Monday, June 9, 2025
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छात्रवृत्ति घोटाला: 13 साल पुराने मामले में अफसरों की बाजीगरी का अजब मामला – Raipur News



13 साल पुराने छात्रवृति घोटाले में अफसरों की बाजीगरी का अजब मामला उजागर हुआ है। बाबू को एक ऐसे मामले में आरोपी बना दिया गया, जिसके लिए सीधे तौर पर अफसर जिम्मेदार नजर आ रहे हैं। बाबू को जिस मामले में बर्खास्त किया गया है, उसमें पैसे का घोटाला भी नहीं

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इसके बावजूद बर्खास्त बाबू से लगभग 31 लाख रुपए वसूलने का आदेश जारी कर दिया गया है। जबकि, छात्रवृति राशि का अनुमोदन करने वाले तीन अफसर बरी कर दिए गए हैं। खास बात यह है कि 4 सदस्यीय जांच समिति ने उच्चाधिकारियों को दोषी माना था। इसके बाद भी आज तक कार्रवाई नहीं हुई है।

इस पूरे मामले में भास्कर ने पड़ताल की। नोटशीट की कॉपी हासिल कर विशेषज्ञों से भी बात की। नोटशीट में अफसरों की टीप से अफसरों को बचाने यह पूरा खेल उजागर हुआ है। दरअसल, 2011-12 में कॉलेज ऑफ बायोटेक्नोलॉजी रायपुर ने पोस्ट मैट्रिक पढ़ने वाले छात्रों के लिए आवेदन दिया।

सहायक आयुक्त आदिवासी विकास रायपुर कार्यालय में सहायक ग्रेड 2 राजनारायण पाण्डेय ने उच्चाधिकारियों के समक्ष परीक्षण एवं स्वीकृत हेतु प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इसमें साफ तौर पर उन्होंने संस्था के प्रस्ताव का परीक्षण करने की टीप लिखी।

उच्चाधिकारियों ने संस्था की जांच के बाद उसके सही होने की पुष्टि की और राशि स्वीकृत करने की अनुशंसा की। इसके बाद संस्था को साल भर में 7 बार अलग- अलग राशि छात्रवृत्ति के रूप में स्वीकृत की गई। कुल 31 लाख 37 हजार 810 रुपए की राशि का चेक अलग- अलग महीनों में जारी किया गया।

बाबू की अपील पर नहीं हुई सुनवाई: बाबू राजनारायण पाण्डेय को 5 फरवरी 2013 को निलंबित किया गया। 1 मार्च 2013 को आरोप पत्र जारी किया गया। इसके बाद 30 मार्च 2013 को विभागीय जांच बैठा दी गई। अपर कलेक्टर के नेतृत्व में बनी 4 सदस्यीय जांच समिति ने 6 दिसंबर 2016 को अपनी रिपोर्ट दी। इसमें बाबू पर उपेक्षा के कारण शासन को लगभग 31 लाख रुपए के आर्थिक नुकसान की बात कही गई।

साथ ही इस नुकसान की भरपाई के लिए बाबू से वसूली का आदेश दिया गया। इस आदेश के खिलाफ बाबू ने 3 अप्रैल 2017 को संचालनालय में आयुक्त के पास अपील किया। लेकिर 7 मई 2018 को अपील को खारिज कर दिया गया। बाबू ने इसके खिलाफ एक बार फिर विभागीय अपील की लेकिन 16 मई 2025 को जारी आदेश में पूर्व के आदेश को यथावत रखा गया है।

{संस्था ने राशि वापस लौटा दी फिर भी वसूली का आदेश : अफसरों ने बताया कि दिसंबर 2012 में कॉलेज ऑफ बायोटेक्नोलॉजी रायपुर ने 57 छात्रों के लिए 17,80,490 रुपए के लिए आवेदन दिया। स्वीकृति के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ, जो संस्था जांच में फर्जी पाया गया। संस्था ने जारी पूरी राशि वापस लौटा दी है। फिर भी बाबू से वसूली का आदेश जारी किया गया है।

इनकी थी परीक्षण की जिम्मेदारी: प्रस्ताव की स्वीकृति, जांच और भुगतान की जिम्मेदारी नोडल अधिकारी, सहायक आयुक्त और कनिष्ठ लेखाधिकारी की थी। संस्था के प्रस्ताव को अनुमोदित करने से पहले संस्था की जांच कराई जानी चाहिए थी, लेकिन जांच नहीं कराई गई।

