गुजरात में बनासकांठा जिले के डीसा में 1 अप्रैल 2025 की सुबह पटाखा गोदाम में हुआ था ब्लास्ट।
गुजरात में बनासकांठा जिले के डीसा में 1 अप्रैल 2025 की सुबह करीब साढ़े नौ बजे पटाखों का गोदाम मौत की चीखों से गूंज उठा। गोदाम में मरने वालों की संख्या 22 हो गई है। गोदाम के मालिक पिता-पुत्र खूबचंद मोहनानी और दीपक मोहनानी को जेल भेज दिया गया है। अब दि
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गोदाम के बारे में पुलिस ने जो निगेटिव रिपोर्ट तैयार की थी, दैनिक भास्कर को उसकी कॉपी मिल गई और इसके पीछे का राजनीतिक खेल का भी पर्दाफाश हो गया। हमने उस अधिकारी से भी बात की, जिसने ऑन-रिकॉर्ड रिपोर्ट दी थी कि यदि कोई बड़ा विस्फोट हुआ तो बड़ी क्षति हो सकती है। साथ ही उस व्यक्ति से भी बात की, जो इस रिपोर्ट को तैयार करने में शामिल था।
विस्फोट से एक महीने पहले तीन अधिकारियों को संदेह था कि इस गोदाम में अवैध रूप से पटाखों का इतना स्टॉक रखा गया है कि इससे बड़ी दुर्घटना हो सकती है। फिर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। ऐसा क्यों हुआ? किसके कहने पर निगेटिव रिपोर्ट की फाइल एक महीने तक दबा कर रखी गई? मध्यप्रदेश के रहने वाले 22 मजदूरों की मौत के बीच निष्पक्ष जांच और न्याय का दावा करने वाले नेताओं-अधिकारियों की मिलीभगत और लापरवाही की ये पूरी रिपोर्ट पढ़ें…
हरदा में 6 फरवरी को पटाखा फैक्ट्री में हुए ब्लास्ट में 13 लोगों की मौत हुई थी।
मध्य प्रदेश में एक धमाका हुआ और गुजराती व्यापारी को नया मौका दिखाई दिया… दरअसल, 1 अप्रैल 2025 को गुजरात के डीसा में हुआ विस्फोट 14 महीने पहले मध्य प्रदेश के हरदा में हुए विस्फोट की घटना का एक-दूसरे से संबंध है। अब इसे विस्तार से समझें… पिछले 20 वर्षों से खूबचंद मोहनानी आतिशबाजी के थोक व्यापार से जुड़ा हुआ था। फिर उसने बेटे दीपक को भी इसी बिजनेस में शामिल कर लिया। उत्तर गुजरात में पटाखों के बिजनेस में दीपक एक चर्चित नाम है। इसका व्यवसाय साबरकांठा, अरावली, बनासकांठा, पाटण और मेहसाणा में फल-फूल रहा था। पिता-पुत्र ज्यादातर मध्य प्रदेश के पटाखा निर्माताओं से माल खरीदते थे और फिर उन्हें गुजरात के कई शहरों समेत अन्य राज्यों में भी बेचते थे।
6 फरवरी 2024 को मध्य प्रदेश के हरदा में एक पटाखा फैक्ट्री में विस्फोट हुआ था। जिसमें 13 लोगों की मौत हो गई। इसके बाद पूरे मध्यप्रदेश में फायर एनओसी का भूत मंडराने लगा और धड़धड़ राज्य की पटाखा फैक्ट्रियों पर छापे मारे जाने लगे। अनियमितताओं के कारण कई फैक्ट्रियां सील कर दी गई। परिणामस्वरूप, पटाखों की पूरी आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हो गई और इसका असर दीपक के कारोबार पर भी पड़ने लगा। लेकिन, इसी कठिन परिस्थिति में दीपक और खूबचंद को एक नया आयडिया सूझा कि क्यों न पटाखा बेचने के साथ-साथ खुद ही पटाखे बनाने का काम भी शुरू कर दिया जाए।

