कई बार आपने देखा होगा कि मंदिर या घर में भजन करते समय कृष्ण-कृष्ण या कृष्णा-कृष्णा कहने लगते हैं और पूरी तरह भक्ति में डूब जाते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि ये दोनों नाम दो अलग अलग व्यक्तियों के हैं और दोनों नाम का अर्थ भी अलग है. कृष्ण और कृष्णा — ये दोनों शब्द देखने में मिलते-जुलते हैं लेकिन संस्कृत व्याकरण, धार्मिक संदर्भ और भाषायी प्रयोग के अनुसार इन दोनों में फर्क है. जब मंदिरों में, कीर्तन मंडलियों में या अपने घर के पूजा स्थान में भगवान श्रीकृष्ण का नाम लिया जाता है, तो हममें से बहुत से लोग उन्हें कृष्णा कहकर पुकारते हैं. यह नाम भले ही भावनाओं से भरा हो लेकिन भाषा, परंपरा और धार्मिक दृष्टिकोण से क्या यह बिल्कुल सही है?
श्रीकृष्ण नाम के जप का महत्व
कृष्ण सही और मूल नाम
कृष्णा कहां प्रयोग होता है?
कृष्णा आमतौर पर स्त्रीलिंग में प्रयोग होता है. दक्षिण भारत की प्रमुख नदी कृष्णा नदी, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से होकर बहती है. महिलाओं के नाम कृष्णा होते हैं, जैसे कृष्णा देवी, कृष्णा कुमारी आदि. कई स्थानों पर दक्षिण भारत में महिलाओं के नाम के रूप में कृष्णा प्रचलित है. लेकिन आपको बता दें महाभारत में द्रौपदी को कृष्णा भी कहते हैं और यहीं से कृष्णा नाम की शुरुआत भी हुई.
तो फिर लोग भगवान को कृष्णा क्यों कहते हैं?
कई भाषाओं (जैसे तेलुगु, कन्नड़, मलयालम) में भगवान के नाम के साथ ‘अ’ या ‘आ’ जोड़ने की परंपरा रही है. जैसे राम को रामा, कृष्ण को कृष्णा. इसलिए कृष्णा का प्रयोग भावात्मक या क्षेत्रीय उच्चारण के तौर पर होता है, लेकिन शुद्ध संस्कृत और धार्मिक ग्रंथों में कृष्ण ही सही है. इसलिए भजन करते समय हमेशा ध्यान रखें कि कृष्ण ही बोलें ताकि आपकी भक्ति और प्रार्थना सीधे श्रीकृष्ण तक पहुंचे.