देश भर में ‘डिजिटल अरेस्ट’ रैकेट चलाने वाले नेटवर्क का पर्दाफाश कर अहमदाबाद पुलिस ने बीते सोमवार को 18 लोगों को गिरफ्तार किया था। इनसे पूछताछ में कई खुलासे हुए हैं। गैंग ने ठगी के 5 हजार करोड़ रुपए चीन व ताइवान भेजे हैं।
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गैंग ठगी के लिए गेमिंग ऐप, शेयर बाजार इन्वेस्टमेंट और डिजिटल अरेस्ट जैसी तरकीबें अपनाता है। आरोपियों में 4 ताइवानी नागरिक हैं, बाकी 14 अहमदाबाद-वडोदरा सहित गुजरात के हैं। देश में इस गैंग के पर करीब 450 केस दर्ज हैं।
अहमदाबाद साइबर क्राइम के डीवाईएसपी द्वारा जॉयस हब टाउन कॉम्प्लेक्स में संचालित डार्करूम पर ताला लगाने के बाद मकरपुरा में डार्करूम की पुष्टि होने पर भास्कर की टीम मौके पर पहुंची। वडोदरा के मकरपुरा एसटी डिपो के जॉयस हब टाउन कॉम्प्लेक्स स्थित कार्यालय संख्या बी-215 डी के अंधेरे कमरे में पहुंचने पर पता चला कि 10 बाई 20 कार्यालय से यह पूरे रैकेट चलाया जा रहा था। एसटी डिपो में खाली जगह और खुले मैदान में स्थित इस जॉयस हब टाउन कॉम्प्लेक्स की दूसरी मंजिल पर 40 दुकानें हैं, जिनमें से ज्यादातर बंद हैं। इसी के चलते साइबर माफिया ने अपने ऑफिस के लिए यह जगह चुनी थी।
वडोदरा के मकरपुरा में स्थित जॉयस हब टाउन कॉम्प्लेक्स, जहां ज्यादातर दुकानें बंद हैं।
पुलिस को डार्क रूम क्या मिला इस डार्करूम में 20 रूटेड मोबाइल फोन स्टैंड, राउटर, मिनी लैपटॉप था। इन सभी 20 मोबाइल में 2 सिम कार्ड थे। एक सिम कार्ड बैंक खाते से जुड़ा हुआ था, जिसमें ओटीपी आती थी। इन 20 फोन के जरिए ही अन्य 120 मोबाइल नंबर की जानकारी मिली, जो इनसे जुड़े हुए थे।
अब जानिए क्या होता है डार्करूम? डार्करूम मूल रूप से एक कमरा है। जिसमें 10 से ज्यादा फोन एक राउटर के जरिए वाईफाई से कनेक्ट होते हैं, जो एक लाइन से कनेक्ट होने और नंबर बदलने के लिए मैजिक जैक का इस्तेमाल करता है। इस तकनीक का उपयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि आमतौर पर voip से की गई कॉल का पता लगाना मुश्किल होता है।
वडोदरा के इस ऑफिस से ऑपरेट हो रहा था रैकेट।
कई शहरों में बनाए गए थे डार्करूम गुजरात के वडोदरा शहर के अलावा ऐसे डार्क रूम दिल्ली, बेंगलुरु और मुंबई से भी ऑपरेट हो रहे थे। वडोदरा से पकड़े गए आरोपी लिलेश और जयेश ने पुलिस को बताया कि यह रैकेट दिल्ली से सैफ हैदर ऑपरेट कर रहा है। इस जानकारी के बाद पुलिस ने दिल्ली से सैफ को गिरफ्तार किया तो उसने बताया कि यह पूरा रैकेट चीन और ताइवान के माफिया चला रहे थे। इनमें से 2 ताइवानी वांग चुन वेई और शेन वेई हॉ बेंगलुरु में डार्करूम चला रहे थे, जबकि 2 अन्य मुची सांग उर्फ मार्क और चांग हॉ युन थे।
चारों ताइवानीज के भारत पहुंचते ही पुलिस ने अरेस्ट किया सैफ ने ही पुलिस को बताया कि ताइवान से पूरा रैकेट चलाने वाले चारों आरोपी भारत आने वाले हैं। इसीलिए पुलिस उनका इंतजार कर रही थी। जब ताइवान से दो आरोपी दिल्ली और दो आरोपी बेंगलुरु आए तो पुलिस ने चारों को एक साथ गिरफ्तार कर लिया।
