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नई दिल्ली7 घंटे पहले
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22वें लॉ पैनल का कार्यकाल 31 अगस्त को समाप्त हो गया था।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 23वें लॉ कामीशन ऑफ इंडिया के गठन को मंजूरी दे दी है। इसका कार्यकाल 1 सितंबर 2024 से 31 अगस्त 2027 तक रहेगा।
सोमवार देर रात जारी कानून मंत्रालय के आदेश के मुताबिक, पैनल में एक पूर्णकालिक अध्यक्ष और सदस्य-सचिव सहित चार पूर्णकालिक सदस्य होंगे।
इसमें सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज इसके अध्यक्ष और सदस्य होंगे। 22वें लॉ पैनल का कार्यकाल 31 अगस्त को समाप्त हो गया था।
सरकार ने 22वें कमीशन का गठन 21 फरवरी 2020 को तीन साल के लिए किया था। जस्टिस अवस्थी ने 9 नवंबर 2022 को अध्यक्ष पद का कार्यभार संभाला। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने फरवरी 2023 में 22वें इसका कार्यकाल बढ़ा दिया था।
स्वतंत्रता के बाद भारत में 1955 में पहला लॉ कमीशन स्थापित किया गया था, तब से 22 आयोग का कार्यकाल पूरा हो चुका है। इनका काम जटिल कानूनी मसलों पर सरकार को सलाह देना होता है।
केंद्र सरकार ने सोमवार की देर रात 23वें लॉ कामीशन ऑफ इंडिया के गठन की जानकारी दी।
22वें कमीशन ने अभी तक UCC को लेकर रिपोर्ट अधूरी
22वें कमीशन ने सरकार को कई मामलों में सुझाव दिए हैं। इसमें वन नेशन-वन इलेक्शन, पॉक्सो एक्ट और ऑनलाइन FIR और यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) जैसे मुद्दे शामिल हैं।
UCC को लेकर आयोग की रिपोर्ट अभी तक अधूरी है। वहीं वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर रिपोर्ट तैयार है लेकिन कानून मंत्रालय को जमा करने का इंतजार है।
रिटायर्ड जस्टिस ऋतुराज अवस्थी 22वें लॉ कमीशन के अध्यक्ष थे, जिन्हें भ्रष्टाचार विरोधी निगरानी संस्था लोकपाल का सदस्य भी नियुक्त किया गया था।
लॉ-कमीशन ने UCC पर लोगों से सुझाव मांगे थे
लॉ कमीशन ने 14 जून 2023 को UCC पर आम लोगों, संगठनों से सुझाव मांगे थे। आयोग का मानना है कि यह मुद्दा देश के हर नागरिक से जुड़ा है, ऐसे में कोई फैसला लेने से पहले उनकी राय जानना जरूरी है। आयोग को 46 लाख से ज्यादा सुझाव मिल थे।
तब लॉ कमीशन के चेयरमैन जस्टिस ऋतुराज अवस्थी का भी बयान सामने आया था। उन्होंने कहा था- UCC कोई नया मुद्दा नहीं है। हमने कंसल्टेशन प्रोसेस भी शुरू कर दी है। इसके लिए कमीशन ने आम जनता की राय मांगी है।
PM मोदी ने लाल किले से UCC को समय की मांग बताया था
पिछले महीने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से दिए भाषण में PM मोदी ने UCC पर बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि देश के लिए धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता समय की मांग है। प्रधानमंत्री ने मौजूदा कानूनों को सांप्रदायिक नागरिक संहिता करार देते हुए उन्हें भेदभावपूर्ण बताया था।
PM ने कहा था कि ऐसे कानून जो देश को सांप्रदायिक आधार पर बांटते हैं और असमानता का कारण बनते हैं, उनके लिए आधुनिक समाज में कोई जगह नहीं है। राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि पूरे भारत में नागरिकों के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है।
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