पटाखे बनाने के लिए हरदा के ही अनुभवी मजदूर चुने आखिरकार दोनों ने बिना लाइसेंस के पटाखे बनाने का काम शुरू करने की तैयारी कर ली। दोनों ने कच्चा माल लाने और डीसा स्थित गोदाम में पटाखे बनाने का फैसला किया। उनके पास पटाखे बेचने का अनुभव तो था, लेकिन उन्हें बनाने का कोई कौशल नहीं था। बावजूद इसके अधिक मुनाफे की चाहत और माल की आपूर्ति के इरादे से वे पटाखे बनाने के कारोबार में कूद पड़े। इसके लिए दोनों ने हरदा के मजदूरों को हो चुना, जो हरदा में पटाखा फैक्ट्रियों में काम करते थे और ब्लास्ट होने के बाद से बेरोजगार बैठे हुए थे।
मजूदरों की व्यवस्था के लिए दीपक और खूबचंद ने हरदा जिले के हड़िया गांव निवासी लक्ष्मी नायक से संपर्क किया। लक्ष्मी ने एक ठेकेदार की भूमिका निभाई। उसने स्थानीय मजदूरों को डीसा आने के लिए राजी कर उन्हों दीपक और खूबचंद की फैक्ट्री में भेज दिया। मजूदरों को रोजाना के 300 से 400 रुपए का मेहनताना देना तय हुआ था।
पटाखों के लिए कच्चा माल नागपुर, शिवकाशी और आगरा से खरीदा गया था। अहमदाबाद के नारोल जीआईडीसी से भी कुछ सामान खरीदा गया था। यह पूरा कच्चा माल डीसा के गोदाम में जमा किया गया था। इस तरह, पिता-पुत्र ने बिना लायसेंस के ही दोगुना मुनाफा कमाने के लिए पटाखे बनाने का बिजनेस शुरू कर दिया।

भीषण ब्लास्ट से गोदाम की छत और दीवारें ढह गई थीं।
एक ही लाइन में कुल 6 गोदाम थे साल 2021 में खूबचंद और दीपक मोहनानी ने गोदाम में पटाखे रखने और बेचने का लाइसेंस प्राप्त कर लिया था, जिसकी समय सीमा कुछ समय पहले खत्म हो गई थी। अब मोहनानी के पास आतिशबाजी बेचने-रखने का भी लायसेंस नहीं था। इसके बावजूद दोनों पिता-पुत्र गोदाम में पटाखे बनाने जैसा एक और गैर-कानूनी काम भी शुरू कर चुके थे। इसी के चलते दोनों ने मजदूरों से कहा था कि शटर बंद करके काम करना, जिससे अधिकारी तुम्हें न देख सकें।
दीपक ट्रेडर्स परिसर में एक ही लाइन में कुल 6 गोदाम थे। अंतिम दो गोदामों में पटाखे बनाने का काम सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक बंद रखकर किया जाता था। होली से कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश से 17 मजदूर यहां आए। इन मजदूरों ने करीब दो सप्ताह तक पटाखे बनाए। फिर, होली के त्योहार पर सभी लोग अपने गांव चले गए थे। इसके बाद 29 मार्च को 25 मजदूर मध्य प्रदेश से वापस यहां आए और 30 मार्च की सुबह करीब 7 बजे गोदाम में पटाखे बनाना शुरू कर दिया था।
इन मजदूरों को चार तंबुओं में रहने के लिए मजबूर किया गया था, गोदाम के किनारे प्लास्टिक के जाल बांधे गए थे। मजदार गैस सिलेंडर, चूल्हा और किराने का सामान भी अपने साथ लेकर आए थे। काम के आधार पर उन्हें प्रतिदिन 300 से 400 रुपए मजदूरी दी जाती थी।
