गुजरात के अहमदाबाद की ओढव सिटी। तारीख थी 3 जून 2017, रात के 8 बज रहे थे। 34-35 साल का दुबला-पतला एक शख्स तेज कदमों से चल रहा था। उसके कंधे पर कपड़े का झोला था। अचानक वह मकान नंबर D/147 के पास रुक गया। इधर-उधर देखा और मन में बुदबुदाया, ‘आसपास कोई दिख
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गहरी सांस लेते हुए उसने दरवाजे की घंटी बजाई। अंदर से कोई आवाज नहीं आई। उसने एक बार और घंटी बजाई। इस बार भी कोई आवाज नहीं आई। वह सोचने लगा- ‘लगता है आज प्लान फेल हो जाएगा। कोई अंदर नहीं है शायद।’
तभी एक बुजुर्ग महिला बोली- ‘आज बड़ी जल्दी आ गए तुम। आ रही हूं, रुक जा। दाल बना रही थी।’
इतना सुनते ही वह आदमी छिपते हुए दरवाजे के बगल में खड़ा हो गया। करीब 55 साल की एक महिला साड़ी का पल्लू लपेटते हुए दरवाजा खोली और कहा- ‘तुम… तुम हो… मुझे लगा वो है। अब क्या है तुम्हारा यहां, जो आए हो।’
महिला की आवाज अटकने लगी। वह हकलाने लगी। उस आदमी ने जोर से कुहनी से उसे धक्का दिया और अंदर घुस गया। कहने लगा- ‘बहुत बीमार रहती हो न अम्मा। कई दिनों से अस्पताल भी नहीं आ रही हो। मैंने सोचा घर जाकर ही इलाज कर देता हूं।’
महिला खीझते हुए बोली-
वो आता ही होगा। इस बार तुम बचोगे नहीं। जरा ठहर जाओ।’
वो आदमी गुस्से से लाल हो गया। उसका शरीर कांपने लगा। आंख दिखाते हुए बोला, ‘वो क्या कर लेगा मेरा? आज देख, कैसे तुम दोनों को ठिकाने लगाता हूं।’

बुजुर्ग महिला के साथ बहस करता हुआ 34-35 साल का शख्स। स्केच- संदीप पाल
उस आदमी से झोले से कुल्हाड़ी निकाली और उसके बेंत से महिला के सिर पर जोर से वार किया। महिला वहीं बेहोश हो गई। उसने कुल्हाड़ी फर्श पर फेंकी और खिड़की की तरफ भागा। झांककर देखा तो आसपास कोई नहीं था। उसने झट से खिड़की बंद कर दी। हांफता हुआ आया और कुल्हाड़ी उठाकर महिला के सिर पर दनादन वार करने लगा। महिला का सिर टुकड़ों में बंट गया।
पूरे फर्श पर खून ही खून दिख रहा था। दीवार पर जहां तहां खून के छींटे। उसके कपड़ों पर भी खून के धब्बे लग गए। उसने अपनी शर्ट की बांह फोल्ड की और चेहरे पर लगा खून पोंछ लिया।
अब उसने महिला की टांग पकड़ी और घसीटते हुए किचन में ले गया। फिर दौड़ते हुए हॉल की तरफ गया। सामने रस्सी पर कुछ साड़ियां सूखने के लिए रखी थीं। उसने तेजी से एक साड़ी खींची और किचन में आ गया।
लाश को साड़ी में लपेटने लगा, लेकिन वह पूरी लाश नहीं लपेट पाया। वह दोबारा हॉल में गया। इस बार अपने झोले से चाकू और गड़ासा निकाला और तेजी से किचन में आ गया। महिला का सिर अपनी गोद में रखा और इत्मीनान से उसकी गर्दन रेतने लगा। कुछ देर में गर्दन कट कर लटक गई।
अब उसने गड़ासा उठाया और लाश के दाहिने हाथ पर जोर से वार किया। आधी बांह कट गई। उसने फिर से गड़ासा चलाया। इस बार हाथ के दो टुकड़े हो गए। इसी तरह उसने बायां हाथ भी काट डाला।
इसके बाद वो फर्श पर बैठकर सुस्ताने लगा। फिर उठा, चेहरे से पसीना पोंछा और गड़ासा उठा लिया। पूरी ताकत से लाश के दाहिने पैर पर वार किया। खून के छींटे उसकी आंखों पर पड़े। उसने अपनी शर्ट से आंख पोंछी और पूरी ताकत से एक के बाद एक कई वार किए। पैर के दो टुकड़े हो गए। इसी तरह उसने बाएं पैर के भी दो टुकड़े कर डाले।

