Monday, June 9, 2025
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एमपी में बंद प्लांट से बिजली खरीदेंगी इलेक्ट्रिसिटी कंपनियां: फर्जी आंकड़े दिखा उपभोक्ताओं से 10 हजार करोड़ वसूलने का प्रस्ताव, 7.25% टैरिफ बढ़ाने की तैयारी – Madhya Pradesh News


मध्यप्रदेश की पावर कंपनियों ने फर्जी आंकड़े दिखाकर उपभोक्ताओं की जेब से 10 हजार करोड़ रुपए वसूलने का प्रस्ताव तैयार कर लिया है। ये प्रस्ताव उस टैरिफ याचिका में है, जिसके लागू होने पर उपभोक्ताओं के ऊपर 7.25 प्रतिशत टैरिफ रेट का बाेझ बढ़ जाएगा।

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कंपनियों के फर्जीवाड़े का अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि पिछले दो वित्तीय वर्ष से सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में स्थित तीन ऐसी जल विद्युत कंपनियों से बिजली खरीदने का प्रस्ताव ला रही हैं, जिसके प्लांट ही चालू नहीं हैं।

मध्यप्रदेश में सरप्लस बिजली होने के बावजूद अहमदाबाद स्थित टोरेंट कंपनी से 8.01 रुपए प्रति यूनिट की दर से सबसे महंगी बिजली खरीदने का प्रस्ताव भी है। सस्ती बिजली देने वाली मप्र की बिजली ईकाइयों से बिना एक यूनिट बिजली खरीदे 2100 करोड़ रुपए नियत प्रभार के रूप में देने की अनुमति भी मांगी है।

मिस मैनेजमेंट के कारण पहले से ही 500 करोड़ रुपए सालाना उपभोक्ताओं पर भार पड़ रहा है। जहां 10 प्रतिशत बिजली सस्ती हो सकती थी, वहां इसे और महंगी करने की तैयारी क्यों है…पढ़िए रिपोर्ट

पावर मैनेजमेंट कंपनी एमपी की तीनों बिजली वितरण कंपनियों को मैनेज करती है।

सबसे पहले जानते हैं कि बिजली टैरिफ याचिका में क्या है? मध्यप्रदेश में 1 अप्रैल 2025 से प्रस्तावित बिजली की दरों में 7.25 प्रतिशत बढ़ोतरी की तैयारी है। प्रदेश की तीनों वितरण कंपनियों की होल्डिंग मप्र पॉवर मैनेजमेंट कंपनी की ओर से राज्य विद्युत नियामक आयोग के समक्ष पेश की गई टैरिफ याचिका में 58 हजार 744 करोड़ रुपए राजस्व खर्च का अनुमान व्यक्त किया गया है।

तर्क दिया गया है कि यदि वितरण कंपनियों ने मौजूदा दरों पर बिजली बेची तो 4107 करोड़ रुपए का घाटा होगा। इसकी भरपाई के लिए बिजली महंगी करने का प्रस्ताव पेश किया गया है। इस बार की टैरिफ याचिका में वर्ष 2023–24 की सत्यापन याचिका के तहत 4344 करोड़ रुपए का खर्च जुड़ा है।

सत्यापन याचिका में 7300 करोड़ खर्च का ब्योरा ही नहीं मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी की ओर से दायर की गई टैरिफ याचिका में वर्ष 2023-24 की सत्यापन याचिका के तौर पर 4344 करोड़ रुपए की मांग की गई है। तब प्रदेश में विधानसभा चुनाव के चलते बिजली की दरें नहीं बढ़ी थीं। ये खर्च इस बार वसूलने की तैयारी है जबकि इस सत्यापन याचिका में 7297 करोड़ रुपए खर्च का ब्योरा ही नहीं दिया गया है।

कंपनी ने बिजली खरीदी के सप्लीमेंट्री बिल 2628 करोड़ रुपए बताए हैं। किस कंपनी को ये भुगतान किया गया, इसकी जानकारी नहीं दी गई है। इसी तरह बिजली खरीदी में री-कैंसिलेशन की राशि के तौर पर 903 करोड़ रुपए का खर्च बताया गया है। किस कंपनी का ये बिल छूटा था, इसका ब्योरा नहीं है।

मप्र पॉवर मैनेजमेंट कंपनी ने 1207 करोड़ रुपए की मांग की है। जबकि इस कंपनी का ऑडिट ही नहीं होता, जिससे पता चले कि ये राशि किस मद में खर्च की गई।

