18 मई, 2025, डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड के जवानों ने नारायणपुर जिले में अबूझमाड़ के जंगलों में तीन तरफ से घुसना शुरू किया। उन्हें एक करोड़ के इनामी नक्सली लीडर बसवाराजू का ठिकाना पता चल गया था। बसवाराजू के साथ उसकी सुरक्षा करने वाली कंपनी नंबर-7 के लोगों
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दैनिक भास्कर की टीम उसी जगह पहुंची, जहां बसवाराजू के साथ 26 और नक्सलियों का एनकाउंटर हुआ। यहां हमें गुंडेकोट गांव का रमेश (बदला हुआ नाम) भी मिला। रमेश इस एनकाउंटर के वक्त मौजूद था। रमेश के मुताबिक, एक घंटे तक दोनों तरफ से गोलियां चलती रहीं। फिर नारों की आवाज आई और फायरिंग बंद हो गई। बाद में पता चला कि बसवाराजू की मौत हो गई है।
इस एनकाउंटर साइट पर हर तरफ पेड़ों पर गोलियों के निशान नजर आते हैं। मारे गए नक्सलियों का सामान बिखरा पड़ा है। बसवाराजू का सामान सिक्योरिटी फोर्स साथ ले गई। इसमें एक डायरी भी है। अफसरों का दावा है कि इसमें बसवाराजू ने साथियों के लिए लिखा- ‘प्रिय कॉमरेड, आप लोग कहीं भी छिप जाओ, DRG फोर्स आप लोगों को खोजकर मारेगी।’
‘नक्सलगढ़ में भास्कर’ सीरीज की पिछली स्टोरी में आपने पढ़ा कि अबूझमाड़ के घने जंगलों से गुजरते हुए कलेकोट पहुंचना कितना मुश्किल है। इस स्टोरी में पढ़िए बसवाराजू के मरने और सिक्योरिटी फोर्स की स्ट्रैटजी की इनसाइड स्टोरी।
बसवाराजू के साथ मौजूद नक्सली को ट्रैक कर रही थी फोर्स सिक्योरिटी फोर्स के पास इनपुट था कि बसवाराजू गुंडेकोट गांव के पास छिपा है। जवान उसके साथ मौजूद एक नक्सली को एक महीने से ट्रैक कर रहे थे। इसी से बसवाराजू की लोकेशन पता चल गई। उसकी तलाश में शुरू किए ऑपरेशन को ‘अबूझ-723’ नाम दिया गया। DRG की 3 टुकड़ियां बसवाराजू के तलाश में थीं।

अबूझमाड़ का यह इलाका बसवाराजू के छिपने के लिए बिल्कुल मुफीद था। यहां घने जंगल और थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बहते नाले हैं। इनकी वजह से किसी भी बाहरी का आना मुश्किल हो जाता है।
बसवाराजू की तलाश इसलिए भी मुश्किल थी क्योंकि बसवाराजू सिक्योरिटी फोर्स से सीधे नहीं भिड़ता था। इससे उसकी लोकेशन पता नहीं चलती थी। दूसरी बात कि फोर्स की भनक लगते ही वो जगह बदल लेता था।
आखिर 21 मई को तलाश खत्म हुई। सुबह 6:30 बजे घने जंगल से जवानों पर गोलियां बरसने लगीं। इससे उन्हें पता चल गया कि नक्सली कहां छिपे हैं। एक घंटे चली फायरिंग के बाद जंगल में सन्नाटा पसर गया। इसी के साथ 2001 से नक्सलियों की लड़ाकू विंग संभाल रहे बसवाराजू की कहानी खत्म हो गई।

कंपनी नंबर-7 के नक्सलियों ने बसवाराजू से की गद्दारी नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई के लिए नारायणपुर में पुलिस ने वॉर रूम बना रखा है। यहां से लगातार सिक्योरिटी फोर्स के ऑपरेशन की मॉनिटरिंग की जा रही है। 12 से 14 घंटे सिर्फ स्ट्रैटजी पर काम होता है।