मजदूरों से कहा था- शटर बंद करके काम करो, जिससे अधिकारी तुम्हें न देख सकें होली से एक पखवाड़ा पहले मजदूर दीपक के गोदाम पर आए और काम शुरू कर दिया। हालांकि, इस गोदाम के निर्माण के पीछे मूल उद्देश्य पहले पटाखों का स्टॉक रखना था। इसलिए इसके निचले हिस्से को सीमेंट से ठोस बनाया गया था। जबिक, पटाखे बनाने वाली जगह ठोस नहीं होनी चाहिए। इसी के चलते जमीन पर आमतौर पर नीचे रेत फैला दी जाती है। इसके अलावा गोदाम में पर्याप्त वेंटिलेशन सिस्टम भी नहीं था। इसी से यहां भयानक विस्फोट हुआ था। यह बात तो हो गई, इमारत की संरचना के बारे में।

पुलिस हिरासत में पिता खूबचंद (दायीं ओर) और उसका बेटा दीपक मोहनानी।
अब पटाखे रखने के लिए लाइसेंस प्राप्त करने की कोशिशों और इसमें राजनीतिक प्रभाव के इस्तेमाल का इतिहास समझिए।
दैनिक भास्कर की पड़ताल में पता चला कि दीपक मोहनानी ने करीब तीन-चार महीने पहले गोदाम में पटाखे रखने के लाइसेंस के नवीनीकरण के लिए आवेदन किया था। इसलिए डीसा की प्रांतीय अधिकारी यानी एसडीएम नेहा पांचाल ने डीसा ग्रामीण पुलिस स्टेशन के तीन अधिकारियों, अर्थात् पुलिस क्षेत्राधिकारी, सर्कल अधिकारी और मामलतदार को मौके पर निरीक्षण कर अपनी रिपोर्ट देने के लिए लिखित आदेश जारी किया था। पुलिस अधिकारी आयोग के साथ 28 फरवरी, 2025 को स्थल निरीक्षण के लिए गोदाम पर पहुंचे भी थे, लेकिन उससे पहले ही नेताओं की सिफारिशें आने शुरू हो गई थीं।
जैसा कि पीआईए ने दिव्य भास्कर को बताया, विशाल जोशी विधायक प्रवीण माली का पीए है। उसने फोन करके गोदाम के लिए पॉजीटिव रिपोर्ट की सिफारिश की थी। विशाल ने कहा था- मोहनानी एक अच्छे इंसान, व्यवसायी और हमारी पार्टी के समर्थक हैं। वह हमारी विचारधारा के व्यक्ति हैं। बनासकांठा जिले के एक शीर्ष पुलिस अधिकारी ने भी सिफारिशी कॉल प्राप्त होने की पुष्टि की है।
यहां एक और बात ध्यान देने वाली है। दीपक मोहनानी का गोदाम डीसा के पास धुवा ग्राम पंचायत के इलाके में है। फिर भी, डीसा नगर पालिका के पार्षदों ने भी इस मामले में इंटरेस्ट लिया। इन 3 पार्षदों ने पुलिस अधिकारियों से सिफारिशें की और उनसे पॉजिटिव रिपोर्ट देने को कहा।

दीपक मोहनानी के पहले भाजपा में रहने का पोस्टर।
डीसा शहर का युवा भाजपा मंत्री भी रह चुका है दीपक मोहनानी डीसा भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि दीपक मोहनानी और डीसा भाजपा विधायक प्रवीण माली एक साथ पढ़ाई करते थे। दोनों के बीच दोस्ती सिर्फ खाने-पीने और घूमने-फिरने तक ही सीमित नहीं है। दीपक मोहनानी 2017 से 2021 तक डीसा शहर का युवा भाजपा मंत्री भी रह चुका है। उस दौरान, प्रवीण माली युवा भाजपा के नेता थे। उनकी सिफारिश पर ही दीपक मोहनानी को भाजपा संगठन में जगह मिली थी। लेकिन पार्टी में सक्रिय न होने के कारण उससे यह पद छीन लिया गया था।