जो जल विद्युत संयंत्र चालू नहीं, उससे भी खरीदेंगे बिजली मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी ने अरुणाचल-सिक्किम में तीन ऐसे जल विद्युत संयंत्रों सुबनसिरी, तीस्ता और रंगीत से बिजली खरीदने का उल्लेख किया है, जो पर्यावरणीय अवरोधों के चलते चालू ही नहीं हो पाए हैं। पिछले वर्ष कंपनी ने लोअर सुबनसिरी से 140 करोड़, तीस्ता से 161 करोड़ और रंगीत जल विद्युत गृह से 65 करोड़ की 824 मिलियन यूनिट बिजली खरीदने की स्वीकृत दी थी।

दिसंबर 2024 के राज्य विद्युत लेखा में बताया गया है कि तीनों जल विद्युत घरों से एक भी यूनिट बिजली प्राप्त नहीं हुई है। इसके बावजूद इस बार भी याचिका में सुबनसिरी और रंगीत से 140 करोड़ की बिजली खरीदी का उल्लेख किया गया है। इस बार तीस्ता का जिक्र ही नहीं किया गया है। जबकि तीनों जल विद्युत संयंत्रों से इस बार बिजली मिल पाएगी, इस आशय का कोई परिपत्र या प्रमाण नहीं है।

बिजली बेचने वाली कंपनियों के दावे से अधिक नियत प्रभार मप्र पॉवर मैनेजमेंट कंपनी ने प्रदेश की 5 निजी बिजली उत्पादकों को 2130 करोड़ की राशि नियत प्रभार के तौर पर देने का उल्लेख किया है। जबकि इन पांचों निजी बिजली उत्पादकों ने वर्ष 2025-26 के लिए खुद जो नियत प्रभार का दावा किया है, उसकी राशि 1804 करोड़ है। मतलब मैनेजमेंट कंपनी ने यहां 325 करोड़ की अतिरिक्त राशि का भुगतान करने का उल्लेख किया है।

उसने नियत प्रभार की गणना निजी बिजली उत्पादकों के लिए 2019-24 के टैरिफ आदेश के आधार पर की है। जबकि निजी विद्युत उत्पादक ईकाइयों द्वारा वर्ष 2024-25 से 2028-29 तक उत्पादन टैरिफ निर्धारण की याचिकाएं आयोग में पेश की जा चुकी हैं। इस पर सुनवाई भी हो चुकी है।

लेंको अमरकंटक से 1589 मिलियन यूनिट खरीदी का अनुबंध पॉवर मैनेजमेंट कंपनी ने लेंको से न्यूनतम 1589 मिलियन यूनिट बिजली खरीदी का अनुबंध किया है। इसके एवज में उसे 264 करोड़ रुपए का वार्षिक नियत प्रभार तय किया गया है। यहां इस कंपनी के नियत प्रभार की गणना बहुवर्षीय टैरिफ याचिका वर्ष 2015-19 तक जारी अंतिम वर्ष की स्वीकृत राशि के आधार पर की गई है। जबकि आयोग 2021 में ही 2019-24 का बहुवर्षीय टैरिफ आदेश जारी कर चुका है। इसमें अंतिम वर्ष का नियत प्रभार 203 करोड़ रुपए है। ऐसे में उपलब्ध अंतिम वर्ष के नियत प्रभार की बजाय 2019 के नियत प्रभार का उल्लेख करना टैरिफ नियम के विपरीत है। दूसरा ये कि लेंको का अधिग्रहण अडानी पावर लिमिटेड की सहायक कंपनी कोरबा द्वारा सितंबर 2024 में किया जा चुका है। मेसर्स कोरबा द्वारा 2024-29 बहुवर्षीय नियत प्रभार की टैरिफ याचिका आयोग में लगाई गई थी। आयोग इस याचिका को खारिज कर चुका है। इसके बावजूद पॉवर मैनेजमेंट कंपनी अभी भी लेंको के नाम से बिजली खरीदी का उल्लेख कर रही है।

जेपी पावर ने 544 करोड़ मांगे, मैनेजमेंट कंपनी ने 602 करोड़ सिंगरौली स्थित जेपी पावर के निगरी संयंत्र की ओर से पेश की गई नियत प्रभार की याचिका में 544 करोड़ की मांग की गई है। जबकि मैनेजमेंट कंपनी ने 602 करोड़ नियत प्रभार के तौर पर उल्लेख किया है। मतलब 57 करोड़ की अधिक राशि मांगी गई है। जबकि जेपी पावर की वार्षिक नियत प्रभार की राशि 544 करोड़ में अमेलिया कोल ब्लॉक के पूंजीगत व्यय की गई 210 करोड़ राशि भी शामिल है। आयोग इस राशि को पूर्व के वषों में खारिज कर चुका है।

