चंडीगढ़ नगर निगम गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहा है। 1 अप्रैल से 15 अक्टूबर तक के लेखा-जोखा के अनुसार, निगम के खाते में अब केवल 12-13 करोड़ रुपए ही बचे हैं। यदि जल्द प्रशासन से ग्रांट नहीं मिली, तो कर्मचारियों का वेतन देना भी मुश्किल हो जाएगा।
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इस बीच, यह चौंकाने वाली बात सामने आई है कि निगम अनुबंध पर रखे कर्मचारियों को नियमित कर्मचारियों से ज्यादा सैलरी दे रहा है। इसके अलावा, छोटे कार्यों पर 59 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए हैं। कोविड-19 के चलते बनाए गए अस्थायी दफ्तरों पर 70 लाख रुपए खर्च हुए, जो अभी भी चल रहे हैं।
निगम का वित्तीय संकट गहराया निगम का कुल खर्च वित्त वर्ष 2024-25 के लिए लगभग 1110 करोड़ रुपए है, जबकि अब तक खुद की कमाई और प्रशासन से मिले ग्रांट से सिर्फ 910 करोड़ रुपए ही जुटाए जा सके हैं। इसका मतलब है कि निगम को 200 करोड़ रुपए के घाटे का सामना करना पड़ रहा है। अगर जल्द 200 करोड़ की सहायता नहीं मिली, तो कर्मचारियों का वेतन देना भी मुश्किल हो जाएगा।
निगम के खाते में इस वक्त 35 करोड़ रुपए हैं, लेकिन इसमें से 22 करोड़ रुपए एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के लिए आरक्षित हैं। ऐसे में वास्तविक रूप से निगम के पास केवल 12-13 करोड़ रुपए ही बचे हैं।
विकास कार्य रुके, सिर्फ इमरजेंसी काम हो रहे वित्तीय संकट के चलते नगर निगम ने अधिकांश विकास कार्य रोक दिए हैं। सिर्फ इमरजेंसी और जरूरी कार्यों के ही टेंडर जारी किए जा रहे हैं। शहर के विभिन्न वार्डों में छोटे-छोटे काम भी पैसों की कमी की वजह से ठप पड़े हैं। सड़कों की हालत भी खस्ता हो चुकी है, लेकिन पैसों की कमी की वजह से उनकी मरम्मत भी नहीं हो पा रही।
1 अप्रैल से 30 सितंबर तक निगम ने कुल 173.25 करोड़ रुपए कमाए, जिसमें सबसे ज्यादा 87.85 करोड़ रुपए पानी और सीवरेज बिलों से आए। इसके अलावा, संपत्ति कर से 45.25 करोड़ और पार्किंग से 5.46 करोड़ रुपए की कमाई हुई।
वित्तीय संकट से निपटने के लिए 24 अक्टूबर को पंजाब के राज्यपाल और चंडीगढ़ के प्रशासक गुलाबचंद कटारिया ने एक बैठक बुलाई है, जिसमें निगम की आर्थिक स्थिति पर चर्चा होगी और संभावित समाधान तलाशे जाएंगे।