वर्ष 2013 में आदिम जाति कल्याण विभाग के छात्रावास और आश्रम के लिए आकस्मिकता निधि से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की भर्ती निकाली गई। इसके तहत पहले तीन साल तक इन लोगों को कलेक्टर दर पर वेतन दिया जाना था, बाद में उन्हें नियमित वेतन मिलता। 10 साल बाद इन लोगों
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रायगढ़ में 559 पदों पर भर्ती निकली, लेकिन यहां शुरू से बड़ा घोटाला कर दिया गया। तत्कालीन सहायक आयुक्त भूपेंद्र राजपूत ने 559 की जगह 605 लोगों की भर्ती कर डाली। नियमानुसार इन लोगों को 4943 रुपए मिलना था, लेकिन पहले दिन से ही इन्हें नियमित वेतन 10890 रुपए दिया जाने लगा।16 महीने बाद जब यह गड़बड़ी पकड़ी गई तब तक सरकार को 5.71 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका था।
मामले को दबाकर इन लोगों का वेतन कलेक्टर दर पर शुरू हो गया। 10 साल बाद जब इन्हें नियमित किया गया तो उसमें 11 मृतकों का भी नियमितीकरण हो गया। लेकिन इन्हें वेतन नहीं मिला। शिकायत के बाद जब इस मामले की जांच अपर संचालक एआर नवरंग ने की तो कई गड़बड़ियां और सामने आईं। रायगढ़ के तत्कालीन सहायक आयुक्त अविनाश श्रीवास को सस्पेंड कर मामले को फिर दबा दिया गया।
जांच रिपोर्ट भी विभाग में फाइलों के नीचे दबकर रह गईं। पुरानी रिपोर्ट पर कार्रवाई करने के बजाय अब फिर 9 अप्रैल को इस मामले की जांच के आदेश हुए हैं। लेकिन उसमें वित्त अधिकारी शामिल न कर इस मामले की लीपापोती करने की तैयारी अभी से हो गई है।
गायब कर्मचारी नियमित: जांच में 29 ऐसे कर्मचारी भी पकड़ में आए जो कार्यालय आते ही नहीं। इसमें से कुछ तो दूसरी जगह नौकरी करने लगे हैं। इन लोगों को भी नियमित कर दिया गया। यही नहीं एक साल में 17 टुकड़ों में नियुक्ति आदेश जारी हुए। पहला 2013 में 13 जून को 14, 24 जुलाई को 459, 5 अगस्त को 42 करते-करते 24 जून 2024 को अंतिम 5 लोगों का आदेश जारी हुआ।
फर्जी मार्कशीट पर लगा दी 20 लोगों की नौकरी
2021 में कलेक्टर के पास शिकायत हुई कि फर्जी मार्कशीट पर लोग नौकरी कर रहे हैं। उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी की टीम से जांच करवाई। इसमें मार्कशीटों का मिलान जब सरकारी रिकॉर्ड से किया गया तो 20 लोगों की मार्कशीट फर्जी पाई गई।
इन मार्कशीटों में काटछांट और छेड़छाड़ की गई थी। 13 मार्कशीटों में तो रोल नंबर तक नहीं थे। इसमें से 10 लोगों को नियमित भी कर दिया गया है। यह भी सामने आया कि भर्ती के समय ही इसकी शिकायत हुई थी। पुलिस ने एफआईआर तक दर्ज की थी, बावजूद इन लोगों की मार्कशीट बिना जांचे नौकरी दे दी गई।
438 की जगह 605 की हो गई भर्ती 2010 में 438 पदों पर भर्ती निकली, लेकिन फर्जी मार्कशीट की एफआईआर होने पर इसे निरस्त कर दिया गया। इसके बाद 2013 में 559 पदों पर भर्ती का विज्ञापन निकाला गया। इस विज्ञापन में रसोईया, चौकीदार, जलवाहक और चपरासी जैसे पद शामिल थे।
पदों को बढ़ाने के लिए वित्त विभाग से अनुमति ली जानी थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इसके बाद बिना किसी अनुमति के 605 लोगों की भर्ती कर दी गई। यही नहीं सामान्य प्रशासन विभाग के आकस्मिक स्थापना नियम की जगह दैनिक वेतन भोगी नियम से भर्ती की गई।
सीधी बात – मैंने नोटिस का जवाब दे दिया है
भूपेंद्र राजपूत, रायगढ़ के तत्कालीन सहायक आयुक्त और वर्तमान अपर संचालक
कलेक्टर दर की जगह आपने चतुर्थ श्रेणी वालों को नियमित वेतन कैसे दे दिया? भर्ती नियम में कहीं उल्लेख नहीं था कि वेतन कलेक्टर दर से देना है। उसमें वेतनमान का उल्लेख था, इसलिए उन्हें नियमित वेतन दिया गया। 16 माह बाद उन्हें कलेक्टर दर ही दिया जाने लगा। आपने 559 की जगह 605 लोगों की भर्ती कैसे कर दी? पहली नियुक्ति आदेश में कुछ लोगों ने ज्वाइन नहीं किया तो वेटिंग लिस्ट से भर्ती हुई। कुछ नए छात्रावास खुले वहां भी भर्ती की गई। जांच दल ने इन सबको जोड़ दिया। नियमितीकरण करने वाले को सस्पेंड कर दिया, पर भर्ती करने वाले आप कैसे बच गए? मुझे कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था, जिसका जवाब मैंने समय सीमा में दे दिया है।
चतुर्थ श्रेणी (आकस्मिकता) के पद पर हुई भर्ती में तीन साल तक देनी थी कलेक्टर दर पर मजदूरी, रायगढ़ के सहायक आयुक्त पहले दिन से ही देने लगे नियमित वेतन।
प्रमुख सचिव सोनमणि वोरा से मामले को लेकर संपर्क किया गया, लेकिन उनका मोबाइल नहीं लगा।