प्रत्येक वस्तु का रूप तो एक ही होता है, लेकिन उसकी कल्पना अलग-अलग रूपों में हो सकती है। ब्रह्मज्ञान होने के बाद भी व्यक्ति संसार के तत्वों का उपभोग करते हैं। उपभोग और उपयोग में अंतर समझना होगा। एक लाख रुपए की साड़ी पहनना उपभोग होता है, लेकिन 200 रुपए
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प्रेरक विचार हैं ब्रज परिकरी देवी के, जो उन्होंने गीता भवन में गो लोक धाम ट्रस्ट मुंबई के तत्वावधान में आयोजित व्याख्यान में दूसरे दिन व्यक्त किए। उनका व्याख्यान सुनने के लिए रविवार को भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। उनके प्रवचनों की यह श्रृंखला भौतिकवाद एवं अध्यात्मवाद के समन्वय पर आधारित है, जो 24 नवंबर तक प्रतिदिन सांय 7 से 9 बजे तक गीता भवन सत्संग सभागृह में चलेगी।
व्याख्यान में उपस्थित श्रोता
यदि इच्छाएं पूरी नहीं हुई तो क्रोध बढ़ेगा
उन्होंने कहा कि उपभोग करने से वासनाएं बढ़ती जाती हैं। इच्छाएं जब तक बढ़ती जाएंगी, तब तक लोभ भी बढ़ता जाएगा, लेकिन यदि इच्छाएं पूरी नहीं हुई तो क्रोध बढ़ेगा। इस तरह उपभोग की प्रवृत्ति से दो तरह के नुकसान हो सकते हैं। संसार सत्य है तो संसार में इसलिए आनंद नहीं मिलता, क्योंकि संसार भगवान की तरह सत्य नहीं है। हम को संसार में आसक्ति के कारण आनंद नहीं मिलता, जबकि भगवान की तरह आसक्ति रखेंगे तो किसी न किसी रूप में आनंद मिलेगा ही।
संसार का उपयोग करना है, उपभोग नहीं
उन्होंने कहा कि याद रखें कि हमें शरीर चलाने के लिए संसार का उपयोग करना है, उपभोग नहीं। हम एक लाख की साड़ी पहनेंगे तो वह उपभोग होगा, 200 रुपए की साड़ी पहनेंगे तो उपयोग होगा। साधारण खाना खाएंगे तो उपयोग होगा, लेकिन पुड़ी, कचौड़ी, पकवान खाएंगे तो उपभोग होगा। ईश्वर, जीवन एवं माया – ये तीनों तत्व सनातन और सत्य हैं। कोई किसी को न बना सकता है और न ही बिगाड़ सकता है। यह संसार भगवान ने बनाया है। यदि भगवान ने यह संसार बनाया है तो यह सत्य होना चाहिए, मिथ्या नहीं। संसार सत्य है तो संसार में आनंद इसलिए नहीं मिलता कि संसार भगवान की तरह सत्य नहीं है।