प्लॉट खरीदने वाला पहले ही जान सकेगा जिम, गार्डन, क्लब कहां होगा
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छत्तीसगढ़ बनने के बाद 25 साल में पहली बार अवैध प्लॉटिंग को रोकने के लिए नए और सख्त नियम बनाए गए हैं। पहली बार ऐसा होगा जब कलेक्टर गाइडलाइन के मुताबिक शुल्क अदा कर कृषि भूमि पर भी प्लॉटिंग हो सकेगी। सरकार का दावा है कि इससे अवैध प्लाटिंग की शिकायतें पूरी तरह से खत्म हो जाएंगी।
अब किसी भी बिल्डर या कॉलोनाइजर को प्लाटिंग की अनुमति तभी दी जाएगी, जब वो पहले से ही यह तय करेगा कि प्लाटिंग के किस हिस्से में कौन सा निर्माण होगा। इसके लिए बाउंड्रीवॉल बनाकर वहां बोर्ड भी लगाना होगा। इतना ही नहीं, अब हर प्लाटिंग एरिया में सड़कें भी एक समान होंगी। यानी सड़क की लंबाई-चौड़ाई भी पहले से तय की जाएगी। इस नियम के बाद कोई भी बिल्डर या कॉलोनाइजर प्लाटिंग खत्म होने के बाद रोड-रास्ते की जमीन नहीं बेच पाएगा।
राज्य सरकार को मिलने वाली ज्यादातर शिकायतों में लोगों का दावा रहता है कि बिल्डर या कॉलोनाइजर ने उन्हें रोड-रास्ते की जमीन बेच दी है। या फिर प्लॉटिंग करने वाले जहां क्लब, गार्डन या सामुदायिक भवन बनाने का वादा किया था उस जमीन को भी दूसरे लोगों को बेच दिया।
इस वजह से जमीन फर्जीवाड़े की शिकायतें भी बढ़ने लगी थी। यही वजह है कि आवास एवं पर्यावरण विभाग के अफसरों ने लगातार छह महीने तक इन नियमों को लेकर काम किया। इसके बाद ही नए नियम और आवेदन का प्रारूप तैयार किया गया। जल्द कैबिनेट में रखेंगे।
कॉलोनाइजर ने जिस काम के लिए जगह छोड़ी है, उसे वही करना होगा
अब तक यह होता था
प्लाटिंग करने वाले प्लॉट की कटिंग कर बेच रहे हैं। प्लाटिंग एरिया में गार्डन, क्लब, स्वीमिंग पूल समेत कई निर्माण बताते हैं, पर बाद में उसी जमीन पर दूसरे काम करवा लेते हैं। या इस खाली जमीन को भी लोगों को बेच देते हैं। सड़क की चौड़ाई कम कर रोड-रास्ते की जगह भी लोगों को बेच देते हैं। इससे अक्सर विवाद की स्थिति बनती है। निगम वाले कार्रवाई भी कर देते, जिससे प्लॉट लेने वाला सबसे ज्यादा परेशान होता है। अधिकतर बार एक एकड़ से भी कम जमीन पर प्लॉटिंग कर दी जाती है, जिससे उपभोक्ताओं को परेशानी होती थी।
अब ये होगा
करीब ढाई दशक के बाद आवास एवं पर्यावरण विभाग ने नियमों में संशोधन किया है। अब कोई भी व्यक्ति, बिल्डर या कॉलोनाइजर प्लाटिंग करेगा तो उसे सभी निर्माण के लिए बाउंड्रीवॉल के साथ जमीन छोड़नी होगी। प्लाटिंग कितने एरिया में होगी यह भी तय रहेगा। सड़क की लंबाई-चौड़ाई भी पहले से तय रहेगी। इससे लोगों को पता चलेगा कि वे जहां प्लॉट खरीद रहे हैं वहां किस तरह के निर्माण किस दिशा में होंगे। इसके अलावा प्लॉटिंग एरिया में कृषि जमीन शामिल होगी तो उसे भी कलेक्टर गाइडलाइन के अनुसार शुल्क लेकर आवासीय कर दिया जाएगा।
इन नियमों से भी लोगों को होगा फायदा
- प्लॉटिंग का एरिया 2 से 10 एकड़ तक का रहेगा। भूखंडीय विकास के लिए न्यूनतम क्षेत्रफल 3.25 एकड़ रहेगा।
- जहां प्लाटिंग हो रही वहां पहुंच मार्ग की चौड़ाई न्यूनतम 9 मीटर और आंतरिक मार्ग की लंबाई न्यूनतम 8 मीटर होगी।
- सामुदायिक कामों के लिए जगह पर न्यूनतम 5% छोड़ना होगा। सामुदायिक खुली जगह 250 वर्गमी से कम नहीं होगी।
- कम्यूनिटी हॉल, क्लब आदि के लिए प्लॉटिंग एरिया का 2 फीसदी और व्यावसायिक क्षेत्र में 3% छोड़ना होगा।
- प्लाटिंग एरिया में कृषि जमीन शामिल है तो कलेक्टर गाइडलाइन से उसका शुल्क अदा कर आवासीय कराना होगा।
- प्लाटिंग एरिया में प्लॉट की साइज अधिकतम 150 वर्गमीटर तक ही होगी। नियमों के तहत एफएआर भी दिया जाएगा।
इस बदलाव से कॉलोनाइजर को लाभ नया प्रारूप लागू होने पर कॉलोनाइजर को सीधा फायदा होगा। वैसे इसमें प्रावधान रहेगा कि टाउन एंड प्लानिंग विभाग से नक्शा पास कराने के लिए कोई बिल्डर या कॉलोनाइजर गलत जानकारी देता है तो उस पर एफआईआर भी कराई जा सकती है। बिल्डर को नक्शे में बताना होगा कि उसने किस काम के लिए कौन सी जमीन कहां छोड़ी है। इसके फोटो भी जमा करने होंगे।
आवेदन आने के बाद विभाग के अफसर इसका भौतिक सत्यापन भी करेंगे। किसी भी तरह की गड़बड़ी मिली तो कॉलोनाइजर का नक्शा पास नहीं किया जाएगा। नक्शा पास कराने के बाद तय निर्माण में गड़बड़ी की जाती है और इसकी शिकायत रेरा में की जाती है। रेरा ऐसे बिल्डरों के प्रोजेक्ट की खरीदी-बिक्री में बैन लगा सकते हैं। रजिस्ट्रार को सूचना देकर रजिस्ट्री भी बंद कराई जा सकती है।
प्रारूप को अन्य विभागों के पास अभिमत के लिए भेजा गया है। सहमति मिलते ही कैबिनेट में भेजा जाएगा। -देवेंद्र भारद्वाज, विशेष सचिव, आवास एवं पर्यावरण
अवैध प्लॉटिंग और धोखाधड़ी पर कसेंगे लगाम
लोगों को किफायती आवास उपलब्ध कराने और अवैध प्लॉटिंग को पूरी तरह से खत्म करने के लिए ही नए आवास नियम बनाए गए हैं। इससे लोगों को सीधे तौर पर बड़े फायदे होंगे। प्लॉट खरीदना आसान होगा। धोखाधड़ी खत्म होगी। -ओपी चौधरी, मंत्री छत्तीसगढ़ आवास एवं पर्यावरण विभाग