वडोदरा के ऑफिस से पुलिस ने दो राउटर और 20 मोबाइल फोन जब्त किए हैं।
रोजाना 10 करोड़ भेजने का टार्गेट था आरोपी CBI और साइबर क्राइम अधिकारी बन टारगेट पूरे करते थे। गैंग के गुर्गे हर दिन करीब 1.5 करोड़ रु. ताइवान भेजते थे। हालांकि, माफिया ने रोज 10 करोड़ भेजने का टारगेट दिया था। गैंग के ठिकानों से 761 सिम कार्ड, 120 मोबाइल, 96 चेकबुक, 92 डेबिट कार्ड और 42 बैंक पासबुक आदि चीजें भी बरामद हुई हैं।
ताइवान में वॉलेट से रुपए निकालते थे गुजरात पुलिस को गैंग की एक गूगलशीट हाथ लगी। इसमें लेखा-जोखा मिला है। इसी से दिल्ली-बेंगलुरु, मुंबई होटल में ठहरने-टैक्सी-खाने के बिल सहित हिसाब-किताब मिले। इससे सुराग मिला कि ताइवान माफिया गैंग के गुर्गे भारत आते हैं। गैंग 6 यूनिट बनाकर ठगी कर रहा था। ये अलग-अलग यूनिट प्री-पेड सिम कार्ड, बैंक एकाउंट खुलवाना, डार्कवेब एवं पब्लिक डोमेन से लोगों की जानकारी जुटाना, एक्सपर्ट टीम, टेक्निकल टीम और कॉल सेंटर के लिए भर्ती का काम करती थीं।
भारत पहुंचते ही पुलिस ने चारों ताइवानी नागरिकों को गिरफ्तार कर इस पूरे रैकेट का पर्दाफाश किया।
बिना ओटीपी के ही बैंक खातों से निकाल लेते थे पैसा क्राइम ब्रांच की जांच में खुलासा हुआ है कि पूरे कांड के मास्टरमाइंड 4 ताइवानी नागरिक हैं। ये आरोपी ताइवान में बैठकर बिना ओटीपी के ही बैंक खातों से पैसे निकाल लेते थे। आरोपियों के पास से एक पीपीटी भी बरामद हुई है, जिसमें बताया गया है कि काम कैसे करना है। जांच में यह भी पता चला है कि दक्षिण एशियाई देश में ऐसे 50 से ज्यादा गिरोह सक्रिय हैं, जो अलग-अलग साइबर क्राइम को अंजाम दे रहे हैं।
ताइवानी आरोपियों ने तैयार की थी खास पीपीटी आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद जब पुलिस द्वारा उनसे पूछताछ की जा रही थी तो पता चला कि ताइवानी आरोपियों ने एक पीपीटी तैयार की थी। इस पीपीटी में भारत में एजेंट बनाने से लेकर सिम कार्ड, बैंक खाते और करंसी को क्रिप्टो करेंसी में बदलने की सारी डिटेल तैयार कर रखी थी। पूरा रैकेट ताइवान से संचालित किया जा रहा था।
एप्लीकेशन से मोबाइल कर लेते थे हैक आरोपियों ने एंड्रॉइड मोबाइल को रूट करके उसमें एक एप्लिकेशन इंस्टॉल किया गया था। इस एप्लीकेशन के जरिए बिना ओटीपी के बैंक खाते से पैसे निकाल लेते थे। जिस व्यक्ति का बैंक खाता होता था, उसके मोबाइल में इस एप्लीकेशन को इंस्टॉल करवाकर उसके मोबाइल को हैक कर लेते थे। इससे बिना ओटीपी आए ही व्यक्ति की जानकारी के बिना बैंक से पैसे निकाल लेते थे।
ठगी करने के लिए विदेश में नौकरी का झांसा देते थे ताइवान-चीन के माफिया गुजरात के लोगों से ठगी करने के लिए नौकरी का जाल बिछाते थे। झांसे में आए युवाओं को मालदीव व वियतनाम में नौकरी देने का वादा करके फिलीपींस से कंबोडिया होते हुए ले जाते थे, जहां पासपोर्ट छीन कर कॉल सेंटर में जबरन नौकरी करवाते थे। 3 माह बाद पासपोर्ट देकर वापस रवाना कर देते थे।