69 साल के डॉक्टर अनिल का प्रण… अपनी मृत्यु तक निःशक्त बच्चों का करेंगे मुफ्त इलाज
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40 वर्ष से लगातार निःशक्त बच्चों का ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. अनिल कुमार पांडेय निःस्वार्थ इलाज कर रहे हैं। 1985 से लेकर अब तक इन्होंने 12,500 से भी अधिक दिव्यांग बच्चों का सफल ऑपरेशन और विभिन्न पद्धतियों से इलाज किया है। डॉ. अनिल ने सभी बच्चों का ऑपरेशन और संपूर्ण इलाज मुफ्त में किया है। इनमें से ज्यादातर बच्चे गुरुनानक होम्स के हैं।
ये झारखंड ही नहीं उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार में भी गरीब दिव्यांग बच्चों के लिए सैकड़ों कैंप लगा चुके हैं। 1956 में जन्मे डॉ. अनिल ने एमबीबीएस की डिग्री धनबाद से ली है और आज तक वे दिव्यांगों के मुफ्त इलाज करने में सक्रिय हैं। उन्होंने ऑर्थो की आगे की पढ़ाई रांची से ही की है और जापान से निःशक्त लोगों के इलाज की दक्षता हासिल की है।
डॉ. अनिल का कहना है कि अपनी मृत्यु तक वे दिव्यांग बच्चों का इलाज मुफ्त करते रहेंगे। उनके जीवन का लक्ष्य राज्य से अपंगता को जड़ से खत्म करना है। इनके इस कार्य में इनकी पत्नी डॉ. पुष्पा पांडेय हमेशा साथ रहती हैं।
पिता से मिली समाज सेवा की प्रेरणा…
दिव्यांगों की सेवा करने की प्रेरणा इन्हें पिता डॉ. सुरेश्वर पांडेय से मिली। पिता हमेशा कहा करते हैं कि करना है तो कुछ ऐसा करो, जिससे समाज तुम्हें याद करे। डॉ. सुरेश्वर रिम्स के एचओडी रह चुके हैं। ये गुरुनानक होम्स के फाउंडर सदस्यों मैं से एक थे। गुरुनानक विकलांग शिशु भवन बरियातू में फ्री इलाज होता है और मरीज के साथ अटेंडेंट का भी खाना फ्री रहता है।
महिलाओं में सेरेब्रल पाल्सी पर कर रहे शोध, ताकि अपंग बच्चे पैदा ही न हों
डॉ. अनिल ने कहा कि जागरूकता कार्यक्रम भी चला रहा हूं। मुफ्त इलाज मैं हमेशा करता रहूंगा। जो भी गरीब निर्धन आएंगे, उनकी मदद करूंगा। उन्होंने कहा कि गर्भावस्था से सेरेब्रल पाल्सी (सीपी) की समस्या हो सकती है। मैं इसी पर काम कर रहा हूं। गर्भावस्था में डिलीवरी के समय सीपी की समस्या ज्यादा देखने को मिल रही है। इस कारण गर्भ में पल रहे बच्चे में अपंगता आती है। हम सीपी पर काम कर रहे हैं, ताकि अपंग बच्चे पैदा ही ना हों। इसके लिए रोटरी क्लब का भरपूर सहयोग मिल रहा है। हम यह भी झारखंड के लोगों से आग्रह करते हैं कि उन्हें जहां भी दिव्यांग बच्चे मिलें, वे हमसे संपर्क कर सकते हैं।
चुनौतियों का भी करना पड़ा सामना डॉ. अनिल कुमार पांडेय 1995 से रोटरी क्लब से जुड़े। इसके बाद जगह-जगह गए। लोगों की पीड़ा देख मन में सेवा की भावना जगी और वे लगातार सेवा में जुट गए। अपने लंबे सफर में कई बार उनको चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा है। बीमार रहते हुए भी दिव्यांग बच्चों का ऑपरेशन करने के लिए दूर जाना पड़ा। कई बार गांवों में ऐसी स्थिति भी बनी कि वहां खटिया पर इक्विपमेंट रख कर इलाज करना पड़ा। डॉ. पांडेय ने नाइजीरिया में भी रोटरी इंटरनेशनल के सहयोग से गरीब दिव्यांग बच्चों का इलाज किया है।