कभी बैलगाड़ियों से अपने सफर की शुरुआत करना वाला इंदौर शहर अब तेज रफ्तार में चलने को को तैयार है। पीएम नरेंद्र मोदी 31 मई को भोपाल से वर्चुअली हरी झंडी दिखाकर मेट्रो को रवाना करेंगे। करीब 1520 करोड़ रुपए से सुपर प्रायोरिटी कॉरिडोर पर तैयार लगभग 6 किलोमी
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इंदौर में मेट्रो की शुरुआत के साथ शहर एक नए युग में प्रवेश करेगा। पब्लिक ट्रांसपोर्ट को नई दिशा मिलेगी। इंदौर में रेलवे का इतिहास करीब डेढ़ सौ साल पुराना है। 1870 में होलकर शासकों ने इंदौर से खंडवा तक रेल मार्ग बनाने की शुरुआत की थी, जिसमें एक करोड़ रुपए की लागत आई थी। पांच साल में यह परियोजना पूरी हुई और 1876 में पहली बार रेल यातायात शुरू हुआ।
हाथी, घोड़े, बैलगाड़ी, तांगा बग्घी, टैम्पो और साइकिल से होते हुए शहर के पब्लिक ट्रांसपोर्ट में अब मेट्रो की शुरुआत से नई क्रांति की उम्मीद की है। फिलहाल सिटी बस और आई बस जैसे माध्यम शहर के सड़कों में दौड़ रहे हैं। वहीं, लंबी दूरी की पहली ट्रेन इंदौर से बिलासपुर मई 1956 में शुरू की गई थी। अब इंदौर स्टेशन के 6 प्लेटफार्मों से रोजाना लगभग 100 ट्रेनें संचालित होती हैं।
सबसे पहले देखिए पुराने इंदौर की तस्वीरें, बैलगाड़ी, तांगे और हाथी की सवारी
राजवाड़ा पर बैलगाड़ी और हाथियों की सवारी। जानकारों के मुताबिक, तब अमीर लोग ही हाथी की सवारी किया करते थे। आम लोगों को बैलगाड़ी किराए पर उपलब्ध होती थी।

इंदौर में तांगा बघ्घी। बताया जाता है कि इंदौर में बैलगाड़ी के बाद तांगा बग्गी का उपयोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए किया जाने लगा था।

इंदौर में कान्ह नदी को पार कर बच्चे स्कूल जाया करते थे। उस समय हाथी की सवारी का प्रचलन था।

1870 में होलकर शासकों ने इंदौर से खंडवा तक रेल मार्ग बनाने की शुरुआत की थी।

इंदौर का पहला रेलवे स्टेशन।
अब जानिए, इंदौर में कब कैसे अपग्रेड होते गया पब्लिक ट्रांसपोर्ट…
300 साल पहले घोड़ों से शुरू हुआ था ट्रांसपोर्टेशन इंदौर में परिवहन व्यवस्था की शुरुआत आज से करीब 300 साल पहले घोड़ों से हुई थी। शहर की स्थापना करने वाले राजा राव नंदालाल मंडलोई के 13वीं पीढ़ी के वंशज वरदराज मंडलोई बताते हैं कि उस दौर में घोड़े, बग्घियों और हाथी प्रमुख सवारी के साधन हुआ करते थे।
हालांकि, इन साधनों का उपयोग केवल संपन्न वर्ग ही कर पाता था, क्योंकि उनका रखरखाव काफी महंगा था। आमजन के लिए पैदल चलना ही मुख्य विकल्प था, विशेषकर तब जब रास्ते सीमित और प्राकृतिक बाधाओं से घिरे हुए थे। उस समय का इंदौर एक ओर पहाड़ियों और दूसरी ओर नदियों से घिरा हुआ था, जिससे परिवहन की पहुंच भी सीमित थी।
इंदौर के पहले मास्टर प्लानर सर पैट्रिक गेडेस ने अपनी किताब में पुराने इंदौर की बनावट की तुलना प्रसिद्ध जल-नगर वेनिस से करते हुए लिखा है कि पुराने इंदौर की बनावट देखो तो वेनिस की याद आती है।

