होते हैं? किसी को यह समझना है तो बस्तर आना चाहिए। बस्तर में सड़के सिर्फ विकास नहीं, बल्कि उम्मीद, बदलाव, आत्मविश्वास और खुशहाली लेकर आती हैं। जहां सड़कें नहीं पहुंची हैं, वहां कहीं ना कहीं भय, असुरक्षा, समाज से कटे रहने की रिवायत अब भी बनी हुई है। छत
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पूवती और एंटापाड़ सिर्फ गांव नहीं हैं एक प्रतीक भी हैं। दशकों से पहुंच से दूर रहने के कारण इन्हें नक्सलियों का अभेद्य गढ़ मान लिया गया। और सीधे-साधे हिंसा पीड़ित आदवासियों ने खौफ का पर्याय। पूवतीं, टेकलगुड़म, सिलगेर, जगरगुंडा, चिंताबागू, चिंतलनार, ताड़मेटला, चिंतागुफा, डब्बाकोटा, यह ऐसे इलाके हैं जहां लोगों ने हिंसा, अशिक्षा, गरीबी को निषित मान लिया था। लेकिन सीमेंट-डामर से खिंची लकीरों से इस इलाके की तस्वीर और तकदीर बदलने लगी है। अब भी एंटापाड़, पेंटापाड़, भूतलंका, पुजारीकांकेर जैसे ऐसे कई इलाके हैं जहां सड़क ना पहुंचने का साफ अंतर दिखता है।
जिन्होंने दूसरों के घर उजाड़े उनके यहां ना छत बची ना दीवार…
पूवर्ती… यहां सड़क पहुंची, सुविधाएं भी
सिलगेर से 12 किमी दूर है पूवती। यहां सड़क पुल का काम तेजी से जारी है। गांव में घुसते ही खिलखिलाते बच्चों ने रास्ता रोक लिया। पंडुम बानी त्योहार का शगुन भांगा, पैसे मिलने पर ही रस्सा हटाया। सबने बताया कि हां, हम स्कूल जाते हैं। पूवर्ती में बिजली नहीं आई है मगर हर घर में सोलर पैनाल लगे थे। नक्सली कमांडर हिड़मा का घर जमींदोज हो गया है मगर चाहर सोलर पैनल सुरक्षित था। 20 कदम पर आंगनबाड़ी का प्री- फैषिकेटेड स्ट्रक्बर रखा गया है। पड़ोसी हुंगा ने बताया कि सोलर पंप से भरपूर पानी आता है। राशन भी अब बगल में मिलता है।
ओईपारा… सड़क खत्म, चुप्पी कायम
हिड़मा के घर से 3 किमी दूर ओईपारा मुहल्ले में देवा बारसे का घर है। यहां पहुंचने को सड़क नहीं है। झुरमुट, पगड़ी से होकर जाना पड़ता है। यहां सभाटा था। ज्यादातर सोलर पैनल और एक पंप भी खराब पड़ा था। लोग बात करने से कतराते रहे। हमें देखकर वहां आए एक दिव्यांग युवक ने बताया कि देवा का घर यही है। हम बगाल के मकान में गए, वहां देवा की बुजुर्ग चाची हूंगी बारसे मिली। पहले काफी देर चुप रहीं, फिर बताया कि देवा यहां कुछ साल पहले आया था। अब परिवार में कोई नहीं बचा, ना कोई रिश्ता रखना चाहता है।
एंटापाड़… रास्ता ही नहीं, आतंक कायम
पूवर्ती से 80 किमी दूर डब्बाकोंटा तक सड़क है। यहां से जंगलों में 5 किमी चलकर हम एंटापाद पहुंचे। केसा सोड़ी के गांव में नल-जल योजना के ढांचे बने हैं पर पानी नहीं आता। ज्यादातर बच्चे पढ़ाई छोड़ चुके हैं। केसा का नाम सुनते ही महिला ने कहा- लौट जाओ। पांच लोगों से यही जवाब मिला। कोई घर बताने को तैयार नहीं था। जोर देने पर एक बुजुर्ग ने कहा-जहां खड़े हो वहीं तो है। हमने पास में देखा तो एक खंडहर था। ठीक वैसा ही जैसा पूवर्ती, ओईपारा में था। फिर कुछ पूछा तो बुजुर्ग बोले- अंधेरा हो रहा है, लौट जाओ।