लौंडा डांस देखने के लिए लोगों की भीड़।
उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ लोक आस्था के महापर्व छठ का आज समापन हो गया। इस दौरान जमुई में एक अनोखा दृश्य देखने को मिला। यहां छठ घाट पर अर्घ्य के दौरान लौंडा नाच देखने को मिला।
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ग्रामीण परंपरा के अनुसार किसी भी परिवार की मांगी हुई मन्नत पूरी होती है, तो वह लौंडा नाच और मुंडन करवाते हैं। छठ महापर्व पर किसी परिवार के मन की मुराद अगर पूरी होती है, तो वह घाट पर पहुंचकर गाजे-बाजे के साथ लौंडा नाच करवाते हैं।
घाट पर लौंडा नाच रहा आकर्षण का केंद्र
जमुई के किऊल नदी घाट पर कई जगहों पर लौंडा नाच देखा गया। किऊल नदी घाट पर मन्नत पूरा होने पर आए हुए खैरमां गांव के भेलू रजक ने बताया कि पिछले साल बच्चों के लिए मांगी गई मन्नत पूरी हुई है। परिवारों ने लौंडा नाच करवाया और अपने बच्चों का मुंडन करवा रहे हैं। इस दौरान घाट पर लौंडा नाच आकर्षण का केंद्र रहा है।
छठ घाट पर हो रहा लौंडा डांस।
लौड़ा डांस को लेकर ताशा पार्टी के मालिक नंदकिशोर गोस्वामी ने बताया कि पहले सिर्फ बैंड-बाजा बुक हुआ करता था। इसके लिए 4 हजार रुपए दो दिन का मिलता था। कई बार तो बुकिंग होती ही नहीं थी। लेकिन 3 साल से लौंडा डांस का भी प्रचलन है। जब से लौंडा डांस की बुकिंग होने लगी अब हर बुकिंग का 9 से 10 हजार मिलने लगा है।
उन्होंने बताया कि पहले कभी छठ पर्व में हम लौंडा डांस के लिए बुकिंग नहीं किए थे, लेकिन अब 3 साल से इसकी मांग बढ़ने लगी है। इसके कारण कमाई अच्छी होने लगी है। इस साल इनके पास से 3 लौंडा डांसर की बुकिंग हुई थी। वहीं, किऊल नदी घाट पर एक ही लौंडा डांस हो रहा था।
इमोशन को शब्दों से एक्सप्लेन नहीं कर पाते
वहीं, दिल्ली से आए सौरव कुमार ने बताया कि हम भी अपने बच्चे का मुंडन कराने के लिए जमुई आए थे। हम भी बैंड-बाजा के साथ छठ घाट पर मुंडन कराए हैं। अब बच्चे का मुंडन देवघर में कराना है। उसके बाद दिल्ली लौट जाना है। उन्होंने बताया कि अगर कोई हमसे पूछता है कि छठ आपके लिए क्या है, तो हम उन्हें नहीं समझा पाते हैं। हम अपने इमोशन को शब्दों के माध्यम से उनको एक्सप्लेन नहीं कर पाते हैं।
हम जानते हैं छठ के बारे में वही लोग समझ पाएंगे, जिन लोगों ने बचपन से अपने घर में छठ पूजा होते हुए देखा है। छठ से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात को वही समझ पाएगा, जिसने नहाय-खाय के दिन सुबह से दाल-भात और लौकी की सब्जी बनते हुए देखा है, ये वही समझ पाएगा, खरना वाले दिन महा प्रसाद का पाना सबको नहीं मिलता।