विधायक माली ने कहा- मैं दीपक को जानता तक नहीं हूं हालांकि, जब हमने यह मामला विधायक प्रवीण माली के सामने उठाया तो उन्होंने आरोपों से इनकार किया। उन्होंने कहा- दीपक मुझसे पांच साल छोटा है। हम एक साथ पढाई नहीं करते थे। मैं उनसे कभी नहीं मिला और मेरे पास उनका मोबाइल नंबर भी नहीं है। साथ ही उन्होंने अपनी सिफारिश पर अपने पीए विशाल के फोन किए जाने की बात से भी इनकार कर दिया। कहा- अगर मुझे किसी को फोन करना पड़ता है, तो मैं करता हूं। मैं कोई भी निर्देश स्वयं देता हूं। मेरा पीए नहीं। दिव्य भास्कर ने जब उनके पीए विशाल से सिफारिशी फोन कॉल के बारे में पूछा तो उन्होंने भी ऐसी किसी कॉल से इनकार करते हुए कहा कि मुझे इस विषय में कोई जानकारी नहीं है।
गोदामों में पटाखे बनाने का काम सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक बंद रखकर किया जाता था।
पुलिस ने अपनी निगेटिव रिपोर्ट में पहले ही आपदा की भविष्यवाणी कर दी थी…
बीती 28 फरवरी को जब पुलिस अधिकारी ने गोदाम का निरीक्षण किया तो दीपक मोहनानी वहां मौजूद था। दीपक ने स्वीकार किया कि उसके पास यूजीवीसीएल, फायर एनओसी या अन्य जरूरी दस्तावेज नहीं थे। फिर दीपक ने वहीं से अपने राजनीतिक आकाओं को फोन किया। अगर दीपक की व्हाट्सएप कॉल डिटेल या सीडीआर की जांच की जाए तो उसके आकाओं के नाम स्पष्ट रूप से सामने आ सकते हैं।
पुलिस ने तो निगेटिव रिपोर्ट बनाई थी दूसरी ओर, पुलिस अधिकारी ने सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए बॉडी-वॉर्न कैमरे से वीडियोग्राफी की। पंचो की उपस्थिति में लगभग 38 मिनट का एक वीडियो रिकॉर्ड किया गया। इस वीडियो में गोदाम की स्थिति क्या थी? वहां कितने लोग मौजूद थे? और सुरक्षा के नाम पर क्या देखा गया? यह सब रिकार्ड किया गया है। पुलिस अधिकारी ने पंचनामा कर निगेटिव रिपोर्ट तैयार कर 1 मार्च 2025 को एसडीएम नेहा पांचाल को भेज दी थी। साथ ही एक प्रतिलिपि डीएसपी सीएल सोलंकी को भी भेजी गई थी।
रिपोर्ट दर्ज होने के बाद भी कई कॉल आए जब दिव्य भास्कर ने पुलिस अधिकारी से सिफारिशी कॉल के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा- सिफारिशी कॉल आने पर मैंने उनसे सिर्फ इतना कहा था कि नियमानुसार जो भी कानूनी तौर पर होगा, वही किया जाएगा। हम पॉजीटिव रिपोर्ट तभी जारी करेंगे, जब यह हमारी चेकलिस्ट के अनुरूप होगा। आखिरकार हमने गोदाम की पूरी रिपोर्ट निगेटिव पाई। इसलिए हमने नेगेटिव रिपोर्ट दी। रिपोर्ट जमा करने के बाद भी हमारे पास कई कॉल आए थे।
दीपक के गोदाम की जांच के बाद पुलिस अधिकारी द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट हमें प्राप्त हुई है। दो पन्नों की रिपोर्ट में लिखी गई हरेक टिप्पणी किसी बड़ी आपदा की भविष्यवाणी जैसी थी।

पुलिस की गुजराती भाषा में लिखी निगेटिव रिपोर्ट। पुलिस ने पहले ही रिपोर्ट में में साफ लिखा दिया था कि गोदाम पटाखे रखने लायक है ही नहीं। इसका लायसेंस रिन्यू नहीं किया जाना चाहिए।
अब पढ़िए कि पुलिस अधिकारी ने एसडीएम नेहा पांचाल को सौंपी रिपोर्ट में क्या लिखा था…?
