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22 दिसंबर को RSS प्रमुख मोहन भागवत ने अमरावती में ये बयान दिया। इससे पहले उन्होंने 19 दिसंबर को पुणे में कहा था कि हर दिन मंदिर-मस्जिद विवाद उठाया जाना सही नहीं है। अयोध्या के राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोग मानते हैं कि वे ऐसे मुद्दे उठाकर हिंदुओं के नेता बन जाएंगे।
भागवत के इन बयानों के क्या मायने हैं, वो हिंदुत्व के मुद्दे किसी और के हाथ नहीं जाने देना चाहते या अब संघ का फोकस उदारवादी हिंदुओं पर है; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…
सवाल 1: पिछले दिनों में मोहन भागवत ने क्या बयान दिए, जिनकी चर्चा हो रही है? जवाब: बीते 8 दिनों में RSS चीफ मोहन भागवत ने तीन बड़े बयान दिए…
22 दिसंबर: महाराष्ट्र के अमरावती में महानुभाव आश्रम के शताब्दी समारोह में कहा, ‘धर्म महत्वपूर्ण है और इसकी सही शिक्षा दी जानी चाहिए। धर्म का अनुचित और अधूरा ज्ञान अधर्म की ओर ले जाता है।’
19 दिसंबर: पुणे में सहजीवन व्याख्यानमाला में कहा, ‘हर दिन एक नया मामला उठाया जा रहा है। इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है? हाल ही में मंदिरों का पता लगाने के लिए मस्जिदों के सर्वे की मांगें अदालतों में पहुंची हैं।’
इसी दिन उन्होंने कहा- अयोध्या के राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि वे ऐसे मुद्दे उठाकर हिंदुओं के नेता बन जाएंगे।
16 दिसंबर: पुणे में भारत विकास परिषद के एक कार्यक्रम में कहा, ‘व्यक्ति को अहंकार से दूर रहना चाहिए, नहीं तो वह गड्ढे में गिर सकता है।’
22 दिसंबर को अमरावती के एक कार्यक्रम में वक्तव्य देते RSS प्रमुख मोहन भागवत।
पिछले दिनों मोहन भागवत ने कहा था कि जाति भगवान ने नहीं बनाई है, जाति पंडितों ने बनाई जो गलत है। भगवान के लिए हम सभी एक हैं। आरक्षण पर हैदराबाद के एक कार्यक्रम में कहा कि संघ ने कभी भी कुछ खास वर्गों को दिए जाने वाले आरक्षण का विरोध नहीं किया है।
सवाल 2: RSS चीफ मोहन भागवत ऐसे बयान क्यों दे रहे हैं? जवाब: पॉलिटिकल एक्सपर्ट और दिल्ली की अंबेडकर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर अभय दुबे कहते हैं, ‘राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान भागवत ने जो हिंदुत्व टेक्नोलॉजी डेवलप की थी, उसका इस्तेमाल छोटे दल भी कर रहे हैं। ताजा उदाहरण सितंबर 2024 में अजमेर शरीफ की दरगाह का विवाद है। हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दरगाह के नीचे शिव मंदिर होने की बात कही। हिंदू सेना का संघ से कोई ताल्लुक नहीं है। इसके बावजूद हिंदुत्व टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।’
अभय दुबे के मुताबिक हिंदुत्व का कोई कानूनी पेटेंट नहीं है। इसमें कोई सीमा या कंट्रोल भी नहीं है। लोग हिंदुत्व के नाम पर खुद को चमकाना चाहते हैं। अगर अन्य दलों ने हिंदुत्व के नाम पर हिंसक आंदोलन शुरू कर दिए, तो संघ और बीजेपी सरकार की छवि खराब हो जाएगी। दुनियाभर में हिंदुत्व को संघ के नाम से ही जाना जाता है, क्योंकि संघ ने ही हिंदुत्व को बढ़ावा दिया इसलिए मोहन भागवत हिंदुत्व को कंट्रोल करना चाहते हैं।
