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Mahabharat Katha: दुर्योधन पुरुष वर्चस्व और अहंकार का प्रतीक था. वहीं वो पांडवों से द्वेष भी करता था. उसने युधिष्ठिर को चौसर के खेल के लिए आमंत्रित किया. ये एक ऐसा खेल था जिसमें छल और कपट था.
महाभारत कथा
हाइलाइट्स
- युधिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगाया था.
- दुर्योधन ने युधिष्ठिर को चौसर खेलने के लिए उकसाया.
- द्रौपदी का अपमान महाभारत युद्ध की नींव बना.
Mahabharat Katha: महाभारत की कथा में द्रौपदी का दांव पर लगना एक ऐसा घृणित कृत्य है जिसकी गूंज आज भी सुनाई देती है. यह घटना न केवल एक स्त्री का अपमान था, बल्कि न्याय और धर्म का भी हनन था. इस घटना के लिए कौरवों के साथ-साथ पांडवों को भी जिम्मेदार ठहराया जाता है, खासकर युधिष्ठिर को जिन्होंने द्रौपदी को दांव पर लगाया था. दुर्योधन जो पुरुष वर्चस्व और अहंकार का प्रतीक था, पांडवों से द्वेष रखता था. उसने युधिष्ठिर को चौसर के खेल के लिए आमंत्रित किया एक ऐसा खेल जो छल और कपट से भरा था. शकुनि जो अपने पासे के जादू के लिए कुख्यात था दुर्योधन का साथ दे रहा था. युधिष्ठिर खेल की अनैतिकता जानते हुए भी इसे युद्ध से बेहतर मानते हुए खेलने के लिए राजी हो गए.
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द्रौपदी को दांव पर लगाना
खेल शुरू हुआ और युधिष्ठिर एक के बाद एक अपनी सारी सम्पत्ति हारते चले गए. अंत में उन्होंने खुद को भी दांव पर लगा दिया और हार गए जिससे वे कौरवों के दास बन गए. दुर्योधन की कुटिलता यहीं नहीं रुकी. उसने युधिष्ठिर को द्रौपदी को दांव पर लगाने के लिए उकसाया. एक ऐसी स्थिति में जब युधिष्ठिर स्वयं दास बन चुके थे उनके द्वारा द्रौपदी को दांव पर लगाना न केवल अनैतिक था बल्कि नियमों का भी उल्लंघन था.
कहा जाता है कि दुर्योधन द्रौपदी के प्रति गुप्त रूप से आकर्षित था लेकिन उसके स्वाभिमानी स्वभाव के कारण वह उसे प्राप्त नहीं कर सका था. इसलिए उसने इस अपमानजनक कृत्य के माध्यम से अपना बदला लेने का निर्णय लिया. युधिष्ठिर को एक झूठी आशा दी गई कि अगर वो द्रौपदी को दांव पर लगाते हैं और जीत जाते हैं तो उन्हें उनका राज्य और सिंहासन वापस मिल जाएगा और कौरव उनके दास बन जाएंगे. इस लालच में आकर युधिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगा दिया.
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इसके बाद जो हुआ वह इतिहास का एक काला अध्याय बन गया. द्रौपदी को भरी सभा में अपमानित किया गया, उनके वस्त्र हरण का प्रयास किया गया. इस घटना ने पांडवों को क्रोधित कर दिया और महाभारत के युद्ध की नींव रखी.
द्रौपदी का दांव पर लगना न केवल एक स्त्री का अपमान था, बल्कि यह उस समय के सामाजिक मूल्यों और न्याय व्यवस्था पर भी एक गहरा आघात था. यह घटना आज भी हमें अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने और धर्म का पालन करने की प्रेरणा देती है. यह हमें यह भी याद दिलाता है कि लालच और अहंकार मनुष्य को किस हद तक अंधा बना सकता है.
March 15, 2025, 18:11 IST
किस शर्त पर द्रौपदी को दांव पर लगा बैठे थे युधिष्ठिर?