सिर खपाने के बाद भी आपको मध्यप्रदेश सरकार के बजट के आंकड़े समझ नहीं आ रहे हैं तो हम आपको आसान भाषा में बताते हैं। इससे आपको समझ आएगा कि राज्य सरकार के पास पैसा कहां से आता है और कहां खर्च होता है? जैसे हमें क्रेडिट स्कोर देखकर बैंक से लोन मिलता है, वै
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बजट के आंकड़ों को बहुत सरल तरीके से समझें तो एक और बात समझ आती है कि एक रुपए में 43 पैसे सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों की तनख्वाह-पेंशन और लोन का ब्याज चुकाने में ही चली जाती है। एक और दिलचस्प बात ये है कि सरकार को सबसे ज्यादा 22 हजार करोड़ रुपए की कमाई पेट्रोल-डीजल के वैट से होती है। दूसरे नंबर पर शराब से सबसे ज्यादा 17500 करोड़ रुपए का टैक्स मिलता है।
मध्यप्रदेश के वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने बुधवार को 4.21 लाख करोड़ का बजट पेश किया। दावा किया कि ये बजट पिछले बजट 3.65 लाख करोड़ से 15% ज्यादा है। सबसे पहले समझते हैं, सरकार को कितना पैसा कहां से मिलेगा?
केंद्र से राज्यों को कैसे मिलता है टैक्स प्रदेश को केंद्र से मिलने वाला टैक्स और मदद का हिस्सा फिक्स होता है। पहले राज्य सरकारें अपने स्तर पर कई अप्रत्यक्ष कर वसूलती थीं, लेकिन जीएसटी आने के बाद अप्रत्यक्ष कर के संग्रह में भी केंद्र की हिस्सेदारी बढ़ी है। हालांकि, राज्यों को राजस्व में नुकसान के मुआवजे के तौर पर केंद्र टैक्स देता है।
किसी राज्य को केंद्रीय करों में से कितना हिस्सा मिलेगा, इसकी सिफारिश वित्त आयोग करता है। संविधान के अनुच्छेद-280 में वित्त आयोग बनाने का प्रावधान है। राज्यों को केंद्रीय करों में हिस्सा डेमोग्राफिक परफॉर्मेंस, इनकम, आबादी, जंगल, इकोलॉजी और कर जुटाने के साथ-साथ घाटा कम करने के लिए किए गए प्रयासों को देखकर दिया जाता है।
वहीं, केंद्र से राज्य सरकार को मिलने वाली मदद भी फिक्स है। जैसे केन-बेतवा लिंक परियोजना केंद्र और राज्य के सहयोग से पूरी की जा रही है। इसमें केंद्र का जितना हिस्सा है, वो राज्य को मिलेगा। फिर राज्य की अपनी कमाई कहां से होती है? इसे नीचे दी गई स्लाइड से समझिए…


अब समझते हैं कि पैसा कहां खर्च करती है सरकार सरकार कमाई का पैसा इन्फ्रास्ट्रक्चर, विभागों की योजनाओं, कर्ज का ब्याज चुकाने, वेतन-भत्तों पर खर्च करती है। इस बार सबसे ज्यादा पैसा 70 हजार करोड़ रुपए सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट पर खर्च करेगी। ये कुल बजट का 17% है। 28636 करोड़ रुपए हर साल सरकार ब्याज चुकाएगी। ये कुल बजट का 7 फीसदी है।
वहीं, 29 हजार 980 करोड़ रुपए हर साल ब्याज के अलावा मूलधन चुकाने में खर्च होगा। रोजगार के नाम पर सरकार ने 4835 करोड़ रुपए के खर्च का जिक्र किया है। वित्त विभाग के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी से जब सवाल पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि सरकार इंडस्ट्री को प्रोत्साहन देकर ऐसा इको सिस्टम बनाना चाहती है कि रोजगार पैदा हों।
एक्सीलेंस कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर मनीष शर्मा कहते हैं कि स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में 11% और 12% के खर्च का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और भत्तों पर खर्च होता है। बजट का 43% से 45% हिस्सा वेतन, पेंशन, ब्याज चुकाने में खर्च हो रहा है। ये चिंता की बात है। शर्मा कहते हैं-