इंदौर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की शुरुआत घोड़ों से हुई थी।
पिकनिक और देवदर्शन के लिए किराए पर लेते थे बैलगाड़ी मध्यप्रदेश कांग्रेस के पूर्व महासचिव चंदू अग्रवाल बताते हैं कि पुराने इंदौर में बैलगाड़ी प्रमुख परिवहन साधन हुआ करती थी। करीब 100 साल पहले जब किसी परिवार को देव दर्शन के लिए जाना होता या पिकनिक मनानी होती, तो वे बैलगाड़ी किराए पर लिया करते थे। उस दौर में यह आमजन के लिए यात्रा का सुलभ माध्यम था।
बैलगाड़ी के साथ ही इंदौर को महाराज होलकर द्वारा एक और बड़ी सौगात मिली, इंदौर से खंडवा के बीच रेलगाड़ी की शुरुआत। इसके अतिरिक्त तांगे भी शहर में चलते थे, लेकिन तांगे बैलगाड़ी और रेलगाड़ी से भी पहले प्रचलन में थे। हालांकि, तांगे उस समय केवल अमीर तबके की सवारी माने जाते थे, क्योंकि वे उस वक्त आम लोगों को महंगे पड़ते और कहीं न कहीं तांगे प्रतिष्ठा का प्रतीक भी थे।

राजवाड़ा के बाहर खड़ी बैलगाड़ी का यह फोटो 1900 के पहले का बताया जाता है।
साइकिल जब घर में होना स्कॉर्पियो जैसी शान मानी जाती थी चंदू अग्रवाल बताते हैं कि तांगे और बैलगाड़ियों के दौर के बाद इंदौर में टैम्पो और साइकिल का चलन शुरू हुआ। टैम्पो में लोग सामूहिक रूप से सफर करते थे, जबकि साइकिल किराए पर लाइसेंस के माध्यम से मिलती थी। साल 1918 में छावनी क्षेत्र में इंदौर की पहली साइकिल दुकान एनसी अंकलेसरिया एंड कंपनी ने शुरुआत की थी।
1930 के आसपास, जब पारसी समुदाय के लोग पुणे और मुंबई की ओर जा रहे थे, तब महाराजा यशवंतराव होलकर द्वितीय ने इस कंपनी को इंदौर में बने रहने के लिए महारानी रोड पर एक प्लॉट भी उपलब्ध कराया। इस समय रेले और हंबर जैसी साइकिलें महंगी मानी जाती थीं। जिनकी कीमत ₹14 से ₹15 तक थी, जबकि फिलिप्स, हरक्यूलिस और बीएसए जैसी साइकिलें ₹8 से ₹12 में मिला करती थीं।
यह वह दौर था जब साइकिल का घर में होना सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता था। रियासत काल में “साइकिल टैक्सी” के लिए विशेष प्रकार का लाइसेंस जारी किया जाता था। बाहर से आने वाले यात्री इन साइकिल टैक्सियों के जरिए शहर के विभिन्न इलाकों तक पहुंचते थे। होलकर रियासत ने इसके लिए तय रूट्स और किराए निर्धारित किए थे। स्टेशन से राजवाड़ा तक का किराया मात्र 1 आना हुआ करता था।

1910 से 1915 में साइकिल इंदौर आई थी। वहीं 1918 में सबसे पहले छावनी इलाके में साइकिल का शोरूम खुला था।
तीन श्रेणियों में होती थी तांगों की फिटनेस जांच इंदौर बीजेपी के वरिष्ठ नेता बाबूलाल रघुवंशी बताते हैं, ‘मेरी उम्र 75 वर्ष है और पिछले 70 सालों से इंदौर में सरकारी बस परिवहन को सक्रिय रूप से देखता आ रहा हूं।’ वे बताते हैं कि इंदौर में सार्वजनिक परिवहन की शुरुआत सबसे पहले बैलगाड़ियों से हुई, जिसके बाद तांगों का दौर आया। उस समय इंदौर में जो तांगे चलते थे, वे बड़ौदा शैली के माने जाते थे और अन्य शहरों की तुलना में कहीं अधिक आरामदायक और आकर्षक हुआ करते थे।
तांगों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए हर 6 महीने में उनका फिटनेस टेस्ट होता था। इस फिटनेस को तीन श्रेणियों में बांटा गया था। यदि बग्गी और घोड़े दोनों ही उत्कृष्ट स्थिति में होते, तो उन्हें “1 नंबर” की फिटनेस दी जाती थी। अगर बग्गी अच्छी और घोड़े अपेक्षाकृत छोटे होते, तो उन्हें ‘2 नंबर’ का फिटनेस मिलता था। वहीं, यदि दोनों की स्थिति औसत होती, तो ‘3 नंबर’ की श्रेणी में रखा जाता था।