बुजुर्ग महिला की हत्या करने के बाद उसके शरीर के टुकड़े करता कातिल। स्केच- संदीप पाल
अब उसने साड़ी बिछाई और उस पर एक-एक करके लाश के टुकड़ों को रख दिया। चारों तरफ से साड़ी लपेटी और कसकर गांठ बांध दी। अब वो गठरी को उठाने लगा, लेकिन उठा नहीं पाया। फिर उसने गठरी का एक सिरा पकड़ा और उसे खींचते हुए किचन में बने सीमेंट की रैक के नीचे ले जाकर रख दिया।
उसके हाथ खून से सने हुए थे। दोनों हाथ झटकते हुए बुदबुदाया, ‘जब भी उससे संबंध बनाता, ये बीच में आ जाती थी। अब इस #@$%b को रास्ते से हटा दिया।’
इसी बीच दरवाजे की घंटी बजी। उस शख्स ने मुड़कर देखा, घड़ी में रात के 10 बज चुके थे। वो लगभग दौड़ते हुए किचन में गया। नल खोलकर हाथ-पैर धोया। फिर जल्दी से जाकर दरवाजा खोला।
सामने 36 साल का एक आदमी खड़ा था। वह बुजुर्ग महिला का बेटा था। दरवाजे पर उस शख्स को देखते ही वो घबरा गया। बोला- ‘तुम यहां क्यों आए। बा कहां है। बा, बा… कहां हो। (मां कहां हो)’, कहते हुए वह अंदर आ गया।
घर में अंधेरा था। अचानक उसका पैर खून पर पड़ा, वह फिसल गया। धड़ाम से नीचे गिर गया। इसी बीच कातिल ने दौड़कर दरवाजा बंद कर दिया। फिर चीखते हुए बोला- ‘तुम्हारी मां रसोई में है। जाकर मिल लो।’
वह आदमी रसोई की तरफ भागा। अंधेरे में उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। तभी कातिल ने स्विच ऑन कर दिया। बल्ब जल गया। पूरा किचन खून से भरा था। सकपकाते हुए वह बोला-‘ये खून किसका है। तुमने बा को मार दिया… नहीं, नहीं।’
रैक के नीचे से खून बह रहा था। झांककर देखा, तो खून से सनी एक गठरी रखी थी। किचन के दरवाजे पर कातिल खड़ा था। उसके हाथ में कुल्हाड़ी थी। वह ठहाके लगाते हुए बोला- ‘इसी गठरी में तुम्हारी मां है और अब तुझे भी उसके पास भेजना है।’
इतना कहते ही उसने कुल्हाड़ी उस आदमी के सिर पर चला दी। वह तड़पते हुए गिर पड़ा। कातिल ने पूरी ताकत से उस पर तीन-चार वार किया। उसके सिर के चीथड़े उड़ गए। कुछ ही देर में वो शांत पड़ गया।

