Tuesday, June 17, 2025
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एक ऐसा मंदिर, जहां रखा है भगवान श्रीकृष्ण का दिल, जो आज भी धड़कता है!


महाभारत के युद्ध के काफी समय बाद भगवान श्रीकृष्ण एक पेड़ के नीचे लेटे हुए थे. तभी वहां एक बहेलिया आया, भगवान श्रीकृष्ण पैर आगे करके लेटे हुए थे. ब​हेलिया ने भगवान श्रीकृष्ण के पैर को मछली समझ लिया और शिकार को मारने के लिए तीर चला दिया. वह तीर भगवान श्रीकृष्ण के पैर के तलवे में जाकर लगा, जिससे उनकी मृत्यु हो गई. पांडवों ने उनका अंतिम संस्कार किया, अग्नि में पूरा शरीर जल गया लेकिन उनका हृदय नहीं जला. पांडवों ने उसे समुद्र में बहा दिया. वह समुद्र से होते हुए दक्षिण भारत पहुंच गया, वहां के एक प्रसिद्ध मंदिर में आज भी भगवान श्रीकृष्ण का दिल रखा गया है, जो धड़कता है. आइए जानते हैं भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी इस रोचक कथा के बारे में.

भगवान श्रीकृष्ण का शरीर जला, लेकिन जीवित रहा हृदय

जब भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई तो इसकी खबर पांडवों को पता चली. वे लोग वन में आए और विधि विधान से भगवान श्रीकृष्ण का अंतिम संस्कार किया. पंचतत्वों से बना शरीर जल गया, लेकिन उनका हृदय इतना पवित्र था​ कि वह जल नहीं पाया. तभी वह धड़क रहा था. तब पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण के हृदय को समुद्र के जल में प्रवाहित कर दिया. वह हृदय बहते हुए ओडिशा के पुरी तट पर पहुंच गया.

पवित्र हृदय ने ले​ लिया लट्ठ का स्वरूप
पुरी के तट पर पहुंचा भगवान श्रीकृष्ण का हृदय एक लट्ट के रुप में परिवर्तित हो गया. पुरी के राजा इंद्रद्युम्न ने रात में सपना देखा कि भगवान श्रीकृष्ण ने उनको दर्शन दिए और लट्ठ स्वरूप हृदय के बारे में जानकारी दी. यह स्वप्न देखने के अगली सुबह राजा इंद्रद्युम्न समुद्र तट पर पहुंचे. वहां पर उनको भगवान श्रीकृष्ण का हृदय एक लट्ठ के स्वरूप में प्राप्त हुआ.

विश्वकर्मा ने लट्ठ से बनाई भगवान जगन्नाथ की मूर्ति
भगवत आदेश पाकर देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा जी ने उस लट्ठ से भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बनाई. साथ ही उनके भाई बलभद्र और सुभद्रा जी की भी मूर्तियां बनाईं. इन तीनों ही मूर्तियों को पुरी के जगन्नाथ मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित कर दिया गया. मान्यताओं के अनुसार, पुरी मंदिर के गर्भ गृह में जहां पर ये मूर्तियां रखी गई हैं, वहां पर भगवान श्रीकृष्ण का दिल आज भी धड़कता है.

हर 20 साल पर बदलती हैं मूर्तियां

पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियों को प्रत्येक 15 या 20 साल में बदल देते हैं. हर 15 या 20 साल में एक बार नीम की लकड़ी से नई मूर्तियां बनाई जाती हैं. उस समय नव कलेवर रस्म होती है, जिसमें मंदिर के पुजारी पुरानी मूर्तियों को हटाकर नई मूर्तियों को स्थापित करते हैं और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है.

हर साल नगर भ्रमण करते हैं भगवान जगन्नाथ
हर साल आषाढ़ माह में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण पर निकलते हैं. आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि से पुरी की विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा का शुभारंभ होता है. भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीन अलग अलग रथों पर सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं.

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ये तीनों अपनी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर जाते हैं. इस रथ यात्रा में शामिल होने के लिए दुनिया के कोने-कोने से लोग आते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो लोग इस जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होते हैं, उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है, वो मृत्यु के बाद जीवन और मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है. इस साल जगन्नाथ रथ यात्रा का प्रारंभ 26 जून दिन गुरुवार से होगा.

(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारियों पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)



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