टैम्पो ने इंदौर को दिया सबसे सस्ता पब्लिक ट्रांसपोर्ट बीजेपी नेता रघुवंशी बताते हैं कि इंदौर में बग्गियों के बाद टैम्पो का दौर शुरू हुआ, शुरुआत में टैम्पो पेट्रोल इंजन से चलते थे, जो लोगों को महंगा पड़ता था। बाद में इसमें जुगाड़ से 9 हॉर्सपावर के डीजल इंजन लगाए गए, जिससे टैम्पो का परिवहन काफी सस्ता हो गया।
टैम्पो ना सिर्फ इंदौर शहर में, बल्कि 20 किलोमीटर के दायरे तक गांव-कस्बों में भी वर्षों तक चले। हालांकि बाद में बढ़ते प्रदूषण की वजह से इन्हें बंद कर दिया गया। इसके जगह पर मेटाडोर और फिर मारुति वैन जैसी गाड़ियां पब्लिक ट्रांसपोर्ट का हिस्सा बनीं।
इसी दौरान रोडवेज सेवाएं भी बंद हो गईं, जिससे नगर सेवा (सिटी बस) पूरी तरह ठप हो गई। उस समय केवल प्राइवेट बसें चलती थीं, लेकिन उनका किराया आम जनता की पहुंच से बाहर था। इसी आवश्यकता को देखते हुए इंदौर में ‘अटल सिटी बस’ सेवा की बसें चलना शुरू हुई।

इंदौर में टैम्पो का परिवहन सबसे सस्ता परिवहन बताया जाता है।
इंदौर की पहली रेल सेवा: जब होलकर स्टेट ने अंग्रेजों को दिया था कर्ज
इंदौर में अंग्रेजों ने 1877 में पहली रेल लाइन को बिछाई थी। इसके लिए होलकर स्टेट ने अंग्रेजी हुकूमत को एक करोड़ रुपए का लोन 4 पर्सेंट की ब्याज दर पर दिया था। 1873 से 1877 के बीच काम पूरा कर लिया गया। 3 अगस्त 1877 को वह दिन आया जब यहां मालगाड़ी चलाकर ट्रायल शुरू कर दिया गया।
जनवरी 1878 में पहली पैसेंजर ट्रेन चला दी गई। इसकी अधिकतम स्पीड करीब 40-60 माइल्स यानी 60 से 70 किलोमीटर प्रति घंटा के आसपास रही होगी। दिलचस्प यह था कि इस प्रोजेक्ट में जो लागत मंजूर की गई थी, उसमें से पैसा बच गया। यह पहला मौका था जब कॉस्ट से कम में काम हो गया था। अमूमन लागत देरी होने से कॉस्ट बढ़ने के किस्से खूब थे।
इंदौर को बाद में राजपुताना रेलवे के साथ भी जोड़ा गया और उसे राजपुताना-मालवा रेलवे नाम दिया गया। यद्यपि होलकर स्टेट के साथ हुए समझौते के अनुसार इसका नाम होलकर स्टेट रेलवे रखा जाना था। 44 सालों तक यह मामला चला और ब्रिटिश सरकार ने हार मानी। आखिरकार फैसला होलकर स्टेट के पक्ष में हुआ।

