अधिवेशन भवन में विमोचन किया गया है।
‘गजेटियर-कम-एटलस ऑफ वाटर बॉडीज ऑफ बिहार’ एटलस का बुधवार को अधिवेशन भवन में विमोचन हुआ। ये विमोचन राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के मंत्री संजय सरावगी ने किया। यह बिहार में जल निकायों से जुड़े अतिक्रमण के मामलों के निबटारे में खास तौर से काफी मददगार साबि
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विमोचन करते हुए संजय सरावगी ने कहा कि इस गजेटियर-कम-एटलस में राज्य की नदियां, आर्द्र भूमी, तालाब जैसे जल निकायों की जानकारी मानचित्रों के माध्यम से प्रदान की गई है। इन जल निकायों को गांव और पंचायत स्तर की न्यूनतम प्रशासनिक सीमारेखा के साथ प्रदर्शित किया गया है। इससे न केवल जल स्रोतों की सुरक्षा और प्रबंधन को बल मिलेगा, बल्कि अतिक्रमित जल निकायों की पहचान कर उन्हें पुनः संरक्षित करने में स्थानीय प्रशासन को मदद मिलेगी। जल्द ही इस एटलस का हिंदी संस्करण भी लाया जाएगा। एटलस के जरिए राज्य के सरकारी तालाबों को विशिष्ट पहचान (UID) प्रदान करने की दिशा में भी कार्य हो सकेगा। शोधकर्ताओं के लिए भी उपयोगी
संजय सरावगी ने कहा कि एटलस की विशेषता यह भी है कि इसमें केवल नक्शे ही नहीं, बल्कि संबंधित जिले की ऐतिहासिक, पुरातात्विक, भू-आकृतिक, जलवायु, सामाजिक, आर्थिक, मृदा, कृषि, उद्योग, पर्यटन एवं सांस्कृतिक जानकारी का भी समावेश किया गया है। यह पुस्तक प्रशासनिक कार्यों के साथ-साथ शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं एवं नीति-निर्माताओं के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी।
विमोचन अधिवेशन भवन में मंत्री सरावगी समेत अन्य।
2020 में शुरू हुई तैयारी
इसके प्रकाशन की शुरुआत वर्ष 2020 में तत्कालीन अपर मुख्य सचिव विवेक कुमार सिंह, (वर्तमान अध्यक्ष भू-सम्पदा विनियामक प्राधिकरण (रेरा बिहार) द्वारा पर्यावरणीय संतुलन, जल स्रोतों के संरक्षण और हरियाली को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। वर्तमान अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह के समय यह कार्य पूर्ण हुआ।
कई विभागों के लिए लाभकारी
दीपक कुमार सिंह ने कहा कि यह एटलस विभिन्न उपयोगकर्ताओं जल संसाधन, कृषि, सड़क, आपदा, पुरातत्व, ग्रामीण विकास आदि और विभागों और राज्य सरकार के विभिन्न संस्थानों और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के लिए एक बहुत ही उपयोगी होगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सोच को एटलस में उतारने की कोशिश की गई है।
अतिक्रमण से मुक्ति के लिए यह काफी बेहतर सोर्स
इस अवसर पर रेरा (भू-सम्पदा विनियामक प्राधिकरण) बिहार के अध्यक्ष विवेक कुमार सिंह ने कहा कि 2017 में हाईकोर्ट में एक केस आया और जल निकाय को लेकर निर्देशित किया कि जल निकाय को प्रत्येक जिला में किस तरह से अतिक्रमित किया गया है? यह बताना हम लोगों के लिए एक कठिन कार्य था। हमलोगों ने तय किया कि एक ऐसा एटलस तैयार किया जाए जिससे राज्य के जल निकायों की पूर्ण जानकारी हासिल हो सके।
पायलट बेसिस पर कोसी में हम लोगों ने इसे किया और लगा कि राज्य स्तर पर यह कार्य किया जा सकता है। वर्ष 2020 में हमलोगों ने तय किया कि इसका राज्य स्तर पर टेंडर निकाल कर कराया जाए। कई विभागों के समन्वय से एक ऐसा डाटा बिहार के जल संपदा पर तैयार कराया गया जो बिहार के स्तर पर ही नहीं बल्कि विश्व स्तर पर तैयार एटलस है। भारत सरकार के वाटर रिसोर्स लगातार इस एटलस की मांग कर रहे हैं।
यह ऐसा डाटा है जिसे देश के स्तर पर लागू किया जा सकता है तैयार करवाया जा सकता है। अब हमें जल से जुड़े आंकड़े का उपयोग करना है। अतिक्रमण से डील करने के लिए यह काफी बेहतर सोर्स मटेरियल है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि दरभंगा शहर तालाबों का ऐसा शहर है जो भोपाल से कम नहीं है लेकिन अतिक्रमण काफी है।
कहा कि अब हमने रेरा में अतिक्रमण को लेकर कार्रवाई शुरू की है। हमलोगों ने पाया कि 62 बिल्डिंग ऐसे थे जिनका फॉर्म रिजेक्ट किया था और जो बन गए उसमें मैप के जरिए जाना कि इसमें से 50 फीसदी से ज्यादा बिल्डिंग ऐसे हैं जिनका रेरा से निबंधन नहीं है। अतिक्रमण जैसे सेंसेटिव मामले में यह एटलस कारागार साबित होगा।
राजस्व विभाग में एक टेक्निकल कैडर हो
विवेक कुमार सिंह ने कहा कि हमें रेरा के तहत 30 दिनों के अंदर स्वीकृति देनी होती है। बिल्डर को कई तरह की जानकारी नहीं मिलने पर दिक्कत होती है। जिस सरकारी जमीन की नापी सीओ नहीं करवा सकते उन पर तो कार्रवाई होनी चाहिए। भूमि सुधार विभाग में मैन पावर ठीक हैं। राजस्व विभाग में एक टेक्निकल कैडर हो जिसमें सर्वे से जुड़े कर्मियों का अगर काडर बनाने का सोचा जाए।

एटलस में जल निकायों संबंधी आंकड़े विभिन्न विभागों से एकत्रित किए गए
– नदियों से संबंधित आंकड़े जल संसाधन विभाग से लिए गए हैं।
– वेटलैंड्स (आर्द्र भूमियों) की जानकारी पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग से ली गई है।
– तालाबों की जानकारी जल जीवन-हरियाली मिशन, ग्रामीण विकास विभाग से ली गई है।
– इनके अतिरिक्त गजेटियर संबंधी आंकड़े आर्थिक सर्वेक्षण, भारत की जनगणना, बिहार सांख्यिकी पुस्तिका, भारत का मौसम विज्ञान विभाग, केंद्र एवं राज्य के विभिन्न संस्थानों से प्राप्त किए गए हैं।