22 जनवरी 2024 को राम मंदिर के उद्घाटन के दौरान मोहन भागवत और पीएम नरेंद्र मोदी।
सवाल 3: क्या भागवत के ऐसे बयानों के पीछे बीजेपी के लिए भी कोई संदेश छिपा है? जवाब: सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई मानते हैं, ‘संघ और बीजेपी के अंदर की बात कभी बाहर नहीं खुलती है। मोहन भागवत के बयानों से बीजेपी अच्छी तरह वाकिफ है। संघ और बीजेपी के अलग-अलग स्वरों में बात करने से सिर्फ देश की जनता के बीच उत्सुकता बनी रहती है। पर्दे के आगे भले ही दोनों एक-दूसरे पर कटाक्ष करें, लेकिन पर्दे के पीछे मिलीभगत होती है। इसलिए यह कहना गलत होगा कि मोहन भागवत बीजेपी को कोई मैसेज या चेतावनी दे रहे हैं।’
सवाल 4: इस वक्त बीजेपी के नेताओं और संघ प्रमुख के बयानों में विरोधाभास क्यों दिख रहा है? जवाब: 16 दिसंबर को उत्तर प्रदेश विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि संभल की जामा मस्जिद के सर्वे में पत्थरबाजी करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। इस पर 19 दिसंबर को पुणे में मोहन भागवत ने कहा कि हर दिन मंदिर-मस्जिद विवाद उठाया जाना सही नहीं है। कुछ लोग सोचते हैं ऐसा करके हिंदुओं के नेता बन जाएंगे।
इस विरोधाभास पर रशीद किदवई कहते हैं, मोहन भागवत और बीजेपी एक स्वर में बात करने से कतरा रहे हैं। दरअसल, किसी मुद्दे पर दोनों के एक ही राय देने से विवाद खत्म हो जाएगा।
अगर सरकार और संघ एक स्वर में बात करेंगे तो उन्हें वो काम भी करके दिखाने होंगे। अगर मोहन भागवत संभल सर्वे का विरोध नहीं करेंगे, तो उन्हें यूपी सरकार का समर्थन करना पड़ जाएगा। ऐसे में देश में यह मुद्दा तूल नहीं पकड़ेगा। देश की राजनीति में हलचल बनाए रखने के लिए विरोधी स्वर जरूरी हैं।
सवाल 5: क्या संघ प्रमुख के उदारवादी रुख के पीछे क्या कोई स्ट्रैटजी है? जवाब: इलेक्शन एनालिस्ट अमिताभ तिवारी कहते हैं, ‘बीजेपी हार्ड हिंदुत्व की स्ट्रैटजी पर ज्यादा काम कर रही है। देश में लगभग 27% हार्ड हिंदुत्व बीजेपी वोटर हैं। सिर्फ हार्ड हिंदुत्व वोटर्स के दम पर बीजेपी कोई भी चुनाव नहीं जीत सकती। ये बात संघ समझ गया है। इसलिए मोहन भागवत सॉफ्ट हिंदुत्व की पॉलिटिक्स को तवज्जो दे रहे हैं। संघ अल्पसंख्यक समुदायों को भी साथ लेकर चलना चाहता है।’
जर्नलिस्ट और लेखक विवेक देशपांडे एक आर्टिकल में लिखते हैं, ‘संघ का लक्ष्य हिंदू राष्ट्र की स्थापना है, लेकिन इसमें सबसे बड़ा संकट 14% से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। RSS को पता है कि उसे साधे बिना संघ का मकसद पूरा नहीं होगा। 2014 में BJP की केंद्र में सरकार बनने के बाद मुस्लिम मॉब लिंचिंग की घटना बढ़ी थी। इससे दुनियाभर में भारत की आलोचना हुई। परेशानी भांपकर भागवत ने उदारवादी रुख अपनाया था।’
सितंबर 2022 में मोहन भागवत दिल्ली की मस्जिद से निकलते हुए।
