केंद्र सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के लिए आठवें वेतन आयोग (पे कमीशन) के गठन को मंजूरी दे दी है। सातवें वेतन आयोग का कार्यकाल 31 दिसंबर 2025 को खत्म हो रहा है। 1 जनवरी 2026 से आठवें वेतन आयोग का कार्यकाल शुरू होगा।
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केंद्र सरकार के इस ऐलान के बाद मप्र के सरकारी कर्मचारी भी इंतजार कर रहे हैं कि जो आयोग बनेगा वो क्या सिफारिश करता है? हालांकि, मप्र के कर्मचारियों को 8वें वेतनमान का फायदा मिलने में करीब 3 साल का वक्त लगेगा,क्योंकि केंद्रीय आयोग को अपनी सिफारिश देने में ही डेढ़ से दो साल लग जाएंगे।
दरअसल, सातवें वेतन आयोग ने भी डेढ़ साल बाद अपनी सिफारिशें केंद्र सरकार को दी थी। मप्र के वित्त विभाग के सूत्र बताते हैं कि केंद्रीय कैबिनेट इन सिफारिशों को मंजूरी देगी, उसके बाद राज्य सरकार इन्हें लागू करने का फैसला करेगी।
राज्य सरकार ने सातवें वेतनमान में 14% की वृद्धि की थी, इस बार यह बढ़कर 15% तक हो सकती है। ऐसा हुआ तो द्वितीय श्रेणी से लेकर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की सैलरी 5 से 11 हजार रु. तक बढ़ सकती है। संडे स्टोरी में पढ़िए आठवें वेतनमान के बाद मप्र के 5.90 लाख कर्मचारियों की सैलरी में कितना इजाफा हो सकता है?
2 पॉइंट्स में जानिए सिफारिश देने में दो साल का वक्त क्यों लगेगा
1. वर्तमान स्थितियों के परीक्षण में लगता है समय: जानकार कहते हैं कि केंद्र सरकार ने आठवें वेतन आयोग का गठन करने का फैसला लिया है। आयोग के गठन में 2 से 3 महीने लग सकते हैं। इसके बाद आयोग को महंगाई दर के हिसाब से सरकार,कर्मचारी की वर्तमान स्थितियों का परीक्षण करने और वेतनमान की अनुशंसा करने में दो साल से अधिक का समय लगता है।
सातवें वेतन आयोग ने भी सिफारिशें देने में डेढ़ साल का समय लिया था। जस्टिस अशोक माथुर की अध्यक्षता में सातवें वेतन आयोग का गठन 28 फरवरी 2014 को हुआ था। आयोग ने करीब डेढ़ साल बाद 19 नवंबर 2015 को अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को दी। उसके डेढ़ महीने बाद केंद्र सरकार ने 1 जनवरी 2016 से सिफारिशें लागू की थी।
इस हिसाब से आयोग अपनी सिफारिश केंद्र सरकार को 2027 के अंत तक ही दे पाएगा। इसके बाद केंद्र सरकार अपने कर्मचारियों को नया वेतनमान देने का आदेश करेगी।
2. केंद्र के आदेश के बाद राज्य में प्रक्रिया शुरू होगी: वित्त विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि राज्य के कर्मचारियों को नया वेतनमान देने की प्रक्रिया केंद्र के आदेश के बाद ही शुरू होती है। यह भी तब, जब कर्मचारी संगठन सरकार पर दबाव बनाते हैं।
इसके बाद राज्य सरकार या तो आयोग का गठन करती है या फिर उच्च स्तरीय कमेटी का। राज्य सरकार केंद्र के आदेश को शत-प्रतिशत लागू करने के लिए बाध्य नहीं है। यानी राज्य में यह प्रक्रिया 2027 में शुरू होने की संभावना है।

क्लास-टू से क्लास-फोर तक 5 से 11 हजार तक बढ़ सकती है सैलरी
वित्त विभाग के सूत्रों का कहना है कि मप्र सरकार केंद्र के फैसले को लागू करने के लिए राज्य में आयोग गठित करने के बजाय पुराने फॉर्मूले को लागू कर सकती है। यानी जिस तरह से सातवां वेतनमान का निर्धारण किया गया था, उसी तरह आठवां वेतनमान लागू हो सकता है।
छठवें वेतनमान की तुलना में सातवें वेतनमान में 14% की बढ़ोतरी हुई थी। ऐसे में नए वेतनमान में 15% तक की वृद्धि संभावित है। मध्य प्रदेश में वर्तमान में फिलहाल महंगाई भत्ता 50% है। अगले साल इसे बढ़ाकर 60% करने की तैयारी है। इस दौरान 3% इंक्रीमेंट भी कर्मचारियों को दिया जाएगा। इसके बाद 1 जनवरी 2026 की स्थिति में मिलने वाले वेतन में 15% की बढ़ोतरी का अनुमान है।
इसे नीचे दिए गए चार्ट से समझिए…