नोटशीट में अफसरों ने ये लिखा

{ प्रस्ताव का परीक्षण करने वाले तीन नोडल अधिकारियों डीएस ध्रुव, पी सेनानी और बीएल कुर्रे ने नोटशीट में यह टीप लिखा… { उपरोक्त संस्था की छात्र- छात्राओं का आवेदन पत्र A परीक्षण किया। परीक्षणोपरान्त सही पाया गया। 16 छात्रों की कुछ धनराशि ~ 4,88,960 स्वीकृति हेतु प्रस्तुत। राशि स्वीकृत करने के लिए कनिष्ठ लेखाधिकारी की टीप… {नोडल अधिकरियों द्वारा दी गई टीप के अनुसार छात्रवृत्ति राशि उक्त संस्था को स्वीकृत किया जाना है।

प्रस्ताव के परीक्षण से लेकर चेक जारी करने तक ऐसे बढ़ी फाइल {राजनारायण पाण्डेय, सहायक ग्रेड-2 ने कॉलेज आफ बायोटेक्नोलॉजी के आवेदन के आधार पर प्रस्ताव प्रस्तुत किया। {तीन नोडल अधिकारी डीएस ध्रुव, पी सेनानी, बीएल कुर्रे ने छात्रवृत्ति प्रस्ताव का परीक्षण किया और स्वीकृति के लिए नस्ती आगे बढ़ा दी। { तीन कनिष्ठ लेखाधिकारी शोभा मुगेर, पीएस उइके तथा जीआर बारबुधे ने चेक जारी किया। सहायक आयुक्त एवं कनिष्ठ लेखा अधिकारी ने चेक में हस्ताक्षर कर राशि जारी की। {कनिष्ठ लेखाधिकारी की टीप पर सहायक आयुक्त की सिफारिश पर अपर कलेक्टर ने राशि स्वीकृत की।

रिपोर्ट में ये अफसर भी दोषी मामले में गठित जांच समिति ने तीन नोडल अधिकारी डीएस ध्रुव, पी सेनानी और बीएल कुर्रे, सहायक आयुक्त आरके सिदार और तत्कालीन प्रभारी सहायक संचालक को जिम्मेदार ठहराया है। तीन नोडल अधिकारियों को शोकॉज जारी किया गया है। बाद में तीनों अफसरों को सरकारी गवाह बनाकर बाबू पर दोष मढ़ दिया गया। 2019 में सहायक आयुक्त व तत्कालीन प्रभारी सहायक संचालक के खिलाफ जांच बिठा दी गई।

बाबू का काम प्रस्ताव को पुटअप करना होता है। परीक्षण का काम उसके ऊपर के अधिकारियों का होता है। विभागों में अकाउंट्स अफसर को वेतन इसीलिए दिया जाता है कि जो भी प्रस्ताव आया है, उसके गुण-दोष का परीक्षण करे। इसके बाद उसे स्वीकृति के लिए उच्चाधिकारियों को भेजें। -डॉ सुशील त्रिवेदी, रिटायर्ड आईएएस, छत्तीसगढ़

मामले में अफसरों पर भी कार्रवाई की गई है। डीएस ध्रुव, बीएल कुर्रे और पी सेनानी को शोकॉज जारी किया गया था। तत्कालीन सहायक आयुक्त आरके सिदार और तत्कालीन प्रभारी सहायक संचालक एसएल देवांगन को खिलाफ विभागीय जांच चल रही है। -संजय गौर, अपर संचालक, आदिम जाति विकास विभाग

बाबू का दर्द – दोषियों को ही बनाया गवाह

मैंने संस्था के प्रस्ताव को परीक्षण/ सत्यापन के लिए उच्चाधिकारियों के पास प्रस्तुत किया था। साल में एक बार शैक्षणिक संस्था का परीक्षण/ सत्यापन का नियम है। लेकिन उच्चाधिकारियों ने बिना परीक्षण/ सत्यापन के ही छात्रवृत्ति की मंजूरी और भुगतान का निर्णय ले लिया। इसके लिए दोषी अफसरों को सरकारी गवाह बनाकर दोष मुझ पर मढ़ दिया गया। – राज नारायण पाण्डेय, रिटायर्ड सहायक ग्रेड 2 कर्मचारी



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