पुलिस के वॉर रूम में नारायणपुर के एक-एक गांव की जानकारी दर्ज है। यहीं नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन की तैयारी होती है।
इस ऑपरेशन की सबसे अहम कड़ी खुफिया जानकारी थी, जो बसवाराजू की टीम के अंदर से ही DRG को मिली थी। बीते 6 महीनों में बसवाराजू की सुरक्षा करने वाली पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की सबसे खास ‘कंपनी नंबर 7’ के कुछ लड़ाकों ने सरेंडर किया था। इस कंपनी का काम CPI (माओवादी) के टॉप लीडर यानी महासचिव और सेंट्रल कमेटी सदस्यों की सुरक्षा करना है।
एक अधिकारी बताते हैं, ‘सरेंडर करने वाले नक्सलियों ने शुरुआत में झूठ बोला कि वे कंपनी-1 से हैं। हमने पहले सरेंडर कर चुके नक्सलियों से उनकी पहचान कराई, तो सच सामने आ गया। लंबी पूछताछ के बाद उन्होंने माना कि वे कंपनी-7 में थे।’
‘उन्हीं से हमें बसवाराजू की सिक्योरिटी, रहने के तौर-तरीके और उस इलाके की सटीक जानकारी मिली। इस जानकारी के हिसाब से ही हमने पूरी स्ट्रैटजी तैयार की।’

बसवाराजू के सामान से DRG को क्या-क्या मिला सिक्योरिटी फोर्स के एक अधिकारी दावा करते हैं कि एनकाउंटर साइट से बसवाराजू का निजी सामान भी मिला है। इसमें उसकी दवाइयां, मेमोरी कार्ड और एक डायरी का पेज शामिल है।’
अधिकारी बताते हैं, ‘अबूझमाड़ के जंगलों में छिपे नक्सली काफी अपडेट रहते हैं। एनकाउंटर साइट पर बंदूक के ऊपर लगने वाले टेलिस्कोप के डिब्बे मिले हैं। इससे लगता है कि बसवाराजू यहां पुराने हथियारों की रेंज बढ़ाने पर काम कर रहा था।’ अभी मेमोरी कार्ड की जांच की जा रही है।

बसवाराजू की मौत पर दो अलग-अलग दावे बसवाराजू के एनकाउंटर को माओवादी संगठन ‘गुंडेकोट हत्याकांड’ बता रहे हैं। उनका आरोप है कि सुरक्षाबलों ने बसवाराजू को जिंदा पकड़ा था। इसके बाद उसकी हत्या कर दी। वे इसे फेक एनकाउंटर बता रहे हैं।
हम एनकाउंटर साइट पर गए, तब हमारे साथ गुंडेकोट गांव के रमेश भी थे। उन्हीं ने हमें पूरा एरिया दिखाया। एनकाउंटर वाले दिन रमेश सुरक्षाबलों की तरफ थे। हम उनकी पहचान उजागर नहीं कर रहे हैं। रमेश ने बताया कि करीब एक घंटे तक गोलियां चलीं।
फायरिंग बंद होने के बाद पता चला कि बसवाराजू की मौत हो गई है। बस्तर के IG पी. सुंदरराज ने भी माओवादियों के आरोपों को इज्जत बचाने के लिए बोला गया झूठ कहकर खारिज कर दिया।

एनकाउंटर वाली जगह पर अब भी गोलियों के शेल पड़े हैं। इसके अलावा वो सामान भी पड़ा है, जिसे नक्सली इस्तेमाल करते थे।
नक्सलियों ने सुरक्षा घेरा बनाया, लेकिन बसवाराजू को बचा नहीं पाए एनकाउंटर के बाद बसवाराजू के संगठन CPI (माओवादी) की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी ने दावा किया था कि बसवाराजू के साथ कुल 35 नक्सली थे। इनमें से 7 बचकर निकल गए। 28 की मौत हो गई। हालांकि फायरिंग रुकने के बाद जवान नक्सलियों के ठिकाने पर पहुंचे, तो 27 नक्सलियों की डेडबॉडी मिलीं। इन्हीं में 70 साल का बसवाराजू भी था।
ऑपरेशन से जुड़े सूत्र बताते हैं, ‘नक्सलियों को लगा कि वे घिर गए हैं, तो उन्होंने बसवाराजू को सुरक्षा घेरे में ले लिया। बाहर की तरफ मौजूद नक्सली जवानों पर गोलियां चला रहे थे। इसी दौरान बसवाराजू को गोलियां लगीं और वो वहीं ढेर हो गया।’
‘पुलिस के पास बसवाराजू की काफी पुरानी तस्वीर थी। इसलिए पुलिसवालों ने उसकी पहचान सरेंडर कर चुके नक्सलियों से कराई। इसके बाद ही अफसरों ने उसके मारे जाने की पुष्टि की।’