- इस प्लाट में A से F तक कुल छह गोदाम हैं, जिसमें स्थलीय निरीक्षण में पता चला कि गोदाम A पर कोई नंबर, लाइसेंस धारक का नाम, लाइसेंस की प्रति या गोदाम के बाहर या अंदर कहीं भी नंबर अंकित नहीं था।
- गोदाम A की लंबाई 18 फीट और चौड़ाई 40 फीट है। गोदाम में प्रवेश करने के लिए आगे की ओर एक शटर और पीछे की ओर एक छोटा लोहे का दरवाजा है।
- गोदाम का निर्माण सीमेंट, ईंट और कंक्रीट से किया गया है तथा इसकी दीवारों में भूमिगत विद्युत तारें बिछाई गई हैं।
- गोदाम के अंदर छत पर चार छोटे अग्निशामक यंत्र लगे हुए हैं। इसके अलावा, स्थल निरीक्षण के दौरान इस गोदाम में कोई अन्य अग्नि सुरक्षा उपकरण नहीं पाया गया।
- आवेदक के बयान में यह तथ्य भी दर्ज है कि उसके पास अग्नि अनापत्ति प्रमाण पत्र या विद्युत बोर्ड प्रमाण पत्र नहीं है।
- लाइसेंस प्राप्त परिसर (गोदाम A) के बगल में स्थित अन्य चार गोदाम फिलहाल बंद हैं। जब गोदाम के बारे में पूछा गया तो आवेदक ने बताया कि यह किराये पर दिया गया था, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया कि यह किसे किराए पर दिया गया था।
- यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि इस परिसर के अन्य गोदामों में किस प्रकार का सामान रखा गया है। इस बात की प्रबल संभावना है कि उन गोदामों में विस्फोटक भी रखे जा रहे हों।
- आवेदक ने स्थायी आतिशबाजी लाइसेंस के साथ क्षेत्र का नक्शा प्रस्तुत किया। लेकिन यह नक्शा लाइसेंस प्राप्त क्षेत्र के अनुरूप प्रतीत नहीं होता।
- यह स्थान आतिशबाजी के भंडारण के लिए है, लेकिन वर्तमान में यहां अग्निशामक यंत्र, रेत या पानी की कोई व्यवस्था नहीं है।
- जिस स्थान के लिए परमिट मांगा जा रहा है, उसके पास एक और गोदाम स्थित है। इसमें विभिन्न प्रकार के सामान जमा किए जाते हैं।
- दोनों ओर सार्वजनिक सड़कें भी हैं। यदि आग दुर्घटना होती है तो इस गोदाम के पास स्थित अन्य गोदामों में रखे माल को नुकसान पहुंचने की पूरी संभावना है।
- यदि आग लगने की दुर्घटना होती है तो आस-पास के खेतों में लगी फसलों को भी नुकसान हो सकता है।
- इसलिए, आवेदक के स्थायी आतिशबाजी लाइसेंस संख्या 02/2021 (गोडाउन A) के नवीनीकरण पर हमारी ‘न’ है ।
- वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में यह जरूरी नहीं है कि पुलिस की सकारात्मक रिपोर्ट आने पर ही पटाखा गोदाम को अनुमति दी जाए।
- हालांकि, अंतिम प्राधिकार एसडीएम के पास है। इसलिए, पुलिस की निगेटिव रिपोर्ट को नजरअंदाज करने के बाद भी अनुमति दी जा सकती है।

मजदूर गोदाम के सामने खुले मैदान में तंबू लगाकर रह रहे थे।
दो निगेटिव रिपोर्ट आईं, तीसरी का इंतजार था, लेकिन इससे पहले धमाका हो गया हालांकि इस मामले में पुलिस अधिकारी ने एक मार्च को रिपोर्ट दर्ज कर ली थी। लेकिन सर्किल ऑफिसर और मामलतदार ने एसडीएम नेहा पांचाल के आदेश के बाद भी ढीला रवैया अपनाया। आदेश के 50 दिन बाद 13 मार्च को अंचल अधिकारी स्थल निरीक्षण के लिए पहुंचे और 26 मार्च को निगेटिव रिपोर्ट दाखिल की। लेकिन मामलतदार ने आगे की कोई कार्रवाई नहीं की। क्योंकि, अंचल अधिकारी की निगेटिव रिपोर्ट के बाद, एसडीएम ऑफिस को आगे का फैसना लेना होता है।
हालांकि, एसडीएम को अपने स्तर पर स्वतंत्र निर्णय लेने का भी अधिकार है। फिर भी, दो गंभीर नकारात्मक रिपोर्टों के बाद भी गोदाम को सील करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया और मामलतदार रिपोर्ट दर्ज होने का इंतजार करते रहे। यहां सवाल उठता है किसके इशारे पर?
