चंडीगढ़ ड्रंकन ड्राइव मामले में जिला अदालत ने बड़ा फैसला सुनाते हुए सेक्टर-39 निवासी युवक अक्षय को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि सिर्फ मुंह से शराब की गंध आना यह साबित नहीं करता कि व्यक्ति नशे में था। इस केस में न तो युवक का मेडिकल हुआ और न ही खून या
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यह मामला जून 2019 का है। सेक्टर-17 थाना पुलिस ने सेक्टर-22/23 लाइट प्वाइंट पर एक कार को रोका। आरोप था कि ड्राइवर नशे में था और उसने एक वाहन को टक्कर भी मार दी थी। युवक को हिरासत में लिया गया और उसके खिलाफ मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 185 के तहत केस दर्ज किया गया।
पुलिस ने 6 सितंबर 2019 को अदालत में चालान पेश किया और ट्रायल शुरू हुआ, जो चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट सचिन फौगाट की अदालत में करीब 6 साल तक चला। लेकिन ट्रायल के दौरान पुलिस ये साबित नहीं कर सकी कि युवक ने वास्तव में शराब पी थी।
डॉक्टर की राय से नहीं ठहराया जा सकता दोषी
युवक का न तो ब्लड टेस्ट हुआ, न ही यूरीन सैंपल लिया गया। सिर्फ डॉक्टर ने अपने अनुभव के आधार पर कहा कि युवक नशे में लग रहा था।अदालत ने साफ कहा – “मुंह से शराब की गंध का मतलब यह नहीं कि व्यक्ति शराब के नशे में है। मेडिकल जांच के बिना सिर्फ डॉक्टर की राय से किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।”
केस की सुनवाई के दौरान पुलिसकर्मियों ने यह भी कबूल किया कि उन्हें यह जानकारी नहीं थी कि कितनी शराब पीने पर चालान कटता है।जबकि नियम के अनुसार, अगर 100 मिलीलीटर खून में 30 मिलीग्राम से ज्यादा एल्कोहल हो, तभी व्यक्ति को नशे में माना जाता है।
वकील बोले – पुलिस ने झूठा केस बनाया
अक्षय की ओर से केस लड़ने वाले एडवोकेट अमरजीत सिंह सिद्धू ने कहा कि यह मामला झूठा था। पुलिस ने सिर्फ शक के आधार पर युवक को फंसा दिया।सेक्टर-22 सिविल अस्पताल की डॉक्टर कृति देवनोरा, जो उस समय की इमरजेंसी मेडिकल ऑफिसर थीं, ने भी अदालत में माना कि युवक के कोई ब्लड या यूरिन सैंपल नहीं लिए गए थे।