Monday, June 2, 2025
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कल्याणकारी योजनाओं की सफलता की मोरारी बापू ने की प्रार्थना: राजगीर में रामकथा का 8वां दिन, मुख्य सचिव की हुई सराहना – Nalanda News


मुख्य सचिव अमृत लाल मीणा पहुंचे राजगीर।

राजगीर के इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में मानस नालंदा विश्वविद्यालय के तहत रामकथा के 8वें दिन एक विशिष्ट आध्यात्मिक माहौल देखने को मिला। मोरारी बापू के सत्संग में न केवल धार्मिक चिंतन की गहराई दिखी, बल्कि समसामयिक विषयों पर भी महत्वपूर्ण टिप्पणी सुनने क

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कार्यक्रम की शुरुआत बिहार राज्य के मुख्य सचिव अमृतलाल मीना के आगमन से हुई। बापू ने उनके रामचरित मानस के प्रति प्रेम की सराहना करते हुए कहा कि यही प्रीति उन्हें यहां खींच लाई है। उन्होंने बिहार राज्य की कल्याणकारी योजनाओं की सफलता के लिए हनुमान जी के चरणों में प्रार्थना की।

कार्यक्रम के दौरान बापू ने विक्रम शीला विद्यापीठ के नव निर्माण की चर्चा करते हुए कहा कि वहां भी कथा गान का आयोजन होगा। उन्होंने विभिन्न विश्वविद्यालयों में आनंद विश्वविद्यालय स्थापित करने की अपनी योजना का भी उल्लेख किया।

आध्यात्मिक चिंतन और सामाजिक संदेश का संगम।

बापू ने मानस में वर्णित 4 प्रकार के मंथन की व्याख्या प्रस्तुत की

प्रथम मंथन- रूप सागर का मंथन, जिससे सौंदर्यामृत की प्राप्ति होती है।

द्वितीय मंथन- देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन, जिससे सुधामृत प्रकट होता है।

तृतीय मंथन- साधु का आत्मिक मंथन, जो केवल इष्ट वियोग में होता है और प्रेमामृत देता है।

चतुर्थ मंथन- ब्रह्म सागर का ज्ञान रूपी मंदराचल से मंथन, जिससे कथारूपी अमृत निकलता है

सीता और लक्ष्मी की तुलना में नया दृष्टिकोण

बापू ने एक रोचक तुलना प्रस्तुत करते हुए बताया कि लक्ष्मी जी का प्राकट्य सागर मंथन से हुआ, जिसके उपकरण शुद्ध नहीं थे – क्षारयुक्त सागर, कठोर मंदराचल, सर्प की रस्सी और स्वार्थी मंथनकर्ता। इसके विपरीत, सीता जी को प्रकट करने के लिए सभी उपकरण शुद्ध होने चाहिए।

सचिव, वैद्य और गुरु की महत्ता

रामचरित मानस के संदर्भ में बापू ने तीन महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों की चर्चा की। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि सचिव राजा को सच न बताए तो राज्य का नाश होता है, वैद्य रोगी को सच न कहे तो मृत्यु होती है और धर्मगुरु सच न बोले तो धर्म का नुकसान होता है।

इस संदर्भ में उन्होंने भावनगर राज्य के दीवान सर प्रभाशंकर पट्टणी का उदाहरण दिया, जिन्होंने कहा था, “जब पूरा हाथी दे दिया है तो हाथी की सवारी को क्यों रखना।”

हनुमान जी की औषधि यात्रा का रहस्य

लंका युद्ध में लक्ष्मण जी की मूर्छा के प्रसंग में बापू ने एक गुरुमुख रहस्य का खुलासा किया। उन्होंने बताया कि जिन चार औषधियों – विषल्यकर्णी, संधिनी, सौवर्णकर्णी और संजीवनी – के लिए हनुमान जी को उत्तर दिशा भेजा गया, वे औषधियां लंका में भी थीं। परंतु भीषण युद्ध के कारण वहां की सारी औषधियां समाप्त हो चुकी थीं।

आध्यात्मिक चिकित्सा का दर्शन

बापू ने इन औषधियों की आध्यात्मिक व्याख्या भी प्रस्तुत की। उनके अनुसार गुरु भी एक वैद्य है जो आश्रित को ये चारों औषधियां देता है। मन की विकृतियों को शांत करना, टूटे सामाजिक संबंधों को जोड़ना, आसक्ति को विरक्ति में बदलना और राम मंत्र रूपी संजीवनी से काल की मूर्छा दूर करना।

राजगीर वैश्विक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित हो रहा- मुख्य सचिव

राजगीर में आयोजित रामकथा के मंच से मुख्य सचिव अमृतलाल मीणा ने राजगीर की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि राजगीर का प्राचीन नाम राजगृह था। इसका अर्थ है ‘राजाओं का घर’। यह प्राचीन मगध की राजधानी रही है। भगवान बुद्ध तथा महावीर दोनों का इस पावन भूमि से गहरा संबंध रहा है। उन्होंने कहा कि राजगीर न केवल बौद्ध धर्म, बल्कि जैन और हिन्दू सभी धर्मों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है।

मुख्य सचिव ने कहा कि राजगीर की वैभवशाली विरासत में वेणुवन, विश्व शांति स्तूप, सप्तधारा कुंड, घोड़ा कटोरा झील, बिम्बिसार कारागार, जरासंध का अखाड़ा जैसे स्थल शामिल हैं। यह इसकी ऐतिहासिक और प्राकृतिक गरिमा को दर्शाते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि वर्तमान समय में राज्य सरकार राजगीर के विकास को प्राथमिकता दे रही है।

राजगीर एक प्रमुख पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित हो रहा है। रोपवे, नेचर सफारी, ग्लास ब्रिज और एडवेंचर पार्क जैसे आधुनिक निर्माणों ने इसकी सुंदरता और पर्यटक आकर्षण को और बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में राजगीर न केवल एक धार्मिक स्थल, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में उभरेगा।

इस अवसर पर उन्होंने राजगीर की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने और उसे वैश्विक पहचान दिलाने के लिए सभी से सहयोग की अपील की।

प्रसंगों को भावपूर्ण संवाद के साथ प्रस्तुत किया।

आज की कथा राम-सीता के पुष्पवाटिका में मर्यादापूर्ण मिलन से प्रारंभ होकर चारों भाइयों के विवाह के बाद अयोध्या गमन और ऋषि विश्वामित्र की विदाई के प्रसंग तक चली। बापू ने इन प्रसंगों को भावपूर्ण संवाद के साथ प्रस्तुत किया।



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