मेसर्स झाबुआ पावर का नियत प्रभार 225 करोड़ रुपए से भी कम पॉवर मैनेजमेंट कंपनी ने निजी बिजली उत्पादक के तौर पर 263 करोड़ रुपए नियत प्रभार के तौर पर मांगे हैं। जबकि आयोग द्वारा बहुवर्षीय टैरिफ निर्धारण के अंतर्गत अंतिम वर्ष में वार्षिक नियत प्रभार 225 करोड़ स्वीकृत है। इस कंपनी का अधिग्रहण 5 सितंबर 2022 को ही एनटीपीसी संयुक्त उपक्रम में कर चुका है।

अधिग्रहण के बाद नियत टैरिफ का निर्धारण केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग द्वारा किया जाएगा। एनटीपीसी ने इसका अधिग्रहण काफी कम पूंजी में किया है। इससे साफ है कि इसका नियत प्रभार 225 करोड़ रुपए से भी कम होगा।

टोरेंट पावर से महंगी बिजली खरीदी का प्रस्ताव अहमदाबाद स्थित टोरेंट पावर से मैनेजमेंट कंपनी ने 97 मिलियन यूनिट बिजली 8.01 रुपए प्रति यूनिट ऊर्जा प्रभार के सर्वाधिक महंगी दर से खरीदने का उल्लेख किया है। इस पर एक वर्ष में 77.52 करोड़ का खर्च आएगा। यही कारण है कि नियामक आयोग द्वारा पिछले कई वर्षो से टोरेंट पावर की महंगी बिजली नहीं खरीदने का आदेश दिया जाता रहा है।

फिर भी मैनेजमेंट कंपनी ने इस बार भी इसे शामिल कर लिया। इसमें नियत प्रभार के तौर पर 17 करोड़ और ऊर्जा प्रभार के तौर पर 77.52 करोड़ रुपए का खर्च शामिल है। यहां मैनेजमेंट कंपनी नियत प्रभार देकर महंगी बिजली खरीदने से बच सकती है।

पावर मैनेजमेंट कंपनी ने खुद के लिए 208 करोड़ रुपए मांगे मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी ने बिजली खरीदने के लिए पूर्व भुगतान पर मिली छूट की 406 करोड़ की राशि को अपनी आय के तौर पर दर्शाया है। वहीं, उसने इस वित्तीय वर्ष में कुल खर्च 615 करोड़ रुपए का उल्लेख किया है। 208 करोड़ की इस अतिरिक्त राशि का कोई ब्योरा नहीं दिया गया है। जबकि कंपनी का वास्तविक खर्च महज 135 करोड़ है। पावर मैनेजमेंट कंपनी के आय-व्यय को नियमबद्ध करने के लिए आयोग ने कोई रेगुलेशन भी नहीं बनाया है। न ही कभी कंपनी कोई ऑडिट कराती है।

बिजली बैंकिंग के नाम पर हर साल 460 करोड़ की फिजूलखर्ची प्रदेश में बिजली की उपलब्धता सरप्लस है। इसके बावजूद हर साल पावर मैनेजमेंट कंपनी बिजली बैंकिंग के तौर पर 460 करोड़ रुपए खर्च करती है। ये राशि बैंकिंग में बिजली की खरीदी के अलावा है। कंपनी कई वर्षों से मार्च से सितंबर में महंगी बिजली खरीद कर रबी सीजन में अक्टूबर से फरवरी के बीच वापस लेती है। जबकि इसी रबी सीजन में प्रदेश में 1100 मिलियन यूनिट बिजली ब्रेक डाउन की गई थी।

दिसंबर में सर्वाधिक 18500 मेगावाट बिजली की आपूर्ति दिसंबर 2024 में उपलब्ध राज्य ऊर्जा के आंकड़ों के अनुसार, जब रबी सीजन के नाम पर 991 मिलियन यूनिट बिजली अन्य राज्यों से वापस ली गई तो प्रदेश में सरप्लस बिजली होने से कई ईकाइयों में ब्रेक डाउन करना पड़ा। इसके बावजूद दिसंबर में प्रदेश में सर्वाधिक 18500 मेगावाट बिजली की आपूर्ति की गई।