सवाल यह भी है कि अगर एसडीएम नेहा पांचाल ने 22 जनवरी को ही मौके पर जांच के आदेश दे दिए थे तो यह इतनी देरी से क्यों किया गया?
जवाब में नेहा पांचाल ने दिव्य भास्कर से कहा- अधिकारियों के पास करने के लिए बहुत काम होते हैं। इससे यह साफ होता है कि एसडीएम के अंतिम निर्णय के इंतजार करने के दृष्टिकोण ने अप्रत्यक्ष रूप से गोदाम में बेरोकटोक पटाखे बनाने की अनुमति दे दी थी। और 22 लोगों की मौत इसके नतीजे के रूप में हमारे सामने है।

गोदाम में भारी मात्रा में सुतली बम भी तैयार किए जा रहे थे।
10,000 से अधिक बम और पटाखे बनाए जा रहे थे सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पुलिस जांच के बाद पता चला कि दीपक ने गोदाम में इतना माल जमा कर रखा था कि उससे एक-दो महीने नहीं, बल्कि चार महीने से अधिक समय तक रोजाना 10 हजार से अधिक सुतली बम व अन्य पटाखे बनाए जा सकते थे। सामान्यतः नियमों के अनुसार 300 किलोग्राम से अधिक कच्चा माल भण्डारित नहीं किया जा सकता।
यदि एसडीएम अनुमति दे तो भी रेत और पटाखों में मिलाए जाने वाले सभी तत्वों सहित केवल 300 किलोग्राम विस्फोटक ही रखा जा सकेगा। लेकिन दीपक ने पटाखे बनाने के लिए अधिक से अधिक श्रमिकों को काम पर रखकर अधिक पैसा कमाने और पूरे उत्तर गुजरात में एकमात्र थोक व्यापारी बनने की तैयारी कर ली थी। पुलिस रिपोर्ट के बाद भी एसडीएम कार्यालय और उसके कर्मचारी जांच के लिए नहीं गए और इसी वजह से यह घटना घटी।

कई मजदूरों के शवों के अंग और गोदाम का मलबा उड़कर दूर-दूर तक जा गिरा था।
हादसे में जिंदा बचे मजदूर की जुबानी… इस दुर्घटना में राजेश नायक नामक मजदूर बच गया। उसने अपनी आंखों के सामने अपने साथी श्रमिकों को आग में जलते देखा। उनकी मौत की चीखें सुनीं, लेकिन कुछ नहीं कर सका।
विस्फोट के दिन का जो ब्यौरा राजेश ने पुलिस को दिया है वह चौंकाने वाला है। राजेश ने बताया- हमने 1 अप्रैल से ही पटाखे बनाना शुरू कर दिया था। करीब साढ़े नौ बजे मुझे प्यास लगी। हम लोग गोदाम के बाहर पानी का कूलर रखते थे। इसलिए मैं और मेरा भाई बिट्टू गोदाम का शटर थोड़ा सा खोलकर बाहर निकल आए। जब हमारे साथ मजदूर काम कर रहे थे। उसी समय अंदर अचानक जोरदार धमाका हुआ।
धमाका इतना भीषण था कि हम लोग भी बेहोश हो गए। थोड़ी देर बाद मेरी आंख खुली तो देखा कि गोदाम से आग और धुआं निकल रहा है। पटाखों के विस्फोट के बीच दो गोदाम के ढहने से श्रमिक मलबे में दब गए थे। विस्फोट से दीवारें भी टूट गईं। छत का एक हिस्सा मजदूरों पर गिर गया और इसी दौरान गोदाम में रखे पटाखों में विस्फोट होने लगा। मैं अंदर काम कर रहे अपने रिश्तेदारों की चीखें सुन सकता था, लेकिन उन्हें बचा नहीं सकता था।
