Dashrath ka pind daan kisne kiya: राजा दशरथ के चार पुत्र थे राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। लेकिन इन चारों ने ही श्री राम का पिंडदान नहीं किया। जी हां, ये अपने पिता का पिंडदान नहीं कर पाए। ऐसे में यह जानना तो बनता है कि राजा दशरथ का पिंडदान किसने किया था और उस वक्त चारों भाई कहां थे।
आज का हमारा लेख इसी विषय पर है। आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि दशरथ का पिंडदान किसके द्वारा किया गया था। पढ़ते हैं आगे…
दशरथ जी का पिंडदान किसने किया था?
आपने बिहार में स्थित गया के बारे में तो सुना होगा। इसे विश्व में मुक्तिधाम के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि यदि कोई गया में जाकर पिंडदान करता है तो इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। इसका जिक्र गरुण पुराण में भी होता है। कहते हैं कि इसी मंदिर में माता सीता ने भी अपने ससुर यानि भगवान राम के पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था। जब श्री राम अपने भाई लक्ष्मण अपनी पत्नी सीता सहित वनवास भोग रहे थे तो उस दौरान वह पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया गए। ऐसे में श्री राम लक्ष्मण श्राद्ध की चीजों को जुटाने के लिए नगर को चल दिए। उस दौरान माता सीता ने अपने ससुर का पिंडदान किया।
कहते हैं दशरथ की मौत के बाद भरत और शत्रुघ्न ने अंतिम संस्कार कर सारी विधि की। लेकिन दशरथ अपने बेटे श्री राम से बेहद प्रेम करते थे ऐसे में उनकी चिता की बची हुई राख उड़ते उड़ते गया में नदी के पास पहुंच गई। उस वक्त ना श्री राम मौजूद थे ना लक्ष्मण, बस माता सीता ही नदी के किनारे बैठी थीं। तब माता सीता को राजा दशरथ की छवि दिखाइ दी। वे समझ गईं कि उनकी छवि कुछ कहना चाहती है। ऐसे में राजा ने सीता को बताया कि उनके पास बेहद कम समय है। तब सीता ने दशरथ की राख को हाथों में उठा लिया और वहां मौजूद ब्राह्मण, फाल्गुनी नदी, गाय, तुलसी और अक्षय वट को पिंडदान का साक्षी बनाया और फिर जब श्री राम आए तो माता सीता ने श्री राम को सब कुछ बता दिया। पर जब राम जी को यकीन नहीं हुआ तो उन्होंने उन पांचों से पूछा लेकिन केवल अक्षय वट ने सच बोला बाकी चारों ने इनकार कर दिया। ऐसे में माता सीता को क्रोध आया उन्होंने चारों को श्राप दिया और अक्षय वट को सदा पूजनीय रहने का वरदान दिया।