सातवें वेतनमान का फायदा किसे मिला किसे नहीं
नियमित कर्मचारी-अधिकारियों को 2 से 19 हजार का फायदा 7वें वेतनमान आयोग की सिफारिशों को लागू करने का फैसला सरकार ने जुलाई 2017 में लिया था। साढ़े पांच लाख से ज्यादा नियमित अधिकारियों-कर्मचारियों को एक जनवरी 2016 से सातवां वेतनमान दिया गया था। इससे हर माह अधिकारियों-कर्मचारियों के वेतन में 2 हजार से लेकर 19 हजार रुपए तक बढ़ोतरी हुई थी।
शिवराज कैबिनेट ने यह फैसला 2018 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लिया था। ऐसे में 18 माह का एरियर भी तीन किस्तों में नकद दिया गया था।
डॉक्टर्स को पिछले विधानसभा चुनाव से पहले दिया था 7वां वेतनमान प्रदेश के सरकारी डॉक्टर्स को सातवें वेतनमान का फायदा सरकार ने 2023 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दिया था। जबकि प्राध्यापकों को इसका फायदा देने का आदेश डॉ. मोहन सरकार ने अक्टूबर 2024 में किया था। इसी तरह पेंशनर्स को सातवें वेतनमान का फायदा अप्रैल 2018 से देना शुरू किया गया था।

1.85 लाख स्थायी कर्मियों को 8 साल से नहीं मिला फायदा मंत्रालय में काम करने वाले करीब 450 सहित प्रदेश के 1 लाख 85 हजार स्थायी कर्मियों को सातवां वेतनमान का फायदा अब तक नहीं मिला है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 7 अक्टूबर 2016 को इन दैनिक वेतन भोगियों को स्थायी कर्मी नाम देते हुए स्थायी किया गया था।
उन्हें सेवा सुरक्षा से लेकर नियमित कर्मचारियों के समान बाकी फायदे मिल रहे हैं, लेकिन सातवें वेतनमान का फायदा नहीं दिया जा रहा है। ये कर्मचारी पिछले 8 साल से सातवें वेतनमान की लड़ाई लड़ रहे हैं।
एमपी के कर्मचारियों को 1989 में मिला वेतन आयोग का फायदा केंद्रीय वेतन आयोग की अनुशंसाएं केवल केंद्रीय कर्मचारियों के लिए होती हैं, लेकिन राज्य के कर्मचारी संघर्ष कर वेतनमान समेत कुछ अनुशंसाएं अपने लिए लागू कराने में कामयाब होते आए हैं। मध्य प्रदेश के कर्मचारी 1989 में पहली बार केंद्रीय वेतनमान लेने में सफल हुए थे, जिसे 1986 से प्रभावशील माना गया था। तभी से यहां के कर्मचारियों को केंद्रीय वेतनमान मिलता आ रहा है।

अब जानिए केंद्र के कर्मचारियों को किस तरह से मिलेगा फायदा
वेतन मैट्रिक्स 1.92 के फिटमेंट फैक्टर से होगा तैयार
इसे ऐसे समझिए- केंद्र सरकार के कर्मचारियों की सैलरी के 18 लेवल हैं। लेवल-1 कर्मचारियों की बेसिक सैलरी 1800 रुपए ग्रेड पे के साथ 18,000 रुपए है। इसे 8वें वेतन आयोग के तहत बढ़ाकर 34,560 रुपए किया जा सकता है।
इसी तरह केंद्र सरकार में कैबिनेट सचिव स्तर के अधिकारियों को लेवल-18 के तहत अधिकतम 2.5 लाख रुपए की बेसिक सैलरी मिलती है। यह बढ़कर तकरीबन 4.8 लाख रुपए हो सकती है।
न्यूनतम वेतन 34,560 रुपए होने का अनुमान
अगर जनवरी 2026 में 8वां वेतन आयोग लागू हुआ तो केंद्रीय कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन 34,560 रुपए होने का अनुमान है। साल 2004 से जोड़ें तो नौकरी में 25 साल पूरे करने वाले कर्मचारियों का पहला बैच 2029 में रिटायर होगा।
अब मान लीजिए 8वां वेतन आयोग लागू होने के बाद लेवल-1 के एक कर्मचारी की बेसिक सैलरी 34,560 रुपए हो गई है तो इसकी 50% रकम 17,280 रुपए होती है। इस हिसाब से कर्मचारी को 17,280 रुपए+DR की धनराशि पेंशन के तौर पर मिलेगी।
हालांकि, यह रेयर केस में ही होगा कि कोई कर्मचारी लेवल-1 पर नौकरी जॉइन करने के बाद रिटायरमेंट तक उसी लेवल पर रहे। प्रमोशन और अन्य नियमानुसार समय-समय पर इस लेवल में बढ़ोतरी होती रहती है। इसलिए कर्मचारी को इससे कहीं ज्यादा धनराशि पेंशन के रूप में मिलेगी।
वहीं, लेवल-18 के कर्मचारियों की बेसिक सैलरी 4.80 लाख रुपए होगी। इसका 50% कुल 2.40 लाख रुपए+DR की धनराशि पेंशन के तौर पर मिलेगी।