बसवाराजू के एनकाउंटर के पीछे एक महीने की प्लानिंग बसवाराजू तक पहुंचने के लिए चले ऑपरेशन अबूझ की तैयारी एक महीने पहले शुरू हो गई थी। इसके बारे में हमें छत्तीसगढ़ पुलिस के एक सीनियर अधिकारी ने बताया। सुरक्षा कारणों की वजह से हम उनकी पहचान उजागर नाम नहीं कर रहे हैं।
अधिकारी बताते हैं, ‘हमारे पास पुख्ता जानकारी थी। हमें पता था कि बसवाराजू गुंडेकोट और आसपास के गांवों से बाहर नहीं जा सकता। वो लंबे समय से वहीं छिपा था। फिर भी ऑपरेशन आसान नहीं था।’
‘इससे ठीक पहले हमारे जवान कर्रेगुट्टा की पहाड़ी पर 21 दिन ऑपरेशन (ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट) चलाकर लौटे थे। वे थके हुए थे, लेकिन हमें मिले इनपुट पर तुरंत कार्रवाई करना जरूरी था। हम जानते थे कि अगर अभी एक्शन नहीं लिया, तो यह मौका हाथ से निकल जाएगा।’
बसवाराजू के पुराने साथी से भी मिली सटीक जानकारी ऑपरेशन अबूझ से जुड़े एक सीनियर अधिकारी बताते हैं, ‘इस ऑपरेशन में तकनीक का भरपूर इस्तेमाल हुआ, लेकिन ये कामयाबी सिर्फ सैटेलाइट और ड्रोन से नहीं मिली। ये मुखबिरी पर टिकी थी।
ऑपरेशन का खाका तैयार करने में बसवाराजू का एक पुराना साथी काम आया। वो अब सरेंडर कर चुका है। उसने बसवाराजू के सुरक्षा घेरे, 2016 से अबूझमाड़ में छिपे होने और लगातार ठिकाने बदलने जैसी अहम बातें बताई थीं।
बस्तर के IG पी. सुंदर राजू दैनिक भास्कर को बताते हैं, ‘ऑपरेशन के बाद माओवादी संगठन ने अपनी इस बड़ी हार के लिए सुरक्षाबलों से ज्यादा अपने लोगों को जिम्मेदार ठहराया। उसने बयान जारी कर कहा कि कुछ समझौता करने वालों और बसवाराजू की सुरक्षा में लगी कंपनी नंबर 7 के कुछ सदस्यों की गद्दारी की वजह से ही उनका सबसे बड़ा नेता मारा गया।’

CPI (माओवादी) की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी ने 25 मई को ये प्रेस रिलीज जारी की थी। इसमें कहा था कि गद्दारों की वजह से ही बसवाराजू की मौत हुई है।
सिक्योरिटी फोर्स अबूझमाड़ में नहीं घुसती थी, इसलिए बेफिक्र था बसवाराजू सिक्योरिटी फोर्स के एक अधिकारी बताते हैं, ‘2024 के पहले तक अबूझमाड़ CPI (माओवादी) के बड़े लीडर्स का सुरक्षित ठिकाना था। यहां उन्हें ज्यादा दिक्कत नहीं होती थी। उनके डॉक्यूमेंट्स से पता चलता है कि ये लोग इस भरोसे में थे कि अबूझमाड़ में पुलिस नहीं आ सकती। इसे उन्होंने शांत क्षेत्र घोषित किया था।’
‘यहां वे पुलिस से भिड़ते भी नहीं थे। उन्हें लगता था कि अगर सिक्योरिटी फोर्स से भिड़ेंगे तो जवान जंगल के अंदर आ जाएंगे। मार्च, 2024 तक अबूझमाड़ में सेंट्रल कमेटी मेंबर्स का मूवमेंट होता था। अप्रैल, 2024 में हमने 25 लाख के इनामी स्टेट जोनल कमेटी मेंबर जोगन्ना को मार गिराया। इसके बाद वे लोग समझ गए कि एक जगह डेरा नहीं डालना है।’

