भोपाल में 8 और इंदौर में 11 स्टेशनों के लिए साइनेज डिजाइन किए जा रहे हैं।
मध्य प्रदेश के दो शहरों भोपाल और इंदौर के लोगों की सुविधा बढ़ाने के लिए मेट्रो ट्रेन परियोजना पर काम चल रहा है। इस मेट्रो स्टेशन के अंदर और बाहर के साइनेज को अहमदाबाद स्थित राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान (एनआईडी) द्वारा डिजाइन किया गया है।
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एनआईडी को यह प्रोजेक्ट कैसे मिला? साइनेज कैसे तैयार किया गया? कलर कंट्रास्ट और डिजाइन का फैसला कैसे फाइनल हुआ? एक स्टेशन में कितने साइनेज की आवश्यकता होती है? इस साइनेज के लिए कैसे रिसर्च की गई? वे कौन सी बातें हैं जिन पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया गया? ऐसे कई सवालों को लेकर दिव्य भास्कर ने एनआईडी के ग्राफिक्स डिजाइन विभाग के सदस्य और रिसर्च एंड डेवलपमेंट के अध्यक्ष डॉ. त्रिधा गज्जर से बातचीत की। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश…
जब हम किसी भी स्टेशन में प्रवेश करते हैं तो हमारे सामने बड़े-बड़े बोर्ड लगे हुए दिखाई देते हैं, जिन्हें टोटर्म कहा जाता है। इसके साथ ही वहां कई प्रकार के दिशा-निर्देश देने के लिए बोर्ड (संकेतक) भी लगाए जाते हैं। जैसे कि टिकट काउंटर कहां है? स्टेशन में प्रवेश करने के लिए मुझे किस रास्ते से जाना चाहिए और बाहर निकलने का रास्ता कहां है? आपातकाल के दौरान कहां से बाहर निकलें? इत्यादि। साइनेज सिर्फ टाइपोग्राफी या बोर्ड नहीं है, बल्कि यह शहर को भी प्रतिबिंबित करता है।
भोपाल में 8 और इंदौर में 11 स्टेशनों के लिए साइनेज शुरुआत में, भोपाल मेट्रो के लिए 8 विशिष्ट स्टेशनों के लिए साइनेज डिजाइन करने के लिए दिए गए थे। जिस पर काम जारी है। जबकि इंदौर में 11 मेट्रो स्टेशनों के लिए साइनेज तैयार किए जा रहे हैं।
एनआईडी अहमदाबाद ने भोपाल और इंदौर में शुरू की जाने वाली मेट्रो के लिए साइनेज प्रोजेक्ट पर काम शुरू करते समय यात्रियों को केन्द्र में रखते हुए साइनेज के लिए सर्वे कराया था । साइनेज को इस तरह बनाया जाना था कि लोग आसानी से देख सकें। यह भी सुनिश्चित किया गया कि यात्रियों को असुविधा से बचाने के लिए ये संकेत सही जगहों पर लगाए जाएं। इसका आकार ऐसा होना चाहिए कि लोग इसे आसानी से पढ़ सकें। साथ ही शहर को उसकी पहचान देने के लिए कौन से एलीमेंट्स जोड़े जाएं, इसका भी ध्यान रखा गया।

अलग-अलग थीम पर लेआउट तैयार किए गए भोपाल और इंदौर मेट्रो के साइनेज के लिए एनआईडी ने वहां के प्रसिद्ध स्थानों और प्रतीकों पर दो महीने तक रिसर्च की। इस शोध के आधार पर कॉन्सेप्ट तैयार किया गया। इनमें से एक कॉनसेप्ट प्रसिद्ध भीमबेटका चित्रकला पर आधारित थी। जबकि दूसरी सांची स्तूप से डवलप हुई। इस तरह, 3 से 4 अलग-अलग थीमों पर लेआउट तैयार किए गए। अधिकारियों को इसका प्रजेंटेशन दिया गया और फिर पूरी थीम फाइनल की गई।
वास्तविक स्टेशन का 3डी मॉडल बनाया गया जब साइनेज तैयार हो जाता है तो उसकी जांच करना जरूरी होता है। लेकिन भोपाल और इंदौर में मेट्रो स्टेशनों पर काम चल रहा था, जिसकी वजह से वास्तविक स्टेशन तैयार नहीं थे। इसलिए 3डी मॉडल बनाया गया। इस मॉडल में साइनेज के साथ-साथ वॉक-थ्रू भी शामिल था। जिसमें यह तय किया गया कि किन स्थानों पर कौन से साइनेज की जरूरत है। यह भी तय किया गया कि ये साइनेज किस स्थान पर लगाए जाएंगे। एक स्टेशन पर लगभग 200 से अधिक साइनेज होते हैं।