जनवरी 2023 में एक इंटरव्यू में मोहन भागवत ने कहा था कि,
इस्लाम को देश में कोई खतरा नहीं है, लेकिन उसे ‘हम बड़े हैं’ का भाव छोड़ना पड़ेगा।
अमिताभ तिवारी बताते हैं, ‘बीजेपी में योगी आदित्यनाथ जैसे कुछ नेताओं की हार्ड हिंदुत्व की राजनीति जोर पकड़ रही है। योगी आदित्यनाथ संभल जैसे मुद्दों को उठाकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश का हिंदूकरण करना चाहते हैं, जिससे 2027 का विधानसभा चुनाव जीत सकें। बीजेपी की केंद्र सरकार भी इस बात पर जोर दे रही है, क्योंकि 2027 के चुनाव से साफ होगा कि बीजेपी 2029 का लोकसभा चुनाव जीत पाएगी या नहीं, लेकिन मोहन भागवत पूरे देश में सॉफ्ट हिंदुत्व को आगे बढ़ाना चाहते हैं।’
12 अक्टूबर 2024 को संघ की 100वीं एनिवर्सरी के दौरान मोहन भागवत।
सवाल 6: क्या इससे पहले भी RSS चीफ ने बीजेपी के फैसलों पर सवाल उठाए हैं? जवाब: RSS चीफ मोहन भागवत ने पहले भी बिना नाम लिए बीजेपी और उसके नेताओं पर निशाना साधा है। भागवत के कुछ चर्चित बयान पढ़िए…
- 18 जुलाई 2024: झारखंड के गुमला में मोहन भागवत ने कहा, ‘इंसान पहले सुपरमैन, फिर देवता और उसके बाद भगवान बनना चाहता है, लेकिन अभी यह नहीं समझना चाहिए कि बस अब हो गया। उन्हें लगातार काम करते रहना चाहिए, क्योंकि विकास का कोई अंत नहीं है।’
- 10 जून 2024: संघ के एक कार्यक्रम में मोहन भागवत ने कहा, ‘एक साल से मणिपुर शांति की राह देख रहा है। इससे पहले 10 साल शांत रहा और अब अचानक जो कलह वहां पर उपजी या उपजाई गई, उसकी आग में मणिपुर अभी तक जल रहा है, त्राहि-त्राहि कर रहा है। इस पर कौन ध्यान देगा?’
- 28 अप्रैल 2024: हैदराबाद के एक कार्यक्रम में मोहन भागवत ने कहा कि संघ ने कभी भी कुछ खास वर्गों को दिए जाने वाले आरक्षण का विरोध नहीं किया है। उन्होंने कहा, ‘संघ का मानना है कि जब तक जरूरत है, आरक्षण जारी रहना चाहिए।’
सवाल 7: संघ और बीजेपी के रास्ते क्या अलग हो सकते हैं? जवाब: अमिताभ तिवारी कहते हैं, ’संघ और बीजेपी का पेरेंट और चाइल्ड का रिश्ता है। संघ ने ही बीजेपी को बनाया। ये कहना गलत होगा कि ये दोनों अलग हो सकते हैं। जिस तरह पेरेंट और चाइल्ड के बीच अनबन हो जाती है, वैसे ही हालत संघ और बीजेपी की है, लेकिन ये रिश्ता टूट नहीं सकता। संघ ही बीजेपी है और बीजेपी ही संघ है, लेकिन संघ का मानना है कि मोदी बीजेपी नहीं हैं।’
अमिताभ तिवारी मानते हैं कि संघ के बिना बीजेपी का अस्तित्व नहीं है। वे कहते हैं, ‘PM मोदी ने 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान दावा किया था कि वे गैर-जैविक यानी नॉन-बायोलॉजिकल हैं, उन्हें भगवान ने भेजा है। पीएम मोदी ने प्रचार में इस बात को खूब उछाला था। इसके बावजूद चुनावी नतीजे में भाजपा 303 से घटकर 240 सीटों पर आ गई। इसके बाद हरियाणा के चुनाव में संघ ने अपने हाथों में पूरी जिम्मेदारी ली और बीजेपी 90 में से 46 सीटों पर जीती। इससे यह तय हो गया कि संघ के बिना बीजेपी का अस्तित्व नहीं है।’
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