रोका, फिर 26 अप्रैल को झेलम का पानी अचानक छोड़ दिया। संधि स्थगित होने की वजह से पानी का डेटा शेयर नहीं किया गया। इसलिए दूसरी तरफ अचानक अफरा-तफरी मच गई और वाटर इमरजेंसी लगानी पड़ी।

सिंधु जल संधि स्थगित करके भारत कैसे 3 स्टेप में लंबी प्लानिंग कर रहा, पाकिस्तान के शोर और अंतर्राष्ट्रीय दबाव से निपटने की क्या तैयारी है; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…

सवाल-1: भारत ने सिंधु जल समझौते पर रोक लगाने का फैसला क्यों किया?

जवाबः पहलगाम में आतंकी हमले के एक दिन बाद 23 अप्रैल को पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी यानी CCS की बैठक हुई। इसमें पाकिस्तान के खिलाफ 5 बड़े फैसले हुए। इनमें सबसे अहम था- सिंधु जल समझौते को स्थगित करना।

1960 में भारत-पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके तहत सिंधु वाटर सिस्टम की 3 पूर्वी नदियों का पानी भारत इस्तेमाल कर सकता है और बाकी 3 पश्चिमी नदियों के पानी पर पाकिस्तान को अधिकार दिया गया।

24 अप्रैल को भारत में जलशक्ति सचिव देवश्री मुखर्जी ने पाकिस्तानी जल संसाधन मंत्रालय के सचिव मुर्तजा को पत्र लिखकर कहा,

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यह संधि अच्छे संदर्भ में की गई थी, लेकिन अच्छे रिश्तों के बिना इसे बनाए नहीं रखा जा सकता।

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अगले ही दिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के घर पर जल शक्ति मंत्रालय की बैठक हुई। बैठक के बाद जलशक्ति मंत्री सीआर पाटिल ने कहा कि सिंधु नदी का एक बूंद पानी पाकिस्तान नहीं जाएगा।

साउथ एशिया यूनिवर्सिटी (SAU), दिल्ली के इंटरनेशनल रिलेशंस डिपार्टमेंट की प्रोफेसर मेधा बिष्ट के मुताबिक भारत लंबे समय से सिंधु जल समझौते की कमियों को दूर करने के इंतजार में था। समझौता रोककर वह पहलगाम हमले का जवाब देने के साथ ही इस मौके का फायदा भी उठा रहा है।

सवाल-2: क्या भारत के सिंधु जल संधि स्थगित करने से पाकिस्तान में सूखा पड़ जाएगा?

जवाबः इसका सीधा जवाब है नहीं। मेधा बिष्ट का कहना है कि फिलहाल भारत, पाकिस्तान में पानी बहने से नहीं रोक सकता। भारत के पास पाकिस्तान जाने वाला पानी इकट्ठा करने या इसका रास्ता बदलने के लिए उस तरह के बांध या इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है। इसलिए यह कहना गलत है कि भारत, पाकिस्तान में पानी की बड़ी क्राइसिस पैदा कर सकता है।

सिंधु, झेलम और चिनाब बड़ी नदियां हैं। मई से सितंबर के बीच जब बर्फ पिघलती है तो ये नदियां अपने साथ अरबों क्यूबिक मीटर पानी लेकर पाकिस्तान में घुसती हैं।

इनमें से चिनाब पर भारत ने बगलीहार डैम, रतले प्रोजेक्ट, चिनाब की सहायक नदी मारुसूदर पर पाकल डुल प्रोजेक्ट और झेलम की सहायक नदी नीलम पर किशनगंगा प्रोजेक्ट शुरू किए हैं, लेकिन इनमें से बगलीहार प्रोजेक्ट और किशनगंगा ही चालू हैं।

