Matsya Avtar: पृथ्वी पर मानव सभ्यता की सुखद स्थापना के कई युगों के पश्चात एक समय ऐसा आया जब एक महान परिवर्तन की आहट सुनाई दी. उस समय पृथ्वी पर राजा सत्यव्रत का शासन था. वे एक प्रतापी, धर्मनिष्ठ और दयालु शासक थे. एक दिन प्रातःकाल, जब राजा सत्यव्रत सूर्य को अर्घ्य देने के लिए नदी में स्नान कर रहे थे, उन्होंने अपनी अंजलि में जल लिया. उसी क्षण उन्होंने देखा कि उनके हाथों में एक छोटी सी मछली भी आ गई है. जैसे ही वे उसे वापस नदी में छोड़ने लगे, वह मछली बोली, “हे राजन, नदी में रहने वाली बड़ी मछलियाँ और जलचर मुझे निगल सकती हैं. कृपया मेरी रक्षा करें.” इस कथा के बारे में और केतु ग्रह से जुड़े इसके कनेक्शन के बारे में बता रहे हैं भोपाल स्थित ज्योतिषाचार्य रवि पाराशर.
राजा सत्यव्रत को उस मछली पर दया आ गई. उन्होंने उसे नदी में वापस छोड़ने के बजाय अपने कमंडल में रख लिया और राजमहल ले आए. अगले दिन जब उन्होंने मछली को देखा, तो पाया कि उसका आकार अप्रत्याशित रूप से बढ़ चुका था और वह कमंडल में समा नहीं पा रही थी. उन्होंने उसे एक जलपात्र में स्थान दिया, किंतु अगले ही दिन वह पात्र भी छोटा पड़ गया.
राजा ने उसे एक और बड़े पात्र में रखा, फिर एक तालाब खुदवाया, परंतु मछली का आकार निरंतर बढ़ता गया. अंततः राजा ने मछली से आज्ञा लेकर उसे समुद्र में छोड़ दिया. वहां भी मछली का आकार इतना विशाल हो गया कि समुद्र भी उसके लिए छोटा प्रतीत होने लगा.
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तब राजा सत्यव्रत को बोध हुआ कि यह कोई साधारण मछली नहीं है. उन्होंने हाथ जोड़कर प्रार्थना की, तब वह मछली भगवान विष्णु के मत्स्य रूप में प्रकट हुई. भगवान ने राजा से कहा, “हे राजन, मैं तुम्हारी करुणा और सूक्ष्म प्राणियों के प्रति संवेदनशीलता की परीक्षा लेने आया था. मैं तुमसे अत्यंत प्रसन्न हूं.”
भगवान ने बताया कि सात दिनों पश्चात सम्पूर्ण पृथ्वी जलप्रलय से ग्रस्त होगी. उस समय एक विशाल नौका, जिसमें ऋषिगण, बीज, औषधियां होंगे, तुम्हारे महल के निकट से गुज़रेगी. तुम उसमें सवार हो जाना.
इसके पश्चात भगवान मत्स्य समुद्र में विलीन हो गए और उन्होंने पाताल जाकर हैयग्रीव नामक असुर से चुराए गए वेदों को पुनः प्राप्त किया.
सातवें दिन जब जलप्रलय हुआ, तब वही मत्स्य अवतार प्रकट हुए और उन्होंने राजा सत्यव्रत तथा अन्य ऋषियों को सुरक्षित नौका में बैठाकर अपने सींग से बांध लिया और उन्हें पर्वत की ऊंचाई पर ले गए. प्रलय समाप्त होने के बाद भगवान ने राजा को आत्मज्ञान प्रदान किया और उन्हें पुनः पृथ्वी पर जीवन की पुनः स्थापना का दायित्व सौंपा.
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ज्योतिषीय दृष्टिकोण से मत्स्य अवतार का रहस्य
भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार को यदि ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखा जाए, तो यह अवतार केतु ग्रह की ऊर्जा से जुड़ा हुआ है. यह कथा विशेष रूप से कुछ ज्योतिषीय संकेतों को उजागर करती है,
केतु का परीक्षा भाव: केतु का संबंध जीवन में आने वाली आंतरिक परीक्षा और अप्रत्याशित परिस्थितियों से होता है. जैसे राजा सत्यव्रत की करुणा की परीक्षा ली गई, वैसे ही जन्मकुंडली में जहां-जहां केतु स्थित होता है, वहां व्यक्ति को जीवन में परीक्षण से गुजरना पड़ता है. लेकिन अगर वह वहां उचित निर्णय लेता है, तो केतु वहीं से उसे सबसे कठिन समय में अद्भुत सहायता भी देता है.
केतु और ज्ञान का संरक्षण: केतु केवल ज्ञान से नहीं, बल्कि उसके संरक्षण और आगे की पीढ़ियों में विस्तार से भी जुड़ा है. मत्स्य अवतार ने वेदों की रक्षा की. यह दर्शाता है कि कुंडली में जहां केतु स्थित हो, वहां से संबंधित ज्ञान, गुण, या कौशल को व्यक्ति केवल आत्मसात ही नहीं करता, बल्कि उसे समाज और पीढ़ियों में आगे बढ़ाने की चेष्टा करता है.