यदि ये पैसा स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने और स्कूल शिक्षकों को ट्रेनिंग देने में खर्च होता तो ज्यादा बेहतर होता।

एमपी के हर व्यक्ति पर 52 हजार कर्ज, हर साल बढ़ रहा मध्यप्रदेश पर अभी 4.21 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। ये कर्ज साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। हालात ये हैं कि ब्याज के भुगतान पर हर साल कुल आय का 10% खर्च हो रहा है। हालांकि, बजट डायरेक्टर तन्वी सुंद्रियाल का तर्क है कि ये कर्ज प्रदेश की आर्थिक सेहत के आधार पर ही दिया जा रहा है।
एमपी अपनी तय लिमिट में ही कर्ज ले रहा है। ये कर्ज नहीं है, निवेश है। कर्ज लेकर पूंजीगत निवेश हो रहा है। अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए ये जरूरी है। वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ज्यादा कर्ज के सवाल पर कहते हैं कि कर्ज विकास परियोजनाओं और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए लिया जा रहा है।

बजट से ज्यादा सरकार पर कर्ज बजट में सरकार ने अनुमान जताया है कि 2025-26 में कर्ज सीमा 4.99 लाख करोड़ तक हो सकती है। सरकार ने प्रतिव्यक्ति कर्ज का कोई ब्योरा बजट में नहीं दिया है, लेकिन 4.21 लाख करोड़ रुपए कर्ज पर यदि प्रदेश की 8 करोड़ की आबादी के हिसाब से गणना करें तो ये 52 हजार रुपए से ज्यादा होता है। यानी बढ़ते कर्ज के साथ मध्यप्रदेश में प्रतिव्यक्ति कर्ज का दायरा भी लगातार बढ़ता जा रहा है।
एक्सीलेंस कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर मनीष शर्मा कहते हैं कि राज्य के लिए लगातार बढ़ता हुआ कर्ज सबसे बड़ी चिंता है। मौजूदा हालात में सरकार एक रुपए में 7 पैसे सिर्फ लोन पर ब्याज चुका रही है और 7 पैसे मूलधन चुका रही है।

राज्य और घर के बजट में क्या अंतर होता है प्रो. मनीष शर्मा इसे समझाते हुए कहते हैं कि घर के बजट और सरकार के बजट में मूल फर्क ये होता है कि घर का बजट हम आय के हिसाब से तय करते हैं, जबकि राज्य का बजट खर्च के हिसाब से तय होता है। इसके लिए राज्य का वित्त विभाग अलग-अलग विभागों से खर्च का आकलन प्राप्त करता है। इसके बाद आय का अनुमान लगाते हैं कि कहां से कितना पैसा मिलेगा? फिर बजट का खाका तैयार होता है।
बजट डायरेक्टर तन्वी सुंद्रियाल बताती हैं कि नवंबर से इसकी तैयारी शुरू कर दी गई थी। सबसे पहले विभागीय स्तर पर ये देखा गया कि किन-किन विभागों में बजट खर्च नहीं हुआ। इसी आधार पर पहली बार मध्यप्रदेश ने जीरो वेस्ट बजट बनाया है, ताकि जिसको जितनी जरूरत हो उतना ही बजट आवंटन हो।
बजट पर 1500 से ज्यादा सुझाव लिए गए। सीएम केयर योजना भोपाल के एक बड़े डॉक्टर की सलाह पर बजट में आखिरी वक्त में शामिल की गई।

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सातवीं बार। न दृश्य बदला, न तस्वीर। दृश्य– घर में पूजा-पाठ, पत्नी के हाथ तिलक और तस्वीर– हाथ में डार्क ब्राउन कलर का लेदर का बैग। हर बार की तरह मध्यप्रदेश के वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा बुधवार को चार ईमली स्थित अपने बंगले में पूजा-पाठ कर बजट पेश करने निकले। पढ़ें पूरी खबर…