दिक्कत ये है कि ये दोनों रन-ऑफ-द-रिवर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट हैं, यानी ये बहते पानी के फ्लो से बिजली तो बना सकते हैं, लेकिन इनकी स्टोरेज कैपेसिटी बेहद कम है। इसलिए ये पाकिस्तान जाने वाले पानी को बड़े पैमाने पर स्टोर नहीं कर सकते।

जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में चिनाब नदी पर बना बगलीहार हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट

जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में चिनाब नदी पर बना बगलीहार हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट

मान लीजिए, भारत सभी बांधों के जरिए इस पानी को रोकने की कोशिश करे भी, तो उसके ऊपरी इलाकों यानी भारत के पंजाब और जम्मू-कश्मीर में बाढ़ आ सकती है।

प्रोफेसर हसन एफ खान, पाकिस्तानी अखबार डॉन में लिखते हैं कि कम से कम इस मौसम में जब पानी का फ्लो तेज होता है, तब भारत पाकिस्तान जाने वाला पानी नहीं रोक सकता। भारत अगर सिंधु बेसिन के पूरे पानी को भारत के इलाकों में मोड़ना चाहे तो उसे बड़े बांध और डायवर्जन प्रोजेक्ट लगाने होंगे, जिसमें सालों का समय लगेगा।

सवाल-3: अगर फिलहाल पाकिस्तान जाने वाले पानी को रोकने की क्षमता नहीं, तो भारत का मकसद क्या है?

जवाबः महसूस करिए कि एक सुबह आपको पता चले कि आज पानी नहीं आ रहा। फिर अगली सुबह हाल ये हो जाए कि आपके मोहल्ले की गलियों से लेकर घर के कमरे तक पानी से भरे हों। किस दिन क्या होगा, आपको पहले से खबर न मिले।

इसी तरह भारत भले ही रातोंरात पाकिस्तान का पूरा पानी हमेशा के लिए नहीं रोक सकता, लेकिन वह अस्थायी तौर पर झेलम, चिनाब और सिंधु जैसी नदियों के पानी का फ्लो कंट्रोल करके पाकिस्तान के पंजाब के इलाके से लेकर कराची तक पानी की सप्लाई डिस्टर्ब कर सकता है।

बिष्ट के मुताबिक, ‘भारत के पास अब पानी का फ्लो डिस्टर्ब करके और उससे जुड़ी जानकारी रोककर पाकिस्तान में पानी की कमी या छोटी बाढ़ लाने की क्षमता है। पानी अचानक छोड़ा गया या रोका गया तो पाकिस्तान में समस्या होगी।’

इसका ताजा उदाहरण 26 अप्रैल का है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के मुताबिक PoK में नदी के किनारे बसे गांव डुमेल के निवासी मुहम्मद आसिफ ने बताया, ‘हमें कोई अलर्ट नहीं मिला। पानी तेजी से आया। हम जानमाल बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।’

कथित रूप से लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े। ऑफिसर्स को समझ नहीं आ रहा था कि पानी कितना ज्यादा है और कितनी तबाही मचा सकता है।

सवाल-4: पाकिस्तान अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से कैसे बुरी तरह फंस चुका है?

जवाबः दरअसल, सिंधु नदी भारत के पूर्व में तिब्बत से निकलती है और पहले लेह, फिर जम्मू-कश्मीर से होते हुए पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान में घुसती है। बेसिन की बाकी 5 नदियां भी हिमाचल प्रदेश के बाद जम्मू-कश्मीर होते हुए पाकिस्तान में दाखिल होती हैं और सिंधु से मिलती जाती हैं। अपने पूरे रूट के दौरान जब तक ये नदियां भारत में हैं ये ऊंचाई पर होती हैं और पाकिस्तान में घुसते ही इनका फ्लो नीचे की तरफ हो जाता है।

पाकिस्तान की 90% खेती और बिजली बनाने वाले लगभग एक-तिहाई हाइड्रोप्रोजेक्ट सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर हैं। जिसका कंट्रोल भारत के पास है। ऐसे में पश्चिमी नदियों के पानी का फ्लो भारत के लिए एक हथियार के तौर पर काम कर रहा है। इस भौगोलिक स्थिति की वजह से वह फंस चुका है।

