अबुआ राज की खामी बबुआ-बाबू निकालते रहें…
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होली है। रंग-गुलाल के काले-पीले-नीले छीटें पड़ेंगे ही। हैप्पी होली। कहा है- जोगी जी होली आई/ भंग की गोली लाई/ प्रेम से बम-बम बोलो, जंग को भूलो भाई! जोगी जी फाग जगा है/ नया उन्माद जगा है/ आज का मौसम भी तो/ नए रस-रंग पगा है! भंग की तरंग में कविता की पंक्तियां ठीक-ठीक नहीं याद आ रहीं-किसी कवि ने ही लिखा है- सखी, हेमंत आया…वगैरह!
डॉ. अशोक प्रियदर्शीप्रसिद्ध व्यंग्यकार, रांची
रांची, शुक्रवार, 14 मार्च, 2025
झारखंड की राजधानी कई समस्याओं से घिरी हुई है। जाम और इस जाम में हर दिन जनता का फंसना आम है। मोहल्ले की सड़कों पर गड्ढे ही गड्ढे हैं। लोग रोज गिरते हैं और रोज संभलते हैं। सड़क पर कोई सुरक्षित नहीं। अपराधी जब चाहे जिसे चाहे अपना शिकार बना लेते हैं। चेन छिनतई बच्चों का खेल है। इन तमाम समस्याओं के बीच राजधानी खुशियां ढूंढ रही है। इन समस्याओं को कवि नरेश बंका ने चुटीले अंदाज में अपने शब्दों से पिरोया है। साथ ही पेश है इन समस्याओं पर कटाक्ष करती जोगीरा…
राजा को आगे भी चुनाव लड़ना है, अखंड राज्य करना है। राजा कमाए नहीं तो क्या खाए, क्या भविष्य के लिए बचाए! भविष्य भी सुखद हो, रहे, यह कल्पना तो हर राजा करता है। गर कल्पना ही होठों पर मुस्कान लाती है, गतिशील रहने के लिए एड़ लगाती है। मुझको इस अबुआ राज में कई दोष नहीं दिखता। अबुआ राज की खामी बबुआ-बाबू निकालते रहें।
नरेश बंकाहास्य कवि, रांची
नफरतों के जल जाएं अंबार, गिर जाए मतभेद की दीवार होली में…विधानसभा में अलग-अलग सुर-ताल में गाने वाले विधायक होली के रंग में रंगते ही एक हो गए। पेश है जाने-माने व्यंग्यकार डॉ. अशोक प्रियदर्शी की शैली में झारखंड की राजनीति वाली होली।
जम के खेले जामेS में होली…
रोए ई जनता… पुलिस पीटे कपार…।
भूखल है बुढ़वन, लटकल है गाल…
रोज गिरे जनता, हाल हुआ बेहाल…
कभी-कभी जेल जाना भी सौभाग्य में बढ़ोतरी करता है। प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या! हाथ कंगन को आरसी क्या? पढ़े-लिखे को फारसी क्या! सभी जीवों के दिन फिरते हैं। वे राजा बने। जेल गए। दूसरी बार राजा बने। रानी की क्षमता को उन्होंने परखा नहीं था। रानी अपने बूते मनसबदार बनी। राजा को मइयां (किसी अंक ज्योतिष वाले ने बताया कि ‘मंईयां’ लिखो) या मइयां योजना वाला टोटका सिखाया। इसी ‘मंईयां’ ने दूसरी बार राजत्व का सुख दिलवाया। यह राजा-रानी की जोड़ी नई कहानी लिख रही है।
राजा ने गुरुजी-2 बनकर स्थाई राजत्व का सपना पाला। लंबे लहराते केश, यदा-कदा जूड़े में आबद्ध। लोकानुभव की तसदीक करते श्वेत-दीर्घ श्मश्रु (दाढ़ी)। कहते हैं अस्त-व्यस्त पति को संवारना प|ियों को सुहाता है। कितने लाड़ से रानी पति को तैलसिंचित कर संवारती है। अब राजा को श्रीशोभा वरनि न जाय! हाय! एक्सप्रेस या मेल रेलगाड़ी छोटे-मोटे स्टेशनों की उपेक्षा करती हुई आगे बढ़ती जाती है। छुकछुक-छुकछुक! उसी तरह से छोटी-मोटी उचक्केगीरी, लूट-मार, गोली-बारी, हत्या-वत्या होती रहती है। राजा अपनी गद्दी देखे कि इन भद्दी चीजों में अपना माथा खपाये! घर बन रहे हैं, नदियों में बालू है, तो बालू की चोरी कौन अजूबा है। चलता है इतना सब। अब अपना झारखंड खनिजों का भंडार है। इसकी कोख में प्रभूत कोयला है। कोयला है लोग निकालेंगे ही, बेचारे जरूरतमंदों के कोयला निकालने, बाजार में लाने की राह में आप बाधा बनेंगे तो गोली खाएंगे ही!
राजा की राह इस बार करने को नये-नयों का साथ है। अभिप्राय यह कि साथ में हाथ है। दीपिका का प्रकाश है। कृषि को मजबूती देती युवा नेहा हैं। बनन में बागन में बगरयो वसंत है! राजा अपनी सुरूपा रानी के प्रिय-कंत हैं। सारी डोल बैठा ली गई है। प्रय| है कि अबुआ दिशुम में अबुआ राज चलता रहे। तो हैप्पी होली, हैप्पी अबुआ राज। राजा के सर पर ताज सजा रहे। झारखंड में मजा रहे। इस राज की सुख-शोभा को देखकर ही बाबू-भैया मजा रहे। हाथी बाजार में चलता है है तो क्या होता है, आप जानते हैं?
इत्यवम्। जेल यात्रा ऐसे ही सबों को फले!
जोगीरा सारा रारा, वाह खिलाड़ी वाह! इधर भी जाम, ऊधर भी जाम बाहंसेला कछुआ, तोहरा से तेज हमार चाल बा।बोल… जोगीरा सारा रारा…!
कार्टून:
जोगीरा सारा रारा, वाह खिलाड़ी वाह!चोर-बदमाश रोज करे धमालरोए ई जनता, पुलिस पीटे कपार…।बोल… जोगीरा सारा रारा…!
जोगीरा सारा रारा, वाह खिलाड़ी वाह!जवनकन के दिए रामा रंगे-गुलाल भूखल है बुढ़वन, लटकल है गालबोल… जोगीरा सारा रारा…!
जोगीरा सारा रारा, वाह खिलाड़ी वाह!रांची में सड़कन का हाल-ए-बेहाल,रोज गिरे जनता, हो जाए लाले-लाल!बोल… जोगीरा सारा रारा…!
आगे जाम पीछे जाम इस जाम ने किया जीना हराम। होली का भी आनंद गया नहीं बचा कोई काम।।
चेन लुट गई महिला की फीके पड़ गए सब रंग।बाइक गिरोह की बल्ले बल्ले खूब मचेगी इस होली हुड़दंग।।
मंईयां योजना की पिचकारी चली, घर-घर पहुंचा रंग।बुजुर्ग-विधवा गाल मले, हाथ हो गए तंग।।
इन सड़कों पर हम और आप गिरेंगे संग संग, तभी तो जमेगा होली का रंग। हाथ पैर टूटने से बचाएं, चुपचाप सीधे घर को जाएं।।