Mahabharat Story: महाभारत में कई ऐसे पात्र हैं, जिनके बारे में जानने और पढ़ने की अधिक से अधिक जिज्ञासा होती है. वैसे तो महाभारत में सबसे अधिक चर्चा भगवान कृष्ण, पांडवों और उनके भाइयों और दुर्योधन की होती है. लेकिन महाभारत में एक और ऐसा पात्र था, जो हमेशा केंद्र में रहा. उनका नाम है कर्ण. उन्हें लोग अंगराज और राधेय नाम से भी जानते हैं. वे एक बेहतरीन योद्धा थे और युद्ध-कला में बहुत निपुण थे. उन्होंने दुर्योधन की मित्रता निभाई और कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरवों की तरफ से लड़े और वीरगति को प्राप्त हुए. इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे उनकी मृत्यु में किन श्रापों की भूमिका रही. साथ ही उनकी पत्नी और संतानों के बारे में भी जानेंगे.
कर्ण का जन्म
कर्ण का जन्म एक कुंवारी राजकुमारी कुन्ती से हुआ था. ऋषि दुर्वासा के वरदान से कुन्ती को यह शक्ति मिली थी कि वह किसी भी देवता को बुलाकर उनसे संतान प्राप्त कर सकती थीं. जिज्ञासावश कुन्ती ने वरदान आज़माने के लिए सूर्य देव को बुलाया और उसी से कर्ण का जन्म हुआ. सूर्य देव ने कर्ण को जन्म से ही दिव्य कवच और कुंडल दिए थे जो उन्हें लगभग अजेय बनाते थे. लेकिन उस समय वे अविवाहित थीं, इसलिए समाज के डर से उन्होंने कर्ण को त्याग दिया. बाद में सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा ने उसे अपनाया और प्यार से पाला. इसलिए कर्ण की दो माताएं थीं. कुन्ती और राधा. इसलिए उन्हें राधेय भी कहा जाता है.
कर्ण की पत्नी और संतानें
कर्ण की पहली पत्नी वृषाली थीं. जबकि उनकी दूसरी पत्नी सुप्रिया थीं. वृषाली को अक्सर कर्ण की मुख्य पत्नी माना जाता है, जो उनके दुख-सुख में हमेशा साथ रहीं. वृषाली दुर्योधन के रथ के सारथी सत्यसेन की बहन थीं. कर्ण के तीन बेटे थे, जिनका नाम वृषसेन, वृषकेतु और बाणसेन था. वृषकेतु जो सबसे छोटा था. उसे युद्ध के बाद अर्जुन द्वारा प्रशिक्षित किया गया और उसे अंग देश का राजा भी बनाया गया.
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कर्ण की मृत्यु के पीछे इन श्रापों की भी भूमिका रही
परशुराम का श्राप
कर्ण ने परशुराम से शिक्षा लेने के लिए झूठ बोला कि वह ब्राह्मण है. परशुराम को जब सच्चाई पता चली तो उन्होंने कर्ण को श्राप दिया कि युद्ध के समय वह अपने सबसे शक्तिशाली अस्त्र का मंत्र भूल जाएगा.
गौवध का श्राप
एक बार कर्ण के रथ से एक गाय का बछड़ा कुचल गया. उस गाय के मालिक ब्राह्मण ने उसे श्राप दिया कि युद्ध में उसके रथ का पहिया जमीन में फंस जाएगा.
कवच-कुंडल का दान
युद्ध से कुछ दिन पहले इन्द्र देव ब्राह्मण का वेश धारण कर कर्ण से उसका कवच और कुंडल मांगते हैं. कर्ण उन्हें दान दे देते हैं. बदले में इन्द्र उसे एक दिव्यास्त्र देते हैं, जिसका उपयोग वह सिर्फ एक बार कर सकता था.
कर्ण की मृत्यु कैसे हुई?
युद्ध के 17वें दिन कर्ण और अर्जुन आमने-सामने थे. लेकिन जब तक कर्ण गटोटकच पर दिव्यास्त्र का उपयोग कर चुका था. कवच और कुंडल पहले ही दान कर चुका था और परशुराम का श्राप काम कर रहा था, उसे मंत्र याद नहीं आ रहे थे. जब उसके रथ का पहिया कीचड़ में फंस गया और वह असहाय हो गया, तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि यही मौका है. अर्जुन ने कर्ण पर प्रहार किया और कर्ण की मृत्यु हो गई.
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कर्ण की मृत्यु के बाद
जब युद्ध का शोर थमा, तब कुन्ती युद्धभूमि पर पहुंची और अपने बेटे कर्ण के मृत शरीर को गले से लगाया. उस दिन पांडवों को पहली बार सच्चाई का पता चला कि कर्ण उनका बड़ा भाई था. पांडवों ने ही कर्ण का अंतिम संस्कार किया.