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- Uniform Civil Code Essential For Women’s Equality: Karnataka High Court Urges Centre And States
बेंगलुरु13 मिनट पहले
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यह टिप्पणी जस्टिस हंचाटे संजीव कुमार की सिंगल जज बेंच ने एक पारिवारिक संपत्ति विवाद के मामले में की।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने शनिवार को कहा कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू होना बहुत जरूरी है। इससे सभी नागरिकों को (खासकर महिलाओं को) बराबरी का हक मिलेगा। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से अपील की है कि वे मिलकर ऐसा कानून बनाएं।
यह टिप्पणी जस्टिस हंचाटे संजीव कुमार की सिंगल जज बेंच ने एक पारिवारिक संपत्ति विवाद के मामले में की। यह मामला मुस्लिम महिला शहनाज बेगम की मौत के बाद उनकी संपत्ति के बंटवारे को लेकर था, जिसमें उनके भाई-बहन और पति के बीच विवाद हुआ।
कोर्ट ने इस मामले के बहाने मुस्लिम पर्सनल लॉ पर सवाल उठाए और कहा कि ये कानून महिलाओं के साथ भेदभाव करता हैं।

मुस्लिम और हिंदू पर्सनल लॉ में अंतर पर जताई चिंता
कोर्ट ने कहा कि हिंदू कानून में बेटियों को पैतृक संपत्ति में बराबरी का अधिकार है, जबकि मुस्लिम कानून में भाई को मुख्य हिस्सेदार और बहन को कम हिस्सेदार माना जाता है, जिससे बहनों को कम हिस्सा मिलता है। कोर्ट ने कहा कि ये असमानता संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के खिलाफ है।
गोवा और उत्तराखंड का उदाहरण
कोर्ट ने बताया कि गोवा और उत्तराखंड जैसे राज्य पहले ही UCC की ओर कदम बढ़ा चुके हैं। इस वजह से अब केंद्र और बाकी राज्यों को भी इस दिशा में काम करना चाहिए। कोर्ट ने अपने फैसले की कॉपी केंद्र और कर्नाटक सरकार के कानून सचिवों को भेजने के निर्देश दिए हैं।

उत्तराखंड में 27 जनवरी को यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू किया गया था। मुख्यमंत्री आवास में सीएम पुष्कर सिंह धामी ने इसका ऐलान किया।
संविधान निर्माता भी थे UCC के पक्ष में
जस्टिस कुमार ने अपने फैसले में डॉ. बीआर अंबेडकर, सरदार पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे नेताओं के भाषणों का हवाला देते हुए बताया कि वे सभी एक समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे। उनका मानना था कि देश में एक जैसे नागरिक कानून होने चाहिए, जिससे राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समानता को बढ़ावा मिले।
कोर्ट का फैसला क्या रहा?
शहनाज बेगम की मौत के बाद उनकी दो संपत्तियों पर उनके भाई, बहन और पति के बीच विवाद था। भाई-बहनों का दावा था कि ये संपत्तियां शहनाज ने खुद की कमाई से खरीदी है, इस वजह से सभी को बराबर हिस्सा मिलना चाहिए। लेकिन पति का कहना था कि संपत्तियां दोनों ने मिलकर खरीदी थीं, इसलिए उन्हें बड़ा हिस्सा मिलना चाहिए।
कोर्ट ने तथ्यों की जांच के बाद माना कि संपत्तियां पति-पत्नी की साझा कमाई से खरीदी गई थीं, भले ही वो सिर्फ पत्नी के नाम पर थीं। इस आधार पर हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए, दो भाइयों को दोनों संपत्तियों में 1/10वां हिस्सा दिया। बहन को 1/20वां हिस्सा दिया गया और पति को 3/4 हिस्सा मिला।
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