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शहर की सफाई, सीवरेज, बिजली, पानी समेत अन्य बुनियादी सहूलियतों की जिम्मेदारी नगर निगम की होती है। हरेक वार्ड पार्षद अपने इलाके में इनकी व्यवस्था सुचारू रखने में मदद करता है। उसी निगम का चुनाव 21 दिसंबर को हो रहा है। अब तक हुए पार्षद के चुनावी प्रचार में मैदान में उतरे उम्मीदवारों ने जोर-शोर से प्रचार किया।
इसके लिए होर्डिंग, पोस्टर और बैनर से शहर को पाट दिया गया तो खाने-पीने में भी प्लेट, कप, गिलास चम्मच का इस्तेमाल कर कूड़े में इजाफा किया गया है। सरकारी प्रापर्टी जैसे कि इमारत, पुल, पोल, एलिवेटेड रोड, फ्लाईओवर से लेकर प्राइवेट घरों, दुकानों और गलियों तक को प्रचार सामग्री से बदरंग कर दिया गया है। वैसे तो शहर पहले से ही कूड़ा, गंदगी से कराह रहा है।
वोटिंग के बाद जीत हार का फैसला हो जाएगा लेकिन इस चुनावी कचरे को कौन संभालेगा? यह खुद में एक सवाल है कि जिन पर सफाई का जिम्मा वही शहर गंदा कर गए। शहर की पांचों विधान सभा हलका के अधीन आते सभी 85 वार्डों से प्रमुख, छोटी पार्टियों के अलावा आजाद तौर पर कुल 477 लोग चुनाव लड़ रहे हैं।
सभी इस बदरंग स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। पार्टियों और संपन्न उम्मीदवारों की इसमें अधिक भूमिका है। अमृतसर विकास मंच के संरक्षक प्रिंसिपल कुलवंत सिंह अणखी कहते हैं कि शहर पहले ही गंदगी से अटा पड़ा है। ऊपर से चुनावी कचरे ने इसमें और इजाफा कर दिया है।
उनका कहना है कि अमृतसर टूरिस्ट सिटी है और आज जिधर भी नजर डाली जाए उधर ही चुनावी सामग्री बिखरी पड़ी है। सरकारी और प्राइवेट प्रापर्टी को छोड़ दें तो विरासती इमारतें और गेटों तक को नहीं बख्शा गया है। चुनाव खत्म हो जाएगा और चुनावी कचरा उसी तरह से परेशानी का कारण बनता रहेगा।
उसे साफ करने में लाखों खर्च हो जाएंगे। उनका कहना है कि दिल्ली और मुंबई में ऐसा नहीं होता क्योंकि वहा पर सरकारों ने इस पर रोक लगाई है। उन्होंने कहा कि यहां भी सरकार को ऐसी पॉलिसी लानी चाहिए ताकि शहर की खूबसूरती को ग्रहण लगने से रोका जा सके।
वैसे तो बीते लोक सभा चुनावों मुख्य चुनाव आयोग ने पर्यावरण के लिहाज से सभी पार्टियों और उम्मीदवारों से अपील की थी कि सिंगल यूज प्लास्टिक और कागज का इस्तेमाल कम किया जाए। लेकिन यह अपील इस चुनाव में कहीं नजर नहीं आई। नगर में रोजाना औसतन 500 टन कूड़ा तैयार होता है। चुनावी कूड़ा इसमें इजाफा कर गया है।
नगर निगम के पूर्व सहायक कमिश्नर डीपी गुप्ता कहते हैं कि अगर हम औसतन प्रति उम्मीदवार प क्विंटल कूड़ा जोड़ें तो 477 लोगों के चुनावी प्रचार में कम से कम ढाई सौ टन कूड़े में इजाफा हुआ है। गुप्ता का कहना है कि उम्मीदवारों ने निगम का पब्लिसिटी टैक्स नहीं भरा तो सरकारी प्रापर्टी पर जो प्रचार सामग्री लगी उसका भी टैक्स नहीं भरा। चूंकि आयोग ने प्रति उम्मीदवार 4 लाख रुपए खर्चने की लिमिट तय की है। लेकिन प्रचार में इससे अधिक खर्च किया गया।