डॉ. त्रिधा गज्जर ने दिव्य भास्कर को इस प्रोजेक्ट के बारे में अधिक जानकारी दी
डॉ. त्रिधा गज्जर ने कहा- हमें सबसे पहला मेट्रो रेल के लिए अहमदाबाद का प्रोजेक्ट मिला था। इसमें स्टेशन साइनेज से लेकर इंटरचेंज स्टेशन साइनेज तक सभी साइनेज पर काम शामिल था। इसके बाद हमें अहमदाबाद और गांधीनगर के बीच मेट्रो ट्रेन के विस्तारित मार्ग पर स्थित स्टेशनों के लिए साइनेज डिजाइन करने का काम भी मिला।
डॉ. त्रिधा ने आगे बताया कि मैंने 2017 में अहमदाबाद मेट्रो परियोजना के सभी साइनेज के लिए काम किया था। इस काम को देखकर एमपी मेट्रो रेल के अधिकारी 2023 में एनआईडी आए और कहा कि अहमदाबाद की तरह हमें भी यह काम एनआईडी में ही कराना है।

भोपाल-इंदौर परियोजना अहमदाबाद से किस तरह अलग है? अहमदाबाद मेट्रो प्रोजेक्ट और भोपाल-इंदौर के मेट्रो प्रोजेक्ट के काम में अंतर बताते हुए त्रिधा ने कहा- अहमदाबाद मेट्रो परियोजना में हमें इसकी पहचान, लोगो और सभी स्टेशनों के लिए साइनेज डिजाइन करना था। लेकिन एमपी मेट्रो की पहचान पहले से ही बनी हुई थी, इसलिए हमें इसे बनाने की जरूरत नहीं पड़ी। लेकिन हमने उसी पहचान के आधार पर इंदौर और भोपाल मेट्रो के लिए साइनेज डिजाइन किए हैं। जब अहमदाबाद में स्टेशन साइनेज का निर्माण किया गया था, तब इतने सख्त नियम नहीं थे, इसलिए ब्रेल साइनेज का उपयोग नहीं किया गया था। लेकिन, इंदौर-भोपाल मेट्रो प्रोजेक्ट में किया गया। वर्तमान में भारत सरकार ब्रेल साइनेज को अनिवार्य बना रही है, जिससे कि नेत्रहीन लोग भी उसे छूकर जान सकें। रेलिंग और दीवार पर लगाया जाएंगे।

साइनेज कि डिजाइन के बारे में त्रिधा ने बताया कि पहले प्लॉट पर मार्किंग की जाती है, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि कौन से साइनेज कहां लगाए जाएंगे। इसकी दूरी पर भी ध्यान दिया जाता है कि 15 मीटर की दूरी से देखने पर साइनेज कैसा दिखेगा और 20 मीटर की दूरी से देखने पर कैसा दिखेगा।
उन्होंने आगे कहा कि साइनेज में सबसे महत्वपूर्ण चीज कलर कॉन्ट्रास्ट और उसका आकार है। दूसरा, हमने इसके लिए जो रंग चुने हैं, वे भी विषयगत हैं, जैसे सांची स्तूप और भीमबेटका से चुना गया ब्राउन कलर। इस डिजाइन में यूज किए जाने वाले रंग के लिए कलर ब्लाइंडनेस वाले लोगों का भी ध्यान रखा गया है, क्योंकि इसमें नारंगी और नीली रेखाएं हैं। ऐसी परिस्थितियों में कलर ब्लाइंडनेस वाले लोगों के देखने में कठिनाई होती है। इसीलिए कंट्रास्ट को इस तरह सेट किया गया है, ताकि ऐसे लोग भी आसानी से साइनेज पढ़ सकें।

वहीं, साइनेज के निर्माण में हमने एल्युमीनियम मिश्रित पैनल का प्रस्ताव दिया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह लागत प्रभावी भी है और इसका रखरखाव भी बहुत आसानी से किया जा सकता है। इस पैनल पर विनाइल चिपकाया जाता है। एक अनुमान के अनुसार, ये साइनेज की उम्र 10 वर्ष से अधिक है।
3डी मॉडल, स्केच और आउटपुट टीम की जरूरत है। इस काम पर कितनी टीमें काम कर रही हैं, इस बारे में त्रिधा ने बताया- हम स्टूडेंट्स को उनके फाइनल ईयर में ग्रेजुएशन प्रोजेक्ट देते हैं। इस प्रोजेक्ट में भी हमने ग्राफिक्स डिजाइनिंग के फाइनल ईयर के एक स्टूडेंट शशि को इस प्रोजेक्ट में शामिल किया है। इसके साथ ही 3D मॉडल और स्केच के लिए भी एक टीम और फाइनल आउटपुट के लिए भी एक टीम है। इस तरह इस प्रोजेक्ट में एक बड़ी टीम लगी हुई है।