Sunday, June 1, 2025
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जजों की नियुक्ति मामले में केंद्र सरकार से मांगा जवाब: हाईकोर्ट ने पीआईएल पर मामला सुना, 21 जुलाई को होगी सुनवाई – Prayagraj (Allahabad) News


इलाहाबाद हाईकोर्ट में जजों के रिक्त पदों को भरने की मांग में दाखिल जनहित याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। अदालत इस मामले में अब 21 जुलाई को सुनवाई करेगी। यह आदेश न्यायमूर्ति वी.के. बिड़ला और न्यायमूर्ति जितेन्द्र कुमार सिन्हा की डबल बेंच ने अ

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याचिका में कहा गया है कि देश के सबसे बड़े हाईकोर्ट में 11.5 लाख से अधिक मामले लंबित हैं। जबकि जजों के स्वीकृत पद 160 हैं। इस समय लगभग 87 न्यायाधीश कार्यरत हैं। याचिका में जजों के रिक्त पदों को भरने के लिए समयबद्ध, पारदर्शी और उत्तरदायी तंत्र की मांग की गई है। यूपी की जनसंख्या के अनुपात में जजों की स्वीकृत संख्या बढ़ाने की भी अपील की गई है। कोर्ट ने कहा कि जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया जारी है। इसलिए मामले की सुनवाई के लिए 21 जुलाई की तारीख नियत कर दी है।

जिला अदालतों, हाईकोर्ट में मुकदमों की सुनवाई को लेकर तारीख पर तारीख का मुद्दा एक जमाने से चर्चा का विषय बना है।

निचली अदालतों में तो पीढ़ियां गुजर जाती हैं, अपने मुकदमे की सुनवाई में, ऐसी मिसालें लगातार सामने आती रही हैं। सुप्रीम अदालत, हाईकोर्ट इसे संजीदा भी रही हैं।

अब इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित मुकदमों का मामला तूल पकड़ रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन इसे लेकर कई बार आंदोलन चला चुका है। वकीलों का गुस्सा भी जग जाहिर है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में यूपी के अधिकतर जिलों के मामले सुनवाई के लिए लटके हैं। इस गंभीर मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल हुई।

इस संजीता मामले पर भी तारीख लगी। कई जजों ने तो खुद को इस केस से अलग करते हुए सुनवाई से इनकार कर दिया। अब पीआईएल का क्या होगा यह चर्चा का विषय है।

हैरत की बात है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस वक्त 11.50 लाख मुकदमों की सुनवाई लंबित हो। ऐसे में यूपी के तमाम जिलों से आने वाले वादकारियों की स्थिति क्या होगी। यह अपने आप में सवाल है।

संवैधानिक रूप से बात करें तो इलाहाबाद हाईकोर्ट में जजों के पदों की संख्या अधिकृत रूप से 160 होनी चाहिए। जबकि मौजूदा वक्त में जजों की संख्या 86 के करीब है। इसे लेकर ही हंगामा है। जजों की कमी की वजह से मुकदमों की सुनवाई लटक जाती है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस भी क्या करें एक एक कोर्ट रूम में 100 से अधिक केस लगते हैं। वक्त के दरमियान सुनवाई होती है। फिलहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट में 100 प्रतिशत के मुकाबले 54 प्रतिशत स्टेंथ के हिसाब से सुनवाई होती है।

हाईकोर्ट की ऐतिहासिक सुनवाई की घड़ी आई

खाली कुर्सियां, 11 लाख 50 हजार से ज़्यादा मुकदमे, और 54% क्षमता पर काम 30 मई को न्यायिक रिक्तियों पर PIL पर होगी निर्णायक सुनवाई।

देश के सबसे बड़े हाईकोर्ट में न्यायिक पदों की भारी कमी और मुकदमों के बढ़ते अंबार पर दायर बहुप्रतीक्षित जनहित याचिका (PIL) अब 30 मई, शुक्रवार को जस्टिस वीके बिड़ला और जस्टिस जितेन्द्र कुमार सिन्हा की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की गई है। यह मामला कोर्ट नंबर 43 में सुना जाएगा।

यह महत्वपूर्ण सुनवाई ऐसे समय पर हो रही है जब 11.50 लाख से अधिक मामले लंबित हैं, और कोर्ट की कार्यशील क्षमता केवल 54% पर है। यह याचिका, वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश त्रिवेदी द्वारा दायर की गई है।

जिनकी ओर से वकील शाश्वत आनंद और सैयद अहमद फैजान पेश हो रहे हैं, और वरिष्ठ अधिवक्ता एस.एफ.ए. नकवी ने बहस की अगुआई की है। याचिका में न सिर्फ रिक्त पदों को भरने के लिए समयबद्ध, पारदर्शी और उत्तरदायी तंत्र की मांग की गई है, बल्कि उत्तर प्रदेश की जनसंख्या के अनुपात में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या बढ़ाने की भी अपील की गई है।

पांचवी बार सूचीबद्धता में

मामले की सुनवाई में पहले ही चार बार बाधा आ चुकी है-कभी न्यायाधीशों की अस्वीकृति, तो कभी गलत खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्धता। 28 मई को पांचवी बार, यह मामला गलती से मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध हो गया, जबकि मुख्य न्यायाधीश पहले ही इस मामले से स्वयं को अलग कर चुके थे। तत्पश्चात, उन्होंने इसे उपयुक्त खंडपीठ को सौंप दिया, जिससे अब 30 मई को सुनवाई सुनिश्चित हो गई है।

न्यायपालिका की आत्मा को झकझोर देने वाला मुद्दा

जनवरी 2025 में जब यह याचिका दायर हुई थी, तब हाईकोर्ट में मात्र 79 न्यायाधीश कार्यरत थे-जो कुल 160 की स्वीकृत संख्या का 49% था। यद्यपि अब यह संख्या बढ़कर 87 हुई है, फिर भी यह केवल 54% कार्यक्षमता पर संचालन कर रहा है।

पिछली सुनवाई में, जब यह मामला जस्टिस एम.सी. त्रिपाठी की खंडपीठ के समक्ष था, उन्होंने इसे “गंभीर संवैधानिक मुद्दा” मानते हुए राज्य सरकार और हाईकोर्ट प्रशासन से स्पष्ट निर्देश मांगे थे। लेकिन हाईकोर्ट कॉलेजियम में शामिल होने के कारण, उन्होंने भी न्यायिक शुचिता हेतु खुद को अलग कर लिया।

क्यों है यह सुनवाई निर्णायक?

• यह महज एक याचिका नहीं, न्याय तक पहुँच के मौलिक अधिकार का सवाल है।

• यह सुनवाई तय कर सकती है कि देश की सबसे बड़ी अदालत कैसे अपनी न्यायिक जिम्मेदारियां पूरी करेगी।

• पूरे देश की नज़र इस पर टिकी है — बार, बेंच और आम जनता की भी।

यदि शुक्रवार को न्यायालय कोई ठोस दिशा देता है, तो यह न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश के लिए संस्थागत सुधार का प्रारंभिक बिंदु बन सकता है।



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