छत्तीसगढ़ में किसान अब नेक्स्ट लेवल पर काम कर रहे हैं। लागत से ज्यादा कीमत मिलने से किसानों की संख्या बढ़ी है। पिछले साल लगभग 25 लाख किसानों ने धान की बुआई की थी। जबकि 2017-18 में किसानों की संख्या महज 15 लाख थी। यानी 6 साल में 10 लाख किसान बढ़े।
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प्रदेश में अब किसान सब्जी की खेती भी कर रहे हैं। प्रमुख रूप से चीन में उगाए जाने वाले ड्रैगन फ्रूट से लेकर ठंडे क्षेत्रों में उगने वाली स्ट्रॉबेरी, आडू प्रदेश में ही उगने लगी है। किसान अब अपनी फसलों में खाद-पानी ऑटोमेटिक मशीन से डाल रहे हैं। इससे उन्हें 20% तक ज्यादा उत्पादन मिल रहा। उधर, जांजगीर के किसान ने धान की विलुप्त हो रही रामजीरा धान को संजीवनी देने का प्रयास कर रहा है।
66 एकड़ में सब्जी, 20% उत्पादन ज्यादा गांव भुरसेंगा के किसान हर्ष चंद्राकर ने बताया कि वे 66 एकड़ में टमाटर, मिर्ची, लौकी, कद्दू के साथ गुलाब उगा रहे हैं। कम्प्यूटराइज्ड ऑटोमेटिक मशीन को ऑपरेट कर रहे हैं। उपज कलकत्ता, यूपी, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र में बेचते हैं। बेमेतरा के मुरमुंदा के तुषार टांक भी यही तकनीक अपना चुके हैं।
500 एकड़ में खेती के लिए एक ही नर्सरी नंदनवन के चावड़ा फार्म के फसलों की उन्नत किस्म की पौध विकसित हो रही है। इसके लिए प्रवीण चावड़ा ने 13 पॉली हाउस बनवाए हैं, जहां टमाटर, बैगन व गोभी की नर्सरी लगा रखी है। वे इससे 500 एकड़ तक में फसलें ले सकते हैं। वे रायपुर,आसपास के जिलों के किसानों को पौध उपलब्ध कराते हैं।
स्ट्रॉबेरी, आडू और आलूबुखारा की खेती धान के कटोरे में अब नाशपाती, आडू, आलूबुखारा और स्ट्रॉबेरी की खेती हो रही है। कीवी व एवेकैडो जैसे विदेशी फलों की टेस्टिंग चल रही है। केले व पपीते में प्रदेश आत्मनिर्भर हो गया है। कृषि विश्वविद्यालय के डायरेक्टर रिसर्च डॉ. विवेक त्रिपाठी ने बताया कि बस्तर में रबड़ का प्लांटेशन 1 हेक्टेयर में किया गया है।
भास्कर ग्राउंड रिपोर्ट
22 एकड़ में ड्रैगन फ्रूट उग रहा, बंगलुरू व महाराष्ट्र में सप्लाई
बेमेतरा रोड के करेली गांव में अभिषेक चावड़ा 22 एकड़ में ड्रैगन फ्रूट उगा रहे हैं। इसके लिए बेंगलुरु से लेकर महाराष्ट्र तक बाजार उपलब्ध हैं। इसे थोड़ी देखभाल की जरूरत होती है। चावड़ा के मुताबिक प्रति एकड़ उत्पादन से डेढ़ लाख तक मुनाफा कमाया जा सकता है।
बेमेतरा रोड के करेली गांव में ड्रैगन फ्रूट।
विलुप्त हो रहे रामजीरा धान को सहेज कर कराया पेटेंट
जांजगीर-चाम्पा जिले के महंत निवासी किसान दुष्यंत सिंह ने विलुप्ति की कगार पर खड़े सुगंधित धान ‘रामजीरा’ को न केवल सहेजा, बल्कि उसे साल 2015 में पेटेंट कराकर नई पहचान दी। इसी की बदौलत ये धान बाजार में 150 रुपए किलो बिक रहा है।
अब इसके व्यावसायिक उत्पादन के लिए सिंह गांव में 6 किसानों के साथ मिलकर लगभग 15 एकड़ में खेती कर रहे हैं। इसकी पैदावार आने पर वे इसे मार्केट में लॉन्च करेंगे। दुष्यंत ने बताया कि उनका परिवार 30-40 साल से इसकी खेती करता आ रहा है। उन्होंने वैज्ञानिक तरीके से खेती कर इसे ज्यादा उत्पादक बनाया।
रामजीरा की अच्छे प्रबंधन से खेती करने पर यह 18 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन देती है। जबकि दूसरी सुगंधित किस्में 13 से 14 क्विंटल ही आती हैं। इसकी आईटीसी लैब में जांच कराई गई। रिपोर्ट के अनुसार इसमें 30.2 पीपीएम जिंक और 16.4 एमजी आयरन है, जबकि ब्लैक राइस के अलावा अन्य चावल में ये काफी कम मात्रा में होता है। वर्तमान में इस चावल में शुगर की टेस्टिंग कराई जा रही है।