इस दौरान जल विद्युत गृहों से भी कम उत्पादन किया गया। रानी अवंती बाई जल विद्युत गृह बरगी से मात्र 28 मिलियन यूनिट बिजली बनाई गई। जबकि एक महीने में 60 मिलियन यूनिट की उपलब्धता थी। ये बिजली महज 90 पैसे प्रति यूनिट पड़ती है। अनुबंधित बिजली वापस लेने की प्राथमिकता देने से प्रति यूनिट 1.25 रुपए का खर्च ओपन एक्सेस सहित अन्य शुल्क के रूप में करना पड़ता है। इसकी भरपाई आम लोगों की जेब से की जाती है।

बिना एक यूनिट बिजली लिए 2100 करोड़ का नियत प्रभार याचिका में रिनुएबल स्रोतों से बिजली की उपलब्धता 16 हजार 582 मिलियन यूनिट बताई गई है। इसके चलते ताप विद्युत आधारित संयंत्रों से 14464 मिलियन यूनिट बिजली ब्रेक डाउन करना पड़ेगा। इसमें मप्र पावर जनरेटिंग कंपनी के ताप विद्युत गृहों से 6491 मिलियन यूनिट और एनटीपीसी की 5945 मिलियन यूनिट बिजली शामिल है।

इसके चलते बिना एक यूनिट बिजली लिए इन कंपनियों को 2100 करोड़ रुपए नियत प्रभार के तौर पर मिलेंगे। पावर जनरेटिंग और एनटीपीसी की बिजली अन्य कंपनियों की तुलना में सस्ती है। नियमानुसार महंगे ऊर्जा प्रभार वाले संयंत्रों को ब्रेक डाउन करना चाहिए। मैनेजमेंट कंपनी चाहे तो महंगी बिजली उपलब्ध कराने वालों का अनुबंध समाप्त कर सकती है।

स्मार्ट मीटर लगाने के नाम पर 754 करोड़ रुपए मांगे प्रदेश की तीनों विद्युत वितरण कंपनियों द्वारा स्मार्ट मीटर लगाने के एवज में 754 करोड़ रुपए की मांग दर्शाई गई है। याचिका में स्मार्ट मीटर लगवाने वालों को सुबह 9 से शाम 5 बजे तक बिजली खपत पर 20 प्रतिशत की रियायत देने का प्रस्ताव दिया गया है। वहीं, 10 किलोवाट से अधिक खपत करने वाले घरेलू उपभोक्ता से रात के समय खपत पर 20 प्रतिशत अतिरिक्त राशि वसूलने का प्रस्ताव दिया गया है।

भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय ने 14 जून 2023 को जारी अधिसूचना में दिन के खपत पर 20 प्रतिशत रियायत देने का प्रावधान रखा है। लेकिन सुबह-शाम के पीक ऑवर्स में बिजली खपत पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क वसूलने का नियम तय किया है। देर-सवेर इस अधिसूचना को लागू करना पड़ेगा। अभी स्मार्ट मीटर को प्रोत्साहित करने के लिए मनमर्जी रियायत दी जा रही है।

24 लाख उपभोक्ताओं को झटका देने की तैयारी टैरिफ याचिका में घरेलू टैरिफ स्लैब 151-300 को विलोपित करने का प्रस्ताव दिया गया है। जबकि नियामक आयोग इस प्रयास को पूर्व में खारिज कर चुका है। आयोग पांच वर्ष की बहुवर्षीय टैरिफ याचिका निर्धारित कर चुका है।

यह विद्युत अधिनियम 2003 और संशोधित विद्युत पॉलिसी 2016 के प्रावधानों के विपरीत है। 2023-23 और 2024-25 में भी इस तरह के प्रस्ताव को आयोग खारिज कर चुका है।

याचिका में कई खामियां हैं, आपत्ति दायर की है रिटायर्ड इंजीनियर और वकील आर.के. अग्रवाल ने बताया- मप्र राज्य विद्युत नियामक आयोग के समक्ष 32 बिंदुओं पर आपत्ति दायर की है। कोविड के बाद से नियामक आयोग वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई कर रहा है। जबकि सुप्रीम कोर्ट सहित सभी ट्रिब्यूनल में भौतिक सुनवाई शुरू हो चुकी है। एमपी में आयोग के अध्यक्ष 2 जनवरी 2025 से रिक्त है।



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