जंगलों से तेंदूपत्ता समेत वनोपज संग्रह करने वाले आदिवासी परिवारों को इस साल जूते, चप्पल, साड़ी, केटली और छाता का वितरण नहीं किया जाएगा। मप्र लघु वनोपज संघ की वित्त वर्ष 2025-26 में तेंदूपत्ता संग्राहकों को जूते-चप्पल, साड़ी, केटली और छाता वितरण की कोई
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इसलिए सरकार की ओर से लघु वनोपज संघ को इस संबंध में कोई निर्देश ही नहीं दिए गए हैं। वन विभाग के मुताबिक प्रदेश में 15.5 लाख परिवार तेंदूपत्ता संग्रह का काम करते हैं। इन परिवारों की करीब 21 लाख महिलाएं और लगभग इतने ही पुरुष हैं, जिन्हें मप्र राज्य लघु वनोपज संघ तेंदूपत्ता संग्रह के पारिश्रमिक के अलावा इनकी बिक्री सो होने वाली कमाई का 75 फीसदी राशि बोनस के रूप में बांटती है।
अपनी आजीविका के लिए वन विभाग के राज्य लघुु वनोपज संघ पर निर्भर यह परिवार चुनावी साल में राजनीतिक रूप से इतने अहम हो जाते हैं कि सरकारें इन्हें खुश करने के लिए तमाम प्रयास करती है।
प्रदेश में वर्ष 2018 में चरण पादुका योजना शुरू की थी, जिसमें सबसे पहले तेंदूपत्ता संग्राहकों को करीब 260 करोड़ रुपए खर्च कर पहली बार जूते-चप्पल, साड़ी और केटली बांटी गई थी। लेकिन जूते और चप्पलों की गुणवत्ता पर विवाद खड़ा हुआ तो सरकार ने पुराने जूते-चप्पल वापस लेकर दूसरे जूते चप्पल बांटे थे।
वर्ष 2019-20 में 15 महीने की कमलनाथ सरकार ने तेंदूपत्ता संग्राहकों को जूते-चप्पल के बजाए कंबल बांटने की योजना लेकर आई, लेकिन जब तक कंबल बंट पाते, तब तक सरकार ही चली गई। आखिरी बार वर्ष 2023 में शिवराज सिंह के मुख्यमंत्री रहते तेंदूपत्ता संग्राहकों को जूते-चप्पल, साड़ी और केटली का वितरण किया गया था, जबकि छाता खरीदने के लिए उनके बैंक खातों में 200 रुपए डीबीटी के जरिए ट्रांसफर किए गए थे।
शुरू हो गया तेंदूपत्ता सीजन
प्रदेश में कुछ जिलों में तेंदूपत्ता संग्रह का काम शुरू हो गया है। प्रदेश में हर साल औसतन 16 से 20 लाख मानक बोरा तेंदूपत्ता का संग्रह होता है। एक मानक बोरे में एक हजार गड्डी होती है, हर गड्डी में 50 तेंदूपत्ते होते हैं। अप्रैल में तेंदूपत्ता संग्रह पीक पर होगा। राज्य सरकार आदिवासियों को 4 हजार रुपए प्रति मानक बोरा की दर से तेंदूपत्ता का भुगतान करेगी। 2023 तक यह राशि 3 हजार मानक बोरा और 2022 में 2.5 हजार रुपए मानक बोरा थी। प्रदेश में तेंदूपत्ता का कारोबार 2 से 2.5 हजार करोड़ का है।
चुनाव से कोई लेना-देना नहीं ^ तेंदूपत्ता संग्रह करने वाले परिवारों को इस साल जूते-चप्पल बांटने का कोई प्रस्ताव नहीं हैं। वैसे यह हर साल नहीं बांटा जाता, न ही इसका चुनाव से कोई लेना देना है। यदि शासन स्तर से कोई निर्देश मिलेंगे तो आगे कार्यवाही की जाएगी। – विभाष ठाकुर, एमडी, राज्य लघु वनोपज संघ