पश्चिम चंपारण में 53 साल बाद जिले की ऐतिहासिक, पौराणिक और प्राकृतिक धरोहरों को सहेजने की पहल शुरू हुई है। 1972 में संयुक्त चंपारण से अलग होकर पश्चिम चंपारण जिला बना था। तब से अब तक यहां की धरोहरों को संरक्षित करने की कोई ठोस कोशिश नहीं हुई थी। अब सरक
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पटना संग्रहालय के क्षेत्रीय उप निदेशक डॉ. विनय कुमार ने डीएम दिनेश कुमार राय को पत्र भेजकर बेतिया में संग्रहालय निर्माण के लिए 2 एकड़ जमीन चिह्नित करने का निर्देश दिया है। संग्रहालय बनने से आने वाली पीढ़ी को अपनी ऐतिहासिक धरोहरों को जानने का मौका मिलेगा। पर्यटक भी जिले के इतिहास और भूगोल से परिचित हो सकेंगे। संग्रहालय में उन सभी वस्तुओं को रखा जाएगा, जो जिले की ऐतिहासिक, पौराणिक और प्राकृतिक विरासत को दर्शाती हैं।
डीएम दिनेश कुमार राय ने बताया कि संग्रहालय के लिए जमीन चिह्नित करने का निर्देश संबंधित अधिकारी को दिया गया है। जमीन तय होते ही आगे की प्रक्रिया शुरू होगी।
जिले की प्रमुख धरोहरें इतिहास के हर कालखंड के पदचिह्न हैं यहां
- लौरिया नंदनगढ़ः यह स्थान राजा नंद की राजधानी रहा था। यहां सम्राट अशोक द्वारा स्थापित विश्व का सबसे ऊंचा अशोक स्तंभ मौजूद है। गौनाहा के रमपुरवा में भी दो अशोक स्तंभ स्थित हैं, जिन्हें बौद्ध काल से जोड़ा जाता है।
- बेतिया राज करीब 600 सालों तक 10 राजाओं और एक महारानी द्वारा संचालित बेतिया राज जिले की सबसे बड़ी ऐतिहासिक धरोहर है। अब यह ध्वस्त हो चुका है।
- रामनगर राजः नेपाल के नरांटी दरबार से जुड़ा यह राज आज भी अपने सुनहरे अतीत की गवाही देता है। इसके वारिस अब भी अपनी संपत्ति की देखरेख कर रहे हैं।
- महाभारत कालीन प्रमाण अर्जुन के बाण से निकली सिकरहना (वाणगंगा, बूढ़ी गंडक नदी जिले की सैकड़ों नदियों को समेटे हुए उत्तर बिहार में बहती है। पंडई नदी के तट पर पांडवों ने अज्ञातवास बिताया था, इसलिए इसका नाम पंडई पड़ा। बनवरिया में महाभारत कालीन तालाब, कुएं और भवनों के अवशेष मौजूद हैं।
- त्रेतायुगीन प्रमाण वाल्मीकिनगर में तमसा, सोनाहा और नारायणी नदी के तट पर स्थित महर्षि वाल्मीकि का आश्रम राम युगीन इतिहास की गाथा कहता है। सिद्धपीठ पटजिरवा माई स्थान भी श्रीराम व सीता के बारात पड़ाव स्थल से जुड़ा है।
- पौराणिक प्रमाण शिवालिक का सोमेश्वर शिखर महादेव, चंद्रदेव और रावण के इतिहास से जुड़ा है। यहां भगवान शिव के प्रवास के प्रमाण के रूप में असंख्य शिव शिलाएं मिलती हैं।
- बौधकालीन प्रमाण : भिखनाठोरी, रमपुरवा, लौरिया आदि स्थलों पर बौधकालीन इतिहास की पात सी बीछी हुई है।
- सत्याग्रह आंदोलन: स्वतंत्रता संग्राम के दौरान चंपारण की धरती सत्याग्रह आंदोलन की साक्षी रही। महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी के प्रवास स्थल भितिहरवा, वृंदावन और नगर का हजारीमल आज भी मौजूद हैं।
- ऐतिहासिक धरोहर : 12वीं व 13वीं सदी के इतिहास से जुड़े राजगढ़ी, अजल्हा उदल से संबंधित स्थल और सोरठी राज के अवशेष जिले की मिट्टी में अपनी कहानी बयां कर रहे हैं।