खरगोन कलेक्टर, एसपी और डीएफओ के बंगलों में बंदरों की टोली ने धमाचौकड़ी मचा रखी है। तोड़फोड़ करना, सामान उठाकर ले जाना, कैंपस में उछलकूद कर सामान तोड़ना तो कभी काटने दौड़ना। कभी सुबह तो कभी दोपहर, बंदरों की टोली आती है और उथल-पुथल मचाकर भाग निकलती है।
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इंदौर संभाग में जंगली जानवरों का रेस्क्यू करने वाली टीम इंदौर में ही है तो यहां से टीम को भेजकर बंदरों को पकड़ने की गुजारिश की गई। टीम पूरे दो दिन खरगोन में अफसरों के बंगलों के आसपास ही रही। पिंजरे लगाए तो चालाक बंदर पिंजरे के आसपास भी नहीं फटके।
अफसरों के बंगलों के आसपास टीम गश्ती करती तो बंदर दूर भाग जाते। आखिर में बंदरों को ट्रेंक्यूलाइज किया गया। दो बंदरों को बेहोश कर पिंजरों में बंद किया और जंगलों में छोड़ा गया। टोली के बाकी सदस्य साथी बंदरों को बेहोश देखकर रफूचक्कर हो गए।
500 मीटर की दूरी में तीनों बंगले खरगोन कलेक्टर भव्या मित्तल ने इंदौर डीएफओ प्रदीप मिश्रा को मोबाइल लगाकर बंदरों का रेस्क्यू करने की गुजारिश की थी। 500 मीटर की दूरी में कलेक्टर, एसपी और खरगोन डीएफओ का बंगला है। अन्य अफसरों के घरों में भी बंदरों ने नुकसान पहुंचाया। एसडीओ योहान कटारा के निर्देशन में रेस्क्यू दल को खरगोन भेजा गया।
दो जगह पिंजरे लगाए थे, लेकिन बंदर लालच में नहीं आए। आखिर में बेहोशी का डोज बंदरों को दिया गया। कुछ मिनट में बंदर बेहोश हुए तो उन्हें पिंजरे में रखा गया। मालूम हो, रालामंडल स्थित टीम को सूचना मिलने पर 350 किमी तक दूर तक रेस्क्यू करने जाना होता है।