मध्य प्रदेश में 6 प्रमुख विभागों समेत 18 से ज्यादा ऐसे सरकारी उपक्रम हैं, जो अपनी उपयोगिता और कार्यक्षमता में फेल साबित हो चुके हैं। सिर्फ राजनीतिक नियुक्तियों और अफसर-कर्मचारियों के वेतन व्यवस्था तक ये सीमित रह गए हैं। इनमें आनंद विभाग, प्रवासी भारत
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आनंद विभाग की ही बात करें तो इसका गठन सरकार ने समाज में खुशी और सकारात्मकता बढ़ाने के उद्देश्य से किया था। अब यह विभाग सिर्फ अध्यक्ष, सचिव और अन्य अफसरों के लिए लाखों के वेतन तक सीमित रह गया है। इसमें 30 कर्मचारी हैं, जिनमें अध्यक्ष, सीईओ (सचिव स्तर), अनुसंधान निदेशक, समन्वय निदेशक, लेखा अधिकारी, अनुसंधान सहायक, कनिष्ठ सहायक और चपरासी शामिल हैं।
विभाग के अध्यक्ष को हर महीने 1.50 लाख रुपए वेतन मिलता है, जबकि अन्य कर्मचारियों का वेतन 15,000 रुपए से शुरू होता है। हालांकि, इसका काम अब केवल मंत्रालय और मंत्री स्थापना से जुड़े अफसरों की यात्राओं तक सीमित हो गया है। कांग्रेस सरकार ने इसका नाम अध्यात्म विभाग किया था। भाजपा सरकार बनी तो नाम फिर से आनंदम हो गया। लेकिन हालत वही रहे।
जिलेवार नगरीय निकायों में 30972 अफसर और कर्मचारी हैं, जिनमें मैदानी काम करने वाले कर्मचारी श्रमिक 77624 हैं। इंदौर जिले में सबसे ज्यादा 3384 कर्मचारी हैं, जबकि भोपाल में 2820 कर्मचारी हैं। इन निकायों में 11 कमिश्नर भी हैं।
ग्रामीण स्थानीय निकायों में जिला,जनपद पंचायत एवं ग्राम पंचायत में 5413 कर्मचारी नियमित हैं। सीधी जिले में सबसे ज्यादा 434 कर्मचारी कार्यरत हैं, जबकि दूसरे स्थान पर भिंड जिला है, जहां 363 कर्मचारी कार्यरत हैं। निवाड़ी में सबसे कम 5 कर्मचारी कार्यरत हैं।
प्रदेश की 32 अर्द्धशासकीय संस्थाओं में कुल 5094 कर्मचारी हैं जिनमें 895 अफसर हैं, इनमें 60 अफसर तो ऐसे है जिन्हें 2.50 लाख रुपए तक वेतन मिल रहा है
हैरत – ये राजनीतिक नियुक्तियों का गढ़… इसलिए कर्ज लेकर इन्हें चला रही है सरकार; 3 साल में 65 उपक्रमों पर 25 हजार करोड़ खर्च
65 उपक्रमों का हिसाब.. 3 साल में 2014 से 17 के बीच सरकार ने अपनी ओर से 65 उपक्रमों को 25,951 करोड़ रुपए लगाए और इसमें राज्य की और अन्य जगहों से कर्ज की राशि 36,422 करोड़ थी। इसमें अन्य 8037 करोड़ रुपए भी शामिल थे। इस तरह तीन सालों में 54,559 करोड़ रुपए का निवेश हुआ।
बजट… घुम्मकड़ जातियों के लिए 18 हजार रु. दिए अर्द्ध घुम्मकड़ विमुक्त जाति विभाग की स्थिति इससे भी बदतर है। 51 घुम्मकड़ जातियों के विकास के लिए बने इस विभाग को सप्लीमेंट्री बजट में महज 18,000 रु. आवंटित किए गए। लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग का गठन सरकारी संपत्तियों के प्रबंधन व बिक्री के लिए किया गया था। अब यह विभाग केवल संपत्तियों को बेचने तक सीमित है।
परिवहन निगम जैसे विभाग खत्म होने के बाद भी चल रहे • मप्र विपणन संघ में सर्वाधिक 666 कर्मचारी हैं, जबकि परिसमापन प्रक्रिया पूरी हो गई है। • सड़क परिवहन निगम के समापन की प्रक्रिया 2005 में शुरू हुई, पर अब भी अध्यक्ष, एमडी व 18 अफसर-कर्मचारी तैनात। • प्रवासी भारतीय का काम विदेश में बसे भारतीयों से जुड़ाव, निवेश आकर्षित करना था। यह काम औद्योगिक प्रोत्साहन विभाग कर रहा।
घाटे वाले 18 उपक्रम, इनमें राज्य के 990 करोड़ रुपए लगे • चर्म विकास निगम, मप्र राज्य सेतु निर्माण, एमपीआरएल कोल लिंक लिमिटेड, एमपी मानिट माइनिंग कंपनी, एमपीजेपी मिनरल्स, सिंचाई निगम लिमिटेड जैसे 18 उपक्रम हैं। ये सरकार के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहे हैं। इनका रजिस्ट्रेशन कंपनी मामलों के अंतर्गत केंद्र से हुआ है। इनमें सरकार की 990 करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि लगी हुई है।