शवों के अंग और मलबा उड़कर दूर-दूर तक जा गिरे था गोदाम में हुए विस्फोट के बारे में अब तक अलग-अलग रिपोर्ट और आंकलन सामने आए हैं। पुलिस सूत्रों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, एफएलएस के प्रारंभिक अनुमानों का हवाला देते हुए कहा गया कि यह गोदाम वह जगह थी, जहां पटाखे बनाए जा रहे थे। तभी, छत का एक हिस्सा विस्फोट के साथ ढह गया और हवा में विभिन्न ठोस पाउडर और रसायनों का बादल बन गया। इससे बड़ा विस्फोट हुआ। विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि गोदाम की छत, आसपास की दीवारें और यहां तक कि दूसरे प्लॉट में स्थित एक अन्य व्यक्ति के गोदाम की दीवार भी ढह गई। कई मजदूरों के शवों के अंग और गोदाम का मलबा उड़कर दूर-दूर तक जा गिरा था।

पहले ही अधिकारियों की राय को गंभीरता से लिया गया होता तो इतना बड़ा हादसा नहीं होता विस्फोट की घटना की निष्पक्ष जांच के नाम पर रेंज आईजी चिराग कोराडिया ने तत्काल एसआईटी गठित कर दी। पांच पुलिस अधिकारियों को नियुक्त किया है। जबकि सच्चाई का पता लगाने के लिए नियुक्त दो अधिकारी, डीएसपी सीएल सोलंकी और पुलिस अधिकारी तो पहले से ही इसकी सच्चाई से वाकिफ हैं। यदि उस समय इन अधिकारियों की राय को गंभीरता से लिया गया होता और सख्त कार्रवाई की गई होती तो शायद ऐसी त्रासदी नहीं होती और 22 लोगों की जान नहीं जाती।
बनासकांठा के एसपी अक्षय राज मकवाना ने दिव्य भास्कर से कहा- जब हम गए तो वहां कुछ नहीं था। रोशनी- वेंटिलेशन भी नहीं था। क्या यह देखना यूजीवीसीएल का काम नहीं है? अगर यह सब अवैध था तो उन्हें पानी का कनेक्शन कैसे मिला? क्या यह देखना नगरपालिका का काम नहीं है? क्या श्रम विभाग का यह काम नहीं है कि वह इस बात पर नजर रखे कि कहां 10 से ज्यादा मजदूर काम कर रहे हैं? क्या औद्योगिक सुरक्षा अधिकारी को जाकर जांच नहीं करनी चाहिए थी?

सरकारी कर्मचारियों की भूमिका स्पष्ट होगी? गुजरात में बड़ी त्रासदियों का सिलसिला कई वर्षों से जारी है। डीसा के इतिहास में कभी भी एक साथ इतने लोगों की मौत नहीं हुई, यहां तक कि अतीत में किसी प्राकृतिक आपदा में भी नहीं। हालाँकि, यह विस्फोट घटना एक विशेष कारण से पिछली घटनाओं से भिन्न है। पिछली बड़ी दुर्घटनाओं में सरकारी अधिकारी भी अपनी लापरवाही के कारण कानून के कोप का शिकार हुए हैं। लेकिन डीसा में 22 लोगों की मौत के बाद अभी तक एक भी अधिकारी को बर्खास्त नहीं किया गया है।
रेंज आईजी ने तत्काल पांच पुलिस अधिकारियों की एसआईटी गठित कर दी है। लेकिन, 22 लोगों की मौत के बाद भी बनासकांठा पुलिस अभी भी सरकारी अधिकारियों की लापरवाही का पता लगाने का इंतजार कर रही है।प्रवासी मजदूरों को जिले में काम करने के लिए लाया गया। लेकिन बनासकांठा जिला कलेक्टर ने इसके पंजीकरण की अधिसूचना जारी नहीं की है।
इस वजह से यह बात किसी की नजर में नहीं आई कि इतनी बड़ी संख्या में लोग पटाखा फैक्ट्री में आकर काम कर रहे हैं। यदि कलेक्टर ने अधिसूचना जारी कर दी होती और सर्किल इंस्पेक्टर नियमानुसार गोदाम में जांच के लिए गए होते तो शायद इतनी बड़ी घटना नहीं घटती। पुलिस ने वीडियोग्राफी के साथ एक मजदूर का आखिरी बयान दर्ज किया है, लेकिन इससे सरकारी नियमों को लागू न करने वाले सरकारी कर्मचारियों की भूमिका स्पष्ट होगी? यह अभी स्पष्ट नहीं है।