इंदौर की अटल बस सेवा को शहर की लाइफ लाइन कहा जाता है।
इंदौर में अटल सिटी बस की शुरुआत चंदू अग्रवाल बताते है कि शहर की जरूरत को देखकर बाद में इंदौर सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड की स्थापना 1 दिसंबर 2005 को इंदौर की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को संचालित करने के उद्देश्य से की गई। इस दौरान निदेशक मंडल के रूप में सात प्रमुख लोगों की पहचान की गई थी।
इंदौर नगर निगम और इंदौर विकास प्राधिकरण ने संयुक्त रूप से 25 लाख रुपए की अधिकृत पूंजी का निवेश कर इसकी शुरुआत की थी। इंदौर कलेक्टर रहे विवेक अग्रवाल बस सेवा चलाने के लिए परियोजना के निष्पादन के लिए जिम्मेदार थे। कंपनी को सार्वजनिक-निजी भागीदारी के रूप में चलाया जाता है। यह इंदौर की सबसे सस्ती पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा साबित हुई है।
12 साल के भीतर ही थम गई बीआरटीएस की रफ्तार
इंदौर में बढ़ते ट्रैफिक लोड को देखते हुए साल 2013 में बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (BRTS) की शुरुआत की गई। यह नेटवर्क शहर के बीचोंबीच निरंजनपुर से लेकर राजीव गांधी चौराहे तक कुल 11.5 किलोमीटर के दायरे में फैला हुई था। लगभग 300 करोड़ रुपए की लागत से तैयार किए गए इस बीआरटीएस कॉरिडोर में अत्याधुनिक सुविधाएं, सुरक्षित लेन और सुगम परिवहन व्यवस्था शामिल थी। लेकिन शहर हितों में लिए गए कई फैसलों के बीच फरवरी 2025 में हाइकोर्ट ने इसे हटाने का आदेश सुनाया था।
पहले फेज में 31.55 किमी लंबे रूट पर ट्रेन चलाई जाएगी
इंदौर में मेट्रो रेल परियोजना के पहले चरण में 31.55 किलोमीटर लंबे रूट पर ट्रेन चलाई जाएगी। इसमें से 8.7 किमी का ट्रैक अंडरग्राउंड है। 28 स्टेशन बनाए जाने हैं। जिनमें से 7 स्टेशन अंडरग्राउंड रहेंगे। अंडरग्राउंड प्रोजेक्ट की लागत 2190.91 करोड़ रुपए है।
पूरे प्रोजेक्ट की कुल लागत 7500 करोड़ रुपए है। इसमें और इजाफा होने की संभावना है। क्योंकि मेट्रो प्रोजेक्ट में बंगाली चौराहे से रीगल तिराहे तक का हिस्सा फिलहाल एलिवेटेड बनना प्रस्तावित है।
जनप्रतनिधियों की मांग पर इस हिस्से को अंडरग्राउंड करने की योजना भी बनाई गई। इस बदलाव के कारण राज्य सरकार पर 1600 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ आ रहा है। यह प्रोजेक्ट 4 साल में पूरा होने की उम्मीद है।
5 स्टेशनों के बीच कॉमर्शियल रन, ये प्रायोरिटी कॉरिडोर
जिन 5 स्टेशनों के बीच मेट्रो का कॉमर्शियल रन शुरू होगा। इसे प्रायोरिटी कॉरिडोर नाम दिया गया है। इस कॉरिडोर के तहत 5 स्टेशनों पर शुरुआत में रन शुरू होगा। सुपर कॉरिडोर पर गांधी नगर से टीसीएस चौराहा तक 6 किमी हिस्से में मेट्रो दौड़ेगी। सुपर प्रायोरिटी कॉरिडोर पर गांधीनगर स्टेशन, सुपर कॉरिडोर स्टेशन नंबर 3, 4, 5 और 6 कुल पांच स्टेशन आएंगे। इनमें इलेक्ट्रिकल सेक्शन, प्लेटफॉर्म, लिफ्ट, एस्कलेटर सहित सभी सुविधाएं जुटाई जा चुकी हैं। ट्रेन को न्यूनतम व अधिकतम गति से चलाकर देखा जा चुका है।



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80 से 100km की रफ्तार से दौड़ी इंदौर मेट्रो

कमिश्नर ऑफ मेट्रो रेलवे सेफ्टी (CMRS) की टीम 24-25 मार्च को मेट्रो की फाइनल रिपोर्ट लेकर कर रवाना हुई थी।
इंदौर मेट्रो का कॉमर्शियल रन अप्रैल माह में होने की संभावना है। कमिश्नर ऑफ मेट्रो रेलवे सेफ्टी (CMRS) की टीम 24-25 मार्च को मेट्रो की फाइनल रिपोर्ट लेकर कर रवाना हो चुकी है। बताया जा रहा है कि सीएमआरएस से हरी झंडी मिलते ही इंदौर में मेट्रो का कॉमर्शियल रन शुरू हो जाएगा। इंदौर मेट्रो के संचालन के लिए मेट्रो कोच और ट्रैक से संबंधित अप्रूवल पहले ही रेलवे बोर्ड दे चुका है। बोर्ड के मुताबिक मेट्रो के कोच और बिछाया गए ट्रैक पूरी तरह से फिट हैं। यहां पढ़ें पूरी खबर