पाकिस्तान समझ रहा है कि भारत की ये वाटर स्ट्राइक उसे कितनी महंगा पड़ सकती है। इसीलिए पाकिस्तान ‘पानी रोकने पर खून बहाने’ की बात कर रहा है, साथ ही चीन से भारत का पानी रोकने की गुहार लगा रहा है।

सवाल-5: तो क्या चीन पाकिस्तान की मदद के लिए ऐसा ही कुछ भारत के साथ कर सकता है?

जवाब: भारत में भी चीन के कब्जे वाले तिब्बत के इलाके से ब्रह्मपुत्र नदी का पानी आता है, जो असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय होते हुए बांग्लादेश और फिर बंगाल की खाड़ी में गिर जाता है। डोकलाम विवाद के बाद चीन ने ब्रह्मपुत्र के वाटर फ्लो का डेटा भारत से शेयर करना बंद कर दिया था। अब पाकिस्तान फिर चाहेगा कि चीन कुछ ऐसा ही करे।

चीन ब्रह्मपुत्र के पानी को नॉर्थ चीन में मोड़ने के लिए पहले से ही सुपर डैम कहे जाने वाले ‘साउथ-नॉर्थ वाटर ट्रांसफर प्रोजेक्ट’ पर काम कर रहा है।

मेधा बिष्ट के मुताबिक, ‘ये चिंता का मुद्दा हो सकता है। हालांकि असलियत ये भी है कि भारत और चीन के बीच कभी भी डेटा शेयर नहीं किया गया है। चीन लंबे वक्त से तिब्बत से निकलकर भारत में बहने वाली सिंधु, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों में जो कुछ संभव है वह सब कर रहा है।’

असल में चीन हो या भारत, नदी के पानी का बहाव एक प्राकृतिक व्यवस्था है जो रातोंरात नहीं बदली जा सकती। ऐसे में भारत पाकिस्तान पर नकेल कसने के लिए सिंधु वाटर ट्रीटी को लेकर 3 स्टेप्स में लॉन्ग टर्म प्लान कर रहा है।

सवाल-6: सिंधु जल समझौता रोकने के बाद भारत का 3 स्टेप में लंबा खेल क्या है?

जवाबः केंद्रीय जल मंत्री सीआर पाटिल ने कहा है कि एक रोडमैप तैयार किया गया है। सरकार शॉर्ट टर्म, मिड टर्म और लॉन्ग टर्म के कुल 3 प्लान पर काम कर रही है, ताकि पानी की एक बूंद भी पाकिस्तान न जाए। हालांकि उन्होंने और ज्यादा डिटेल शेयर नहीं की।

एक्सपर्ट्स के मुताबिक ये प्लान कुछ इस तरह हो सकता है-

स्टेप-1: नई सिंधु जल संधि की जमीन तैयार करना

  • सिंधु जल समझौता भारत के लिए फायदे का सौदा कभी नहीं रहा। 1960 में वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में ये संधि हुई थी। तब भारत चाहता था कि पाकिस्तान की तरफ से हमले होने बंद हो जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
  • संधि के नियमों के मुताबिक, भारत पानी के इस्तेमाल में कोई भी बदलाव बिना पाकिस्तान की मर्जी से नहीं कर सकता। 2024 में भारत ने संधि में बदलाव की मांग करते हुए पाकिस्तान को एक नोटिस भेजा था, जिस पर पाकिस्तान ने कोई गौर नहीं किया।
  • मेधा बिष्ट के मुताबिक, ‘असल में ये ट्रीटी कई सालों से सस्पेंड ही है। अब इसे औपचारिक रूप से रोका गया है। भारत अपने फायदे का सौदा करने के लिए अब पाकिस्तान को बातचीत के लिए मजबूर कर सकता है। भारत सालों से नई सिंधु संधि चाहता है। इससे जलवायु परिवर्तन, पानी की मात्रा जैसे मुद्दों पर भारत अपने हित पर जोर दे सकेगा।’

