बालोद में होलिका दहन के बाद बिना जले अंगारों पर चलते हैं लोग
छत्तीसगढ़ में कई अनूठी परंपराएं आज भी जीवित हैं। बालोद जिले के डोंडीलोहारा ब्लॉक के ग्राम जाटादाह में होलिका दहन के बाद अंगारों पर नंगे पैर चलने की परंपरा आज भी निभाई जा रही है। ग्रामीणों की मान्यता है कि इस अग्नि परीक्षा से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं
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होली के अंगारों पर चलते हैं ग्रामवासी बालोद जिला मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर दूर स्थित जाटादाह गांव में प्रतिवर्ष होलिका दहन के बाद ग्रामीण नंगे पैर जलते अंगारों पर चलते हैं। ग्रामीणों के अनुसार यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। गांव के निवासी शैलेन्द्र सोनवानी ने बताया कि इस अंगार पर चलने से शरीर की खाज-खुजली जैसी बीमारियां दूर हो जाती हैं।
वहीं, भूपेंद्र बेलसर का कहना है कि इस आयोजन को देखने के लिए दूर-दराज से लोग पहुंचते हैं। कुछ तो रात से ही गांव में रुक जाते हैं ताकि सुबह इस अनूठी परंपरा का अनुभव कर सकें।
100 साल से भी पुरानी है परंपरा गांव में होलिका दहन विधि-विधान से किया जाता है। जिसके बाद गांव के बच्चे, युवा और बुजुर्ग जलते अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं। यह नजारा किसी चमत्कार से कम नहीं होता, क्योंकि उनके पैरों में न तो छाले पड़ते हैं और न ही कोई जलन महसूस होती है।
श्रद्धा और विश्वास से जुड़ा आयोजन डोंडीलोहारा तहसील मुख्यालय से करीब चार किलोमीटर दूर स्थित जाटादाह में हर साल होलिका दहन के बाद यह अनुष्ठान होता है। ग्रामीणों के मुताबिक यह परंपरा कब और कैसे शुरू हुई, इसकी सटीक जानकारी किसी के पास नहीं है। लेकिन श्रद्धालु पूरे विश्वास के साथ इसे निभाते आ रहे हैं।

केवल जाटादाह में होती है यह अनूठी परंपरा गांव के ही जलेंद्र कुमेटी बताते हैं कि यह परंपरा आसपास के अन्य गांवों से अलग हटकर है और केवल जाटादाह में ही निभाई जाती है। भेंडी के ऋषभ सिन्हा बताते हैं कि अंगारों पर चलने के लिए यहां पहुंचे। किसी तरह की कोई जलन नहीं हुई। यह आयोजन विशेष पूजा-पाठ के बाद रात में होलिका दहन के बाद सुबह से ही शुरू हुआ था। जिसमें आस-पास से पहुंचे बच्चे, जवान और बुजुर्ग उत्साह से इस परंपरा में भाग ले रहे थे।