कोर्ट ने 25 हजार का जुर्माना भी लगाया।
गुजरात के सूरत में की सेशन कोर्ट ने शनिवार को जैन दिगंबर संप्रदाय के एक मुनि को 19 वर्षीय युवती से दुष्कर्म मामले में दस साल कैद की सजा सुनाई। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश ए के शाह ने दुष्कर्म का दोषी पाए जाने पर 56 वर्षीय शांतिसागरजी महाराज पर 2
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अब जानिए पूरा मामला मूल रूप से ग्वालियर की रहने वाली 19 साल की पीड़ित वडोदरा के एक कॉलेज में पढ़ती थी। पीड़ित के परिवार का सूरत के नानपुरा के तिमलियावद स्थित महावीर दिगंबर जैन मंदिर में आना-जाना था। परिवार आरोपी जैन मुनि शांतिसागर के प्रवचनों से काफी प्रभावित था। इसलिए परिवार इनके संपर्क में रहता था।
1 अक्टूबर 2017 में धर्मशाला में किया था दुष्कर्म।
धार्मिक अनुष्ठान के बहाने परिवार को बुलाया गया था एफआरआई में दर्ज शिकायत के मुताबिक 1 अक्टूबर 2017 में शांतिसागर ने पीड़ित समेत उसके पूरे परिवार को एक धार्मिक अनुष्ठान के बहाने सूरत के तिमलियावद स्थित महावीर दिगंबर जैन उप-मंदिर बुलाया था। मंदिर में ही परिवार के ठहरने की व्यवस्था की गई थी। आरोपी जैन मुनि इस दौरान सूरत में चातुर्मास के लिए रह रहे थे। पीड़ित का आरोप है कि इसी दौरान जैनमुनि शांतिसागर ने उसे मंत्रजाप के बहाने अपने कमरे में बुलाया और परिवार के साथ कोई अनहोनी न होने का कहकर उसका दुष्कर्म किया था।
दूसरे दिन पीड़ित की तबीयत खराब होने पर दुष्कर्म का खुलासा हुआ था। इसके बाद परिवार ने सूरत के अठवालाइंस पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाई थी। मेडिकल में रेप की पुष्टि होने के बाद शांतिसागर को अक्टूबर में ही हिरासत में ले लिया गया था।

राजेश डोबरिया, सरकारी वकील।
आरोपी ने कहा- सहमति से बनाए थे शारीरिक संबंध गिरफ्तारी के बाद शांति सागर (49) ने दावा किया था कि उन्हें फंसाया गया है। मेडिकल के दौरान उन्होंने डॉक्टर से कहा था कि मैं लड़की को 5-6 महीने से जानता हूं। वह पहली बार मिलने के लिए सपरिवार सूरत आई थी। तिमलियावद नानपुरा धर्मशाला में लड़की की रजामंदी से ही संबंध बनाए थे। जैन मुनि ने यह भी कहा था कि उन्होंनें जीवन में पहली बार ऐसा किया। डॉक्टर ने मुनि से पूछा- आप साधु हैं, ऐसा क्यों किया? इस पर मुनि ने सिर झुका लिया था। यह बात डॉक्टर ने मेडिको लीगल केस रजिस्टर में दर्ज की है।
कौन हैं शांति सागर? शांतिसागर बचपन से लेकर जवानी तक एमपी के गुना डिस्ट्रिक्ट में अपने ताऊजी के साथ रहे। पहले उनका नाम गिरराज शर्मा था। उनका परिवार कोटा में रहता था। पिता सज्जनलाल शर्मा वहीं पर हलवाई थे। गिरराज 22 साल की उम्र में मंदसौर में जैन संतों के संपर्क में आए। पढ़ाई अधूरी छोड़कर वहीं दीक्षा लेकर गिरराज से शांतिसागर महाराज बन गए थे।