धनबाद, 25 मार्च 2025 – शत-प्रतिशत दिव्यांग मन्नू, जो जन्म से ही नेत्रहीन है और चार साल की उम्र में ही पिता को खो चुकी थी, अब शिक्षा के सपने को साकार कर सकेगी। डालसा (जिला विधिक सेवा प्राधिकरण) की पहल से उसे गिरिडीह नेत्रहीन बाल विकास विद्यालय में दाखिला दिलाने की प्रक्रिया पूरी कर ली गई।
अनाथ बच्चों को मिला सहारा
मंगलवार को अधिकार मित्र राजू कुमार की नजर बाघमारा में मन्नू पर पड़ी। उन्होंने तुरंत इस मामले की सूचना अवर न्यायाधीश सह सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, श्री राकेश रोशन को दी। इस पर तत्काल टास्क फोर्स गठित कर बच्चों को रेस्क्यू किया गया।रेस्क्यू टीम को वहां मन्नू का छोटा भाई भी शत-प्रतिशत दिव्यांग मिला, जो नेत्रहीन है। इसी दौरान दो अन्य अनाथ बच्चे भी टीम को मिले, जिन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखने की इच्छा जताई। गरीबी और माता-पिता के न होने के कारण वे शिक्षा से वंचित थे।
न्यायपालिका की त्वरित कार्रवाई
अवर न्यायाधीश श्री रोशन ने मामले की जानकारी प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र कुमार तिवारी को दी। प्रधान जिला जज के आदेश पर त्वरित कार्रवाई हुई, जिसमें –✔️ मन्नू और उसके भाई को “दिव्यांगों को मिले समानता का अधिकार” योजना के तहत सभी सरकारी सुविधाएं दिलाने का निर्देश दिया गया।✔️ गिरिडीह नेत्रहीन बाल विकास विद्यालय में उनके दाखिले की प्रक्रिया पूरी की गई।✔️ अन्य दो अनाथ बच्चों को “स्पॉन्सरशिप योजना” का लाभ दिलाने की कागजी कार्रवाई भी पूरी कर ली गई।
बच्चों को तत्काल सहायता
न्यायाधीश श्री रोशन ने मौके पर ही बच्चों को कपड़े, खिलौने और खाने-पीने की सामग्री उपलब्ध करवाई। उन्होंने कहा कि जल्द ही दोनों दिव्यांग बच्चे स्कूल जाना शुरू करेंगे और दो अन्य अनाथ बच्चों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा।डालसा की इस पहल से दिव्यांग और अनाथ बच्चों के जीवन में नई रोशनी आई है। यह कदम न केवल शिक्षा के अधिकार को सशक्त बनाएगा बल्कि जरूरतमंद बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल साबित होगा।