स्टेप-2: अपने हिस्से के पानी की हर बूंद का इस्तेमाल करना

  • संधि के तहत भारत केवल पूर्वी नदियों का पानी इस्तेमाल कर सकता है। इन नदियों के 3.3 करोड़ एकड़ फीट पानी में से करीब 94% पानी का इस्तेमाल भारत करता है।
  • इसके लिए भारत ने पूर्वी नदियों यानी सतलुज पर भाखड़ा नागल बांध, ब्यास पर पोंग बांध, रावी पर रंजीत सागर बांध और हरिके बैराज, इंदिरा नहर जैसे प्रोजेक्ट लगाए हुए हैं।
  • बाकी करीब 6% पानी बिना इस्तेमाल हुए पाकिस्तान चला जाता है। बचे हुए पानी के इस्तेमाल के लिए भारत रावी नदी पर शाहपुर कांडी प्रोजेक्ट, सतलुज ब्यास नहर लिंक प्रोजेक्ट और रावी की सहायक नदी पर ‘उझ डैम’ बना रहा है। इन पर पाकिस्तान लगातार आपत्ति जताता आया है।
  • 2019 में उरी आतंकी हमले के बाद भारत ने कहा था कि वह इन नदियों का बहाव मोड़कर 100% पानी अपने यहां इस्तेमाल करेगा।

स्टेप-3: पाकिस्तान जाने वाले पूरे पानी को भारत की तरफ मोड़ना

ये लॉन्ग टर्म प्रोजेक्ट है, जो सालों चलेगा। मंत्री पाटिल के मुताबिक,

  • सबसे पहले नदियों से गाद निकालने का काम किया जाएगा, इससे पानी को रोकना और उसका रुख बदलना आसान होगा।
  • नदियों पर बांध और बाकी इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स बढ़ाए जाएंगे। जो हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स तैयार किए जा रहे हैं, उनमें तेजी लाई जाएगी।
  • पानी को स्टोर करने के लिए जलाशय बनाकर नदियों की दिशा बदलने पर काम शुरू किया जाएगा।

सवाल-7: क्या सिंधु जल संधि स्थगित करने से अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ेगा, भारत कैसे डील करेगा?

जवाबः सिंधु जल समझौता एक स्थायी संधि है। इसे कोई एक देश अपनी मर्जी से रद्द नहीं कर सकता। दोनों देश मिलकर ही इसमें कोई बदलाव कर सकते हैं। इसके अलावा इसमें गारंटर के तौर पर वर्ल्ड बैंक भी शामिल है। विवाद की स्थिति में पाकिस्तान वर्ल्ड बैंक के अलावा इंटरनेशनल कोर्ट में भी मामला ले जा सकता है।

हालांकि स्ट्रैटजी एनालिस्ट ब्रह्मा चेलानी कहते हैं,

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वियना समझौते के लॉ ऑफ ट्रीटीज की धारा 62 के तहत भारत इस आधार पर संधि से पीछे हट सकता है कि पाकिस्तान उसके खिलाफ आतंकी गुटों का इस्तेमाल कर रहा है। इंटरनेशनल कोर्ट ने भी कहा है कि अगर मौजूदा स्थितियों में कोई बदलाव हो तो कोई भी संधि रद्द की जा सकती है।

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत के ऑफिसर्स का कहना है कि संधि को रोके जाने में कानूनी रूप से कोई समस्या नहीं है। ये भी कहा जा रहा है कि अगर पाकिस्तान मध्यस्थता के लिए वर्ल्ड बैंक के पास जाता है तो भी भारत का रिएक्शन तैयार हो चुका है। सरकार इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक कानूनी रणनीति पर काम कर रही है।

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