पत्तनमथिट्टा2 मिनट पहले
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कुट्टीकेयर मुहीम के तहत वृद्ध महिला से मुलाकात करती स्टूडेंट।
केरल के पत्तनमतिट्टा जिले की नेदुंबपुरम ग्राम पंचायत ने बच्चों को नशे और मोबाइल से दूर रखने के लिए अनोखी मुहिम कुट्टीकेयर शुरू की है। इसके तहत गांव के आठवीं से 12वीं क्लास के छात्र गांव के बीमार और बुजुर्गों से मिलते हैं। उनके बारे में जानते हैं और उन्हें हिम्मत बंधाते हैं कि वे जल्द ठीक हो जाएंगे।
गांव वालों का मानना है कि इससे बच्चे ज्यादा संवेदनशील होंगे और वे बुजुर्ग-बीमारों की देखभाल के प्रति जागरूक होंगे। इसी साल 4 अप्रैल से शुरू हुई इस मुहिम में शामिल बच्चे नियमित रूप से बीमार और बुजुर्गों से मिल रहे हैं। इससे वे स्वास्थ्य के प्रति भी ज्यादा जागरूक हो गए हैं।
बच्चे गांव के अलग-अलग वार्डों में उन घरों तक गए जहां बुजुर्ग या बीमार लोग थे। इन बच्चों ने गांव के 113 ऐसे मरीजों के साथ वक्त बिताया, जो बीमारी की वजह से अपने घरों में बिस्तर पर पड़े थे। अब यह सिलसिला नियमित हो गया है। 16 बच्चों को फर्स्ट एड की ट्रेनिंग भी दी जा रही है।
नेदुंबपुरम ग्राम पंचायत के उपाध्यक्ष शैलेष बताते हैं कि NCC, रेड क्रॉस जैसे कार्यक्रमों का हिस्सा बनने वाले छात्रों को जिस तरह ग्रेस मार्क मिलता है, ठीक उसी तरह इस मुहिम से जुड़े छात्रों को भी ग्रेस मार्क्स मिलेंगे।
बच्चों के लिए गांव में और भी कई तरीके के प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं
बालसभा | गांव के हर वार्ड में हर महीने 28 तारीख से पहले बच्चों की बैठक होती है। यहां बच्चे गाने, डांस, मिमिक्री जैसे कार्यक्रम करते हैं। साल में एक बार गांव के स्तर पर बच्चों के लिए प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। |
विजनना वड़ी | बच्चों की लाइब्रेरी है। यहां किताबें लाकर बच्चे पढ़ सकते हैं। वे किताबें ले भी जा सकते हैं। कोई सदस्यता शुल्क नहीं है। |
मोटीवेशन क्लास | गांव में मोटिवेशनल क्लास होती है। इसमें बच्चों को देश के कानून, रोड सेफ्टी, जीवन के लक्ष्यों के बारे में बताते हैं। |
डायरी में मुलाकात का अनुभव लिखेंगे, बीमारों-बुजुर्गों को समझेंगे
कुट्टीकेयर प्रोजेक्ट के प्रमुख और आयुर्वेदिक अस्पताल के डॉक्टर अबिनेश गोपन बताते हैं कि बच्चे पहले गांव में मरीजों का सर्वे करते हैं। इससे उनको गांव की प्राथमिक समझ हो जाती है। इसके बाद वे डेटा का विश्लेषण करते हैं। फिर वे महीने में एक बार कम से कम एक मरीज से मिलने जरूर जाते हैं।
हालांकि वे जितने चाहे उतने मरीजों से मिल सकते हैं। उन्हें एक डायरी दी गई है, जिसमें सारी सूचनाएं, अपनी भावनाएं और समझ लिखनी होती है। यह डायरी हर महीने चेक की जाती है, जिसकी सेवा सबसे अच्छी होती है, उसे इनाम भी मिलता है।
डॉ. गोपन बताते हैं कि कुट्टीकेयर का लक्ष्य बच्चों को दयालु और सामाजिक बनाना है। जब वे बिस्तर पर पड़े किसी बीमार शख्स से बात करते हैं तो उनके व्यवहार में सकारात्मक बदलाव आते हैं। उनमें दूसरों की मदद की भावना बढ़ती है।
उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि वे अपनी ऊर्जा, ज्ञान और कौशल का इस्तेमाल ऐसे करें कि असहायों को उससे मदद मिल सके। बचपन और किशोरावस्था में बहुत एनर्जी होती है। इसे सही दिशा दे दी जाए तो वे बड़े होकर अच्छे नागरिक बनते हैं।
बच्चों को ड्रग माफिया से बचाना चाहते हैं
शिक्षक प्रसन्ना कुमारी ने कहा कि हम बच्चों को ड्रग माफिया से बचाना चाहते हैं। इसके लिए जो कुछ हो सकता है वह कर रहे हैं। कुट्टीकेयर भी इसी का हिस्सा है। हम चाहते हैं कि बच्चे लोगों का दर्द, उनकी समस्याएं समझें और सेवा उनका नशा और आदत बन जाए।