बीते एक साल से नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन तेज हुआ है। इसलिए वे रणनीति बदल रहे हैं। पोलित ब्यूरो ने पिछले साल अगस्त में एक सर्कुलर निकाला था कि हमें दंडकारण्य छोड़ना होगा।
‘उन्हें लगने लगा कि इस इलाके में सरकार का फोकस इतना बढ़ गया कि अब वे बच नहीं पाएंगे। इसलिए उन्होंने रणनीति में बदलाव शुरू कर दिया। सर्कुलर में बताया गया था कि बड़े नेता इस इलाके से निकलेंगे और उनसे नीचे के सदस्य आगे क्या करेंगे।’
IG बोले- लोकल कैडर अब आंध्र-तेलंगाना के लीडर्स के साथ नहीं बस्तर के IG पी. सुंदरराज बताते हैं, ‘नक्सली संगठन में अब सब ठीक नहीं है। यही वजह है कि बसवाराजू जैसे लीडर के साथ सिर्फ 34 लोगों का सुरक्षा घेरा था। पहले इस रैंक के नक्सली लीडर के साथ सैकड़ों नक्सली होते थे।’
‘बसवाराजू की मौत के बाद मिल नहीं पा रहे बड़े नक्सली नेता’ जगदलपुर के सीनियर जर्नलिस्ट और 55 साल से नक्सलियों की खबरें कवर कर रहे राजेंद्र बाजपेयी बताते हैं, ‘बसवाराजू के मारे जाने के बाद पार्टी का महासचिव कौन बनेगा, इस पर अटकलें चल रही हैं। नया महासचिव आंध्रप्रदेश या तेलंगाना से होने की चर्चा है। अभी नक्सलियों के लिए सुरक्षित ठिकाना तैयार करना बड़ा काम है। इसलिए पार्टी के बड़े नेता मिलने की लगातार कोशिश कर रहे हैं।’
एक पुलिस अधिकारी बताते हैं, ‘बसवाराजू वाले ऑपरेशन के बाद नक्सली लीडर मिलने की कोशिश कर रहे हैं। इंद्रावती नेशनल पार्क के पास उनकी मूवमेंट पता चल रही है। इसी कोशिश में 6 जून को बीजापुर में सेंट्रल कमेटी का मेंबर सुधाकर मारा गया है। उस पर एक करोड़ रुपए का इनाम था।’
पढ़ाई में तेज, माओ से प्रभावित था बसवाराजू बसवाराजू के बारे में जानने के लिए हम एक ऐसे पूर्व नक्सली से मिले, जो बसवाराजू के साथ काम कर चुका है। सुरक्षा कारणों की वजह से हम उसकी पहचान छिपा रहे हैं। उसने बताया कि बसवाराजू को दंडकारण्य में गगन्ना या केशव राव कहते थे।
1987 में मैंने पहली बार एके 47 राइफल बसवाराजू के पास ही देखी थी। 1985-86 में CPI (माओवादी) बनाने वाले कोंडापल्ली सीतारमैया दंडकारण्य में संगठन का विस्तार करने आए थे। सीतारमैया आंध्रप्रदेश से थे। उन्हें यहां की बोली समझने में दिक्कत होती थी। वे सिर्फ तेलुगु बोलते थे। तब बसवाराजू ने उनकी मदद की थी।’
‘बसवाराजू पढ़ाई-लिखाई में बहुत तेज था। खाली समय में लंबी-लंबी क्लास लेता था। इनमें सेंट्रल कमेटी के फैसलों और पार्टी के कार्यकर्ताओं के काम करने के तरीके पर बात होती थी। इसके अलावा रूस और चीन की क्रांतियों के बारे में बताते थे।’
‘बसवाराजू चीन की क्रांति पर बहुत जोर देता था। वो माओ से प्रभावित था। बसवाराजू और संगठन के दूसरे लीडर श्रीलंका के संगठन लिट्टे के हमलों को देखते थे और उनसे सीखने को कहते थे।’
पूर्व नक्सली बताते हैं, ‘दिन में बसवाराजू कैडर के साथ एक्सरसाइज और वॉक करता था। कैडर में सभी के काम बंटे होते हैं। बसवाराजू खाना नहीं बनाता था। उसका काम निर्देश देना होता था। बर्तन धोने की ड्यूटी सभी की लगती थी, चाहे वो सेंट्रल कमेटी के सदस्य ही क्यों न हों। इसलिए बसवाराजू को भी बर्तन धोना पड़ता था।’
अगली स्टोरी में 15 जून को पढ़िए बसवाराजू जहां छिपा था, वहां के गांववालों का हाल…
………………………………………. कैमरामैन: अजित रेडेकर ………………………………………..
‘नक्सलगढ़ से भास्कर’ सीरीज की पहली स्टोरी
जहां नक्सली बसवाराजू मारा, वहां न रास्ते, न नेटवर्क; ऑपरेशन ‘अबूझ’ के निशान बाकी

अबूझमाड़ का कलेकोट पहाड़ करीब 10 किलोमीटर में फैला है। 1300 मीटर से ज्यादा ऊंचा है। यहीं नक्सलियों का टॉप लीडर नंबला केशव राव उर्फ बसवाराजू मारा गया। ये घने जंगल वाला एरिया है। न रास्ता, न मोबाइल नेटवर्क। यहां पेड़ों पर गोलियों के अनगिनत निशान बने हैं। ये गोलियां बसवाराजू के एनकाउंटर के वक्त चली थीं। पढ़िए पूरी खबर…