बुजुर्ग महिला के बेटे के सिर पर कुल्हाड़ी से वार करता कातिल। स्केच-संदीप पाल
अब कातिल दौड़कर हॉल में गया। गड़ासा और चाकू लेकर आया और उस आदमी की लाश के बगल में बैठ गया। इस बार उसके हाथ में एक बड़ी बोरी भी थी।
कातिल ने पहले चाकू से उस आदमी की शर्ट फाड़ी। फिर गर्दन पर गड़ासे से तीन-चार वार किया। गर्दन लगभग कट चुकी थी। उसने लाश की दोनों टांग पकड़कर पेट के बल खींचा। बगल से रस्सी उठाई और लाश को बांध दिया। फिर लाश को बोरी में ठूंसने लगा।
अब गहरी सांस लेते हुए कातिल ने लाश से भरी बोरी और साड़ी की गठरी को एक साथ खींचा, लेकिन सरका नहीं पाया। फिर वह गठरी को घसीटते हुए घर के पीछे की तरफ ले गया और बाथरूम के पास छोड़ आया। वापस आया और लाश से भरी बोरी को खींचते हुए उसी गठरी के पास ले जाकर छोड़ दिया।
अब वो हांफते हुए हॉल में गया। दरवाजे पर एक चादर पड़ी थी। उसने चादर उठाई और ले जाकर दोनों लाश को ढंक दिया। उसकी नजर दीवार पर टंगी घड़ी पर पड़ी।
रात के साढ़े 11 बज चुके थे। कातिल, कुल्हाड़ी, गड़ासा और चाकू लेकर आंगन में गया। नल खोलकर आराम से बैठ गया। एक-एक करके तीनों औजार साफ किया। फिर अपने हाथ-पैर धोए। अब उसने बाल्टी में पानी भरा और जाकर हॉल साफ किया। फिर किचन साफ किया। कमरे में हल्की-हल्की रोशनी जल रही थी। उसे लगा कि पूरा फर्श साफ हो गया है।
उसने लाइट जलाई। देखा सामने दीवार पर कई जगह खून के छींटे पड़े थे। वह फौरन किचन में गया और एक धारदार चाकू लेकर आया। पानी डालकर खून के धब्बों को रगड़ने लगा। कुछ देर बाद उसे यकीन हो गया कि खून के धब्बे मिट गए हैं।

बुजुर्ग महिला और उसके बेटे की हत्या के बाद औजार की सफाई करता हुआ कातिल। स्केच- संदीप पाल
अब कातिल पूरी तरफ थक चुका था। वह बेड रूम में गया और पलंग पर फैलकर लेट गया। मन ही मन सोचने लगा, ‘इसी पलंग पर उसके साथ सोता था। अब रास्ते से दोनों को हटा दिया है। अब हमारे बीच कोई तीसरा नहीं आएगा।’
अचानक उसे नींद लग गई। करीब चार घंटे बाद वह जागा। हड़बड़ाकर घड़ी देखी, सुबह के साढ़े तीन बज रहे थे। बुदबुदाते हुए बोला- ‘बड़ी देर हो गई, अब तो यहां से निकलना ही पड़ेगा।’
वह झट से उठा, कुल्हाड़ी, गड़ासा और चाकू को झोले में रखा। खून लगे कपड़ों को एक पॉलिथीन में पैक करके झोले में रख दिया। अब धीरे-धीरे मेन गेट के पास गया। कुंडी खोलकर देखा- बाहर सन्नाटा पसरा था। वह दबे पांव बाहर निकला, दरवाजा बंद किया और तेजी से आगे बढ़ गया।
कातिल कौन था? आखिर उसने बुजुर्ग महिला की हत्या क्यों की? उसके बेटे को क्यों मारा? वह किससे संबंध बनाने की बात कह रहा था? इस डबल मर्डर का राज कैसे खुला? पूरी कहानी ओढव डबल मर्डर केस पार्ट-2 में…

सीसीटीवी फुटेज में पुलिस को एक दुबला पतला आदमी दिखा था, जो एक झोला लेकर उस रात मकान नंबर D/147 के पास से गुजर रहा था। उसी हुलिया का आदमी पुलिस को ओढव के श्रीराम हॉस्पिटल में मिला, जो वहां कंपाउंडर था। कंचनबेन की बहू ने पुलिस को बताया था कि विपुलभाई की पत्नी का किसी हॉस्पिटल के कंपाउंडर से चक्कर है। पूरी कहानी पढ़िए ओढव डबल मर्डर केस पार्ट-2 में…
(नोट- यह सच्ची कहानी, पुलिस चार्जशीट, केस जजमेंट, एडवोकेट आर एफ पटानी और रजनीश पटानी, रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर एनएल देसाई से बातचीत पर आधारित है। सीनियर रिपोर्टर नीरज झा ने क्रिएटिव लिबर्टी का इस्तेमाल करते हुए